Vishram Ghat Mathura: भाई दूज और नरक चतुर्दशी के दिन इस घाट पर स्नान करने से आत्मा को मिलता है विश्राम

Edited By Updated: 18 Oct, 2025 06:55 AM

vishram ghat mathura

Vishram Ghat Mathura: मथुरा उत्तर प्रदेश का विश्राम घाट-यमुना और यमराज का अद्भुत बंधन दर्शाता है। मथुरा का विश्राम घाट अपने आप में पौराणिक इतिहास का साक्षी है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने जब कंस वध किया, तब वे इसी घाट पर विश्राम करने...

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Vishram Ghat Mathura: मथुरा उत्तर प्रदेश का विश्राम घाट-यमुना और यमराज का अद्भुत बंधन दर्शाता है। मथुरा का विश्राम घाट अपने आप में पौराणिक इतिहास का साक्षी है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने जब कंस वध किया, तब वे इसी घाट पर विश्राम करने आए थे और यमुना जी में स्नान किया था।

Vishram Ghat Mathura

यमराज और यमुना जी का संबंध
यमुना जी को यमराज की बहन कहा गया है। कथा के अनुसार, यमुना ने अपने भाई यमराज से यह वरदान मांगा कि “जो भी भाई दूज के दिन मेरे तट पर स्नान करेगा, उसे मृत्यु और यमराज का भय कभी नहीं रहेगा।”

इसलिए भाई दूज और नरक चतुर्दशी दोनों दिन इस घाट पर स्नान का विशेष महत्व है। हजारों श्रद्धालु इस दिन विश्राम घाट पर यमुना स्नान करते हैं ताकि यमराज के भय से मुक्ति प्राप्त हो सके।

धर्मशास्त्रीय अर्थ
विश्राम घाट नाम का अर्थ ही है वह स्थान जहां आत्मा को विश्राम मिलता है। यह घाट जीवन के कर्म और मृत्यु के शांति मार्ग दोनों का प्रतीक है।

Vishram Ghat Mathura
ततो विश्रांति तीर्थाख्यं तीर्थमहो विनाशनम्। संसारमरू संचार क्लेश विश्रांतिदं नृणाम।

संसार रूपी मरूभूमि में भटकते हुए, त्रितापों से पीड़ित हर तरह से निराश्रित, विविध क्लेशों से क्लांत होकर जीव श्री कृष्ण के इस महातीर्थ में स्नान कर विश्राम अनुभव करता है इसलिए इस तीर्थ का नाम विश्रांति या विश्राम घाट है। विश्राम घाट की संरचना दो-मंजिली है। इसे बनाने के लिए लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। घाट को बुर्ज व खंभों पर बने अद्र्ध-गोलाकार, कांटेदार मेहराबों से सुसज्जित किया गया है। घाट का मध्य क्षेत्र खिले हुए आकर्षक रंगों से सजा हुआ है। यह तीन तरफ से मठों से घिरा हुआ है व चौथी तरफ सीढ़ियां नदी में उतर रही हैं। 

Vishram Ghat Mathura
मध्य क्षेत्र में संगमरमर से निर्मित श्री कृष्ण व बलराम की मूर्तियां नदी की ओर मुख करके स्थापित हैं। मूर्तियों के सामने पांच विभिन्न आकार के मेहराब हैं। बीच का मेहराब पत्थर के कुर्सी आधार व पत्थर के छोटे स्तंभ से निर्मित आयताकार है, जबकि नदी की तरफ वाले मेहराब ऊपरी मंजिल का सहारा लेकर छतरी की आकृति बनाते हैं। यहां अनेक संतों ने तपस्या की एवं अपना विश्राम स्थल बनाया।

उक्त घाट पर भारत के धर्मभीरू राजाओं ने तुलादान (एक पलड़े में स्वयं व दूसरे में अपने वजन के सोना-चांदी जवाहरात) किए थे। तुला को लटकाने के मेहराब आज भी लगे हैं। विश्राम घाट के उत्तर में 12 और दक्षिण में 12 घाट हैं। दक्षिण दिशा के घाटों पर समाधियां जिनमें शंकरजी के मंदिर हैं। ये समाधियां सिंधिया परिवार से संबंधित हैं। देखभाल के अभाव में उक्त समाधियां जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गई हैं। उत्तर दिशा के घाटों में गणेशतीर्थ घाट है, चक्रतीर्थ, कृष्णगंगा, स्वामीघाट, असिकुंड तीर्थ आदि हैं।

Vishram Ghat Mathura

जब शिवाजी महाराज आगरा किले से औरंगजेब की कैद से निकले तब मां जगदंबा (महाविद्या) की पूजा-अर्चना करके स्वर्ण छत्र चढ़ाया। तत्पश्चात गणेशजी का पूजन कर सीधे महाराष्ट्र के प्रतापगढ़ के लिए प्रस्थान किया। गणेशजी व मां जगदंबा के मंदिर आज भी उक्त स्थलों पर हैं।

भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध कर इस स्थान पर विश्राम किया था इसलिए यहां की महिमा अपरंपार है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाबलशाली कंस को मारकर ध्रुव घाट पर उसका अंत्येष्टि संस्कार करवाकर बंधु-बांधवों के साथ यमुना के इस पवित्र घाट पर स्नान कर विश्राम किया था। किंतु भगवान से भूले-भटके जन्म-मृत्यु के अनंत, अथाह सागर में डूबते-उबरते हुए क्लांत जीवों के लिए यह अवश्य ही विश्राम का स्थान है। 

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