श्रीमद्भगवद्गीता: निष्काम भाव से करते जाओ अपना कर्म

Edited By Jyoti,Updated: 12 May, 2021 01:38 PM

srimad bhagavad gita gyan in hindi

यहां मैंने वैश्लेषिक अध्ययन (सांख्य) द्वारा इस ज्ञान का वर्णन किया है। अब निष्काम भाव से कर्म करना बता रहा हूं, उसे सुनो। हे पृथापुत्र! तुम यदि ऐसे ज्ञान से कर्म करो

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता


श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु।
बुद्धया युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।

अनुवाद एवं तात्पर्य
यहां मैंने वैश्लेषिक अध्ययन (सांख्य) द्वारा इस ज्ञान का वर्णन किया है। अब निष्काम भाव से कर्म करना बता रहा हूं, उसे सुनो। हे पृथापुत्र! तुम यदि ऐसे ज्ञान से कर्म करोगे तो तुम कर्मों के बंधन से अपने को मुक्त कर सकते हो।

इस श्लोक में वर्णित बुद्धियोग भगवान कृष्ण की भक्ति है और यहां पर उल्लिखित सांख्य शब्द का नास्तिक-कपिल द्वारा प्रतिपादित अनीश्वरवादी सांख्य योग से कुछ भी संबंध नहीं है। अत: किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इनका किसी भी प्रकार का संबंध है। न ही उस समय उसके दर्शन का कोई प्रभाव था और न श्री कृष्ण ने ऐसी ईश्वरविहीन दार्शनिक कल्पना का उल्लेख करने की चिंता की। वास्तविक सांख्य दर्शन का वर्णन भगवान कपिल द्वारा श्रीमद् भागवत में हुआ है किन्तु वर्तमान प्रकरणों में उस सांख्य से भी कोई सरोकार नहीं है। 

यहां सांख्य का अर्थ है शरीर तथा आत्मा का अध्ययन। भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा का वैश्लेषिक वर्णन अर्जुन को बुद्धियोग या कर्मयोग तक लाने के लिए किया। अत: भगवान श्री कृष्ण का सांख्य तथा भागवत में भगवान कपिल द्वारा वर्णित सांख्य एक ही हैं। ये दोनों भक्तियोग हैं। अत: भगवान कृष्ण ने कहा है कि केवल अल्पज्ञ ही सांख्य योग तथा भक्तियोग में भेदभाव मानते हैं।

कृष्णभावना भावित कर्म तथा फल प्राप्ति की इच्छा से किए गए कर्म में, विशेषतया पारिवारिक या भौतिक सुख प्राप्त करने की इंद्रिय तृप्ति के लिए किए गए कर्म में प्रचुर अंतर होता है। अत: बुद्धियोग हमारे द्वारा सम्पन्न कार्य का दिव्य गुण है। (क्रमश:)

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