Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Aug, 2021 12:29 PM
भगवान वेद व्यास जी भगवान श्री हरि विष्णु जी के अंशावतार हैं। अपनी विलक्षण बुद्धि से उन्होंने ब्रह्म भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रदत्त दिव्य श्री गीता ज्ञान के सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म संन्यास
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Srimad Bhagavad Gita: भगवान वेद व्यास जी भगवान श्री हरि विष्णु जी के अंशावतार हैं। अपनी विलक्षण बुद्धि से उन्होंने ब्रह्म भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रदत्त दिव्य श्री गीता ज्ञान के सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म संन्यास योग, अक्षर ब्रह्म योग, भक्ति योग, मोक्ष संन्यास आदि 18 अध्यायों का नामकरण किया। इनमें ही भगवद् गीता का मूल भाव छिपा है। इन्हें संक्षिप्त तथा सरल शैली में धारावाहिक रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं।
प्रथम अध्याय - ‘अर्जुन विषाद योग’
प्रथम अध्याय में धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा लेकर कौरवों और पांडवों की सेना अपने महारथियों के साथ आमने-सामने एकत्रित हुई। शंख, नगाड़ों के बजने से उत्पन्न भयंकर ध्वनि के मध्य भगवान श्री कृष्ण सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ पर बैठकर अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध स्थल पर पधारे।
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करने के लिए कहा और प्रतिपक्ष की सेना में अपने सम्पूर्ण बंधुओं को देख कर शोक करते हुए बड़ी ही दयनीय और लाचार अवस्था में प्रभु से कहते हैं कि अगर मुझे तीनों लोकों का राज्य भी मिले तब भी मैं इनको मारना नहीं चाहूंगा।
अपने इन संबंधियों की हत्या करके मैं पाप नहीं कमाना चाहता। अर्जुन कहते हैं कि इनके मरने से बहुत से कुल नाश हो जाएंगे। वर्ण संकट उत्पन्न हो जाएगा। परिणामस्वरूप नष्ट हुए सनातन कुल धर्मों के मनुष्यों का अनादि काल तक नरक में वास होता है। इस प्रकार रण भूमि में उद्विग्न मन वाले अर्जुन बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गए।
अर्जुन स्वजनों के साथ युद्ध के विषय में सोच कर भारी दुख से यह विचार करने लगे कि इनको मार कर उनके हाथों से केवल पाप और अधर्म का कार्य ही होगा। इस प्रकार अर्जुन के शोक करने के कारण इस अध्याय का नाम भगवान वेद व्यास जी ने अर्जुन विषाद योग रखा।