Vidur Niti: किसी की गलती बताने में न करें देर...

Edited By Updated: 19 Mar, 2022 03:10 PM

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हिंदू धर्म ग्रंथों में जिस तरह चाणक्य का नाम जीवांत है, उसी तरह महात्मा विदुर भी अपने ज्ञान व नीतियों के जरिए जीवांत है। जी हां, हम बात कर रहे माहभारत में अपनी एक अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा विदुर जी की।

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हिंदू धर्म ग्रंथों में जिस तरह चाणक्य का नाम जीवांत है, उसी तरह महात्मा विदुर भी अपने ज्ञान व नीतियों के जरिए जीवांत है। जी हां, हम बात कर रहे माहभारत में अपनी एक अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा विदुर जी की। बताया जाता है कि द्वापर युग में होने वाले महाभारत युद्ध में इनका भी अहम योगदान रहा है। महाकाव्य महाभारत में किए उल्लेख के अनुसार विदुर जी अपने दूरदर्शिता को लेकर प्रचलित थे, इसी के दम पर इन्होंने कौरव कुल के यानि हस्तिनारपुर के राजा धृतराष्ट को उन्होंने महाभारत युद्ध होने से पहले ही उसके दुखदायी अंत के बारे में आगाह कर दिया था। ऐसा कहा जाता है जिस तरह महाभारत युद्ध के दौरान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई नीतियां व उपदेश अधिक प्रसिद्ध है, ठीक उसी तरह विदुर जी की नीतियां भी प्रसिद्ध है। ये भी कहा जाता है कि न केवल धृतराष्ट्र बल्कि स्वयं भीष्म पितामह भी इनसे सलाह लिया करते थे। आज हम आपको महात्मा विदुर जी की ही बताई गई नीति से अवगत करवाने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं सबसे पहले विदुर नीति का ये श्लोक-
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विदुर नीति श्लोक- 
शुभं वा यदि वा पापं द्वेष्यं वा यदि वा प्रियम् ।
अपृष्टस्तस्य तद् ब्रूयाद् तस्य नेच्छेत् पराभवम् ।।

भावार्थ- आज कल के समय को मद्देनजर रखकर बात करें तो लोगों में द्वेष की भावना अधिक हो गई है। इसी के चलते अधिकतर लोग ऐसी कामना रखते हैं कि कोई उनसे आगे न बढ़े। इसलिए लोग अपने सामने वाले को उसकी अच्छी बातें बताते हैं, परंतु उसको कभी उसकी कमी नहीं बताते हैं, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें डर इसलिए लगता है कि कहीं सामने वाला अपने कमी को दूर करके कहीं उनसे आगे न बढ़ जाए। तो वहीं कुछ लोग ऐसा मोह में आकर करते हैं कि कहीं उनके चाहने वाले को उनके द्वारा बताई गई उनकी किसी कमी का बुरा न लग जाए। लेकिन अगर विदुर जी की मानें तो ऐसा करना सही नहीं माना जाता।  

उपरोक्त नीति श्लोक में महात्मा विदुर का मानना है कि माता-पिता को अपनी संतान, या किसी को भी अपने किसी स्नेही व्यक्ति को केवल उसकी अच्छी बातें ही नहीं बल्कि हर तरह की बात बतानी चाहिए। विदुर जी कहते हैं अपने चाहने या स्नेही व्यक्ति के भले के लिए उसे उसके हित और अहित दोनों ही बाते बतानी चाहिए। बल्कि ध्यान रखें कि ऐसा करने में किसी प्रकार की देरी न करें, न ही सामने वाले के पूछने का इंतजार करान चाहिए। 
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विदुर कहते हैं ऐसा करने से आपको स्वयं संतोष प्राप्त होता है कि आपने सारी उचित और अनुचित बातें तथा कार्य को करने के अच्छे या बुरे दोनों प्रकार के परिणामों से व्यक्ति को आगाह कर दिया है। इसके बाद व्यक्ति अपना भला या बुरा देखते हुए अपना निर्णय ले सकता है।

विदुर जी के अनुसार ऐसा करने से दो लाभ होते हैं, पहला यह कि आपको अपराध बोध नहीं होगा कि सब कुछ जानते हुए भी आपने सचेत नहीं किया और दूसरा ये कि वह व्यक्ति भी भविष्य में यह शिकायत नहीं कर सकता कि आप तो मेरे शुभचिंतक थे फिर मुझे क्यों नहीं  सचेत नहीं किया। 
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इस श्लोक का प्रमाण है महाभारत स्वयं। जी हां महाभारत काल में विदुर जी ने कौरवों के युवराज दुर्योधन के धर्म विरुद्ध कार्य के परिणामों को बताते हुए महाराज घृतराष्ट्र को अपनी नीतियां बताईं थीं। परंतु दुर्योधन ने विदुर जी की नीतियों कोमाना नहीं माना जिसका परिणाम कौरवों के नाश के रूप में सामने आया। परंतु महात्मा विदुर ने अपमान और अवहेलना को सहते हुए भी विदुर ने अपना कर्तव्य पूरा किया। अतः विदुर जी का मानना है कि अपनों को बिना कहे सलाह देना चाहिए। 

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