जानें, वैभव लक्ष्मी व्रत की खास पूजन विधि

Edited By Lata,Updated: 01 Feb, 2019 04:25 PM

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हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी के अनेक रूपों की पूजा की जाती है। कोई इन्हें धनलक्ष्मी तो कोई इन्हें वैभव लक्ष्मी के रूप में पूजता है।

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हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी के अनेक रूपों की पूजा की जाती है। कोई इन्हें धनलक्ष्मी तो कोई इन्हें वैभव लक्ष्मी के रूप में पूजता है। कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति वैभव लक्ष्मी का व्रत पूजन हर शुक्रवार को कता है तो उसकी हर मनोकामना माता शीघ्र पूरी करती हैं। इस व्रत को घर का कोई भी सदस्य कर सकता है। यहां तक की कोई भी पुरुष इस व्रत का पालन कर सकता है। इस व्रत को उत्तम फल देने वाला भी कहा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है और माता लक्ष्मी सदैव उनकी रक्षा करती हैं। आज हम आपको इस व्रत की पूजा विधि और नियम के बारे में बताएंगे। 
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वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम
शुक्रवार के दिन प्रातःकाल उठकर स्नानादि करके जय मां लक्ष्मी, जय मां महालक्ष्मी का मन ही मन जाप करते हुए मां वैभवलक्ष्मी को पुरे श्रद्धाभाव से याद करते रहना चाहिए।

11 या 21 शुक्रवार व्रत रखने का संकल्प करके शास्त्रीय विधि के अनुसार पूजा-पाठ और उपवास करना चाहिए।

व्रत की विधि शुरू करने से पहले लक्ष्मी स्तवन का एक बार पाठ करने से लाभ मिलता है।
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घर के मंदिर में श्री यन्त्र जरुर स्थापित करना चाहिए क्योंकि माता लक्ष्मी को श्री यन्त्र अत्यंत प्रिय है।

व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विभिन्न स्वरुप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी, श्री सन्तानलक्ष्मी और श्रीयन्त्र को प्रणाम करना चाहिए।

व्रत के दिन हो सके तो पुरे दिन का उपवास रखना चाहिए। अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन करके इस व्रत का पालन करना चाहिए।

शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बेहद जरुरी होता है जैसे की अगर शुक्रवार के दिन आप प्रवास या यात्रा पर गए हो तो उस शुक्रवार को छोड़कर उसके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए क्योंकि ये व्रत अपने घर पर ही करना चाहिए।
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व्रत वाले दिन अगर कोई स्त्री रजस्वला या सूतकी हो तो उस शुक्रवार के छोड़कर उसके बाद वाले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए। क्योंकि ये व्रत बिल्कुल शुद्ध होकर ही किया जाता है।  

व्रत सामग्री
माता लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरुप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी एवं श्री सन्तानलक्ष्मी और श्रीयन्त्र का चित्र स्थापित करें।उसके बाद खुद के बैठने के लिए साफ़-सुथरा आसन, सोना और अगर सोना न हो तो चांदी की चीज़ और अगर चांदी भी न हो तो रुपया रखें। इसके बाद धूप, दीप, लाल रंग का फूल, चौकी या पाटा, लाल कपडा, ताम्र पात्र (कलश), एक कटोरी कलश पर रखने के लिए, घी, नैवेद्द, फल, हल्दी और कुमकुम रखें।
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व्रत की पूजा विधि 
सबसे पहले सुबह स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें और सारा दिन माता के विभिन्न स्वरूपों को याद करते रहें। 

स्त्री हो या पुरुष संध्या के समय पूर्व दिशा में मुहं करके आसन पर बैठ जाएं। 

मीठी चीजों से बना प्रसाद भी पास में रख लें।

सामने पाटा रखकर उसपर कपड़ा बिछा लें और उस कपडे पर चावल का छोटा सा ढेर बना लें। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रखें और सोने, चांदी या फिर रुपया कटोरी में रखकर कलश के ऊपर रख दें।
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मां लक्ष्मी के सभी रूपों का चित्र और श्रीयन्त्र भी पूजा स्थान पर रख लें।

सबसे पहले श्रीयंत्र और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करें और उसके बाद लक्ष्मी स्तवन का पाठ करें।

कलश के ऊपर रखी कटोरी में गहने या रुपये को हल्दी, कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करें।

लाल रंग का पुष्प चढ़ाएं और कथा करने के बाद विधिवत माता की आरती करें।
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