Srihari Vitthal: क्यों खड़े हैं विट्ठल भगवान आज भी एक ही ईंट पर ? जानिए पीछे की दिव्य कहानी

Edited By Updated: 16 Aug, 2025 10:31 AM

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Srihari Vitthal: दुनिया भर में भगवान के कई मंदिर हैं और हर जगह उनकी अलग-अलग रूप-रंग में मूर्तियां मिलती हैं। कहीं वे राधा के संग प्रेमी रूप में दिखते हैं, तो कहीं वे द्वारका में राजा के रूप में विराजमान होते हैं।

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Srihari Vitthal: दुनिया भर में भगवान के कई मंदिर हैं और हर जगह उनकी अलग-अलग रूप-रंग में मूर्तियां मिलती हैं। कहीं वे राधा के संग प्रेमी रूप में दिखते हैं, तो कहीं वे द्वारका में राजा के रूप में विराजमान होते हैं। कहते हैं ना जैसी आपकी भावना होगी, भगवान की मूर्ति भी वैसी ही नजर आएगी। लेकिन क्या आपने कभी भगवान को अपनी कमर पर हाथ रखे, एक ईंट पर खड़े हुए देखा है ? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको पंढरपुर के श्रीहरि विट्ठल की कहानी बताते हैं।

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छठवीं सदी में महाराष्ट्र के पंढरपुर में पुंडलिक नाम का एक भक्त पैदा हुआ था। पुंडलिक जी का अपने माता-पिता के प्रति और अपने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और श्रद्धा थी। वे बहुत ही सरल, मधुर और सहज स्वभाव के व्यक्ति थे, जो भगवान श्रीकृष्ण को भी बहुत भाते थे। एक दिन श्रीकृष्ण कहीं जाने के लिए तैयार हुए। जब रुक्मणि जी ने उनसे पूछा कि वे कहां जा रहे हैं, तो भगवान ने बताया कि वे एक विशेष भक्त से मिलने पृथ्वी पर जा रहे हैं।

इसके बाद भगवान और रुक्मिणी जी दोनों उस भक्त के घर पर प्रकट हुए और कहा, "पुंडलिक ! हम तुम्हें दर्शन देने आए हैं, रुक्मिणी जी के साथ। उस समय पुंडलिक अपने बूढ़े पिता की सेवा कर रहे थे और उन्होंने भगवान से विनम्रता से कहा, "हे प्रभु, मैं अभी अपने पिता की सेवा में व्यस्त हूँ। कृपया थोड़ा इंतजार करें, तब तक आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा करें।" ये कहकर वे फिर से अपने पिता की सेवा में लग गए। यह सुनकर रुक्मिणी जी भी अचरज में पड़ गईं।

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भगवान ने भक्त पुंडलिक की बात का सम्मान करते हुए, दोनों हाथ कमर पर रखकर उस ईंट पर खड़े हो गए जैसा पुंडलिक ने कहा था। रुक्मिणी जी भी वहीं ईंट पर खड़ी होकर इंतजार करने लगीं। जब पुंडलिक अपने पिता की सेवा से मुक्त होकर पीछे मुड़ा, तो देखा कि भगवान अब मूर्ति के रूप में विराजमान हो चुके थे।

पुंडलिक ने उस मूर्ति को अपने घर में स्थापित किया और उसकी पूजा-सेवा करने लगा। चूंकि वह मूर्ति ईंट पर खड़ी थी, इसलिए भगवान को विट्ठल कहा जाने लगा। आज भी आषाढ़ एकादशी के दिन लाखों भक्त भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए पैदल यात्रा करते हैं।

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