क्यों बिना भस्म आरती महाकाल की कृपा अधूरी रहती है, जानिए धार्मिक रहस्य और मान्यता

Edited By Updated: 17 Dec, 2025 11:52 AM

mahakaleshwar mandir bhasma aarti

उज्जैन के अधिपति भगवान महाकालेश्वर के दर्शन के लिए वैसे तो हर पल खास है, लेकिन भस्म आरती का अनुभव कुछ ऐसा है जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है।

Mahakaleshwar Mandir Bhasma Aarti : उज्जैन के अधिपति भगवान महाकालेश्वर के दर्शन के लिए वैसे तो हर पल खास है, लेकिन भस्म आरती का अनुभव कुछ ऐसा है जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है। सनातन परंपरा में यह माना जाता है कि महाकाल की भक्ति तब तक संपूर्ण नहीं होती, जब तक भक्त उस अलौकिक दृश्य का साक्षी न बन जाए, जहां मृत्यु के प्रतीक भस्म से जीवन के स्वामी का श्रृंगार होता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा का परमात्मा से मिलन और नश्वरता को स्वीकार करने का एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है। आखिर क्यों इस भस्म की राख में ही महादेव की पूर्ण कृपा समाहित मानी जाती है और क्यों एक भक्त की उज्जैन यात्रा इस आरती के बिना अधूरी कही जाती है। तो आइए जानते हैं इस रहस्यमयी और दिव्य परंपरा के पीछे छिपी मान्यताओं के बारे में-

Mahakaleshwar Mandir Bhasma Aarti

महाकाल और भस्म का अटूट संबंध
शास्त्रों के अनुसार, काल का अर्थ है समय और मृत्यु। भगवान शिव काल के भी काल हैं, इसलिए वे 'महाकाल' कहलाते हैं। भस्म इस संसार की अंतिम सत्यता का प्रतीक है। शरीर अंत में राख बन जाता है और शिव इसी राख को अपने अंगों पर धारण करके यह संदेश देते हैं कि संसार नश्वर है और केवल वे ही शाश्वत हैं।

तांत्रिक और आध्यात्मिक महत्व
महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र ऐसा मंदिर है जो दक्षिणमुखी है। दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यमराज की दिशा माना जाता है। भस्म आरती के जरिए भगवान शिव की तामसी ऊर्जा को शांत किया जाता है और भक्तों को मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाई जाती है। कहा जाता है कि महाकाल को भस्म अर्पित करने का अर्थ है स्वयं को उनके चरणों में पूरी तरह समर्पित कर देना।

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भस्म आरती की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, उज्जैन में 'दूषण' नाम के राक्षस का आतंक था। जब भक्तों की पुकार सुनकर शिव प्रकट हुए, तो उन्होंने अपनी एक हुंकार से दूषण को भस्म कर दिया। भक्तों के आग्रह पर शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं विराजमान हो गए और उन्होंने उस राक्षस की भस्म से ही अपना श्रृंगार किया। तब से यह परंपरा 'भस्म आरती' के रूप में चली आ रही है।

क्यों मानी जाती है इसके बिना कृपा अधूरी?
धार्मिक विशेषज्ञों और पुजारियों के अनुसार, भस्म आरती केवल एक रस्म नहीं बल्कि ब्रह्मांड के जागरण का प्रतीक है। माना जाता है कि जो भक्त भस्म आरती के दर्शन करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। भस्म आरती के दौरान होने वाले मंत्रोच्चार और शंखनाद से जो ऊर्जा उत्पन्न होती है, वह भक्त के भीतर के विकारों को जलाकर राख कर देती है। भस्म आरती के समय ही भगवान शिव का दिव्य श्रृंगार होता है, जिसमें वे निराकार से साकार रूप में आते हैं। इस दृश्य को देखना साक्षात महादेव की अनुमति प्राप्त करने जैसा है।

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