Kundli Tv- क्या है महाकाल के भस्म रमाने के पीछे का सच?

Edited By Jyoti,Updated: 10 Sep, 2018 11:50 AM

what is the truth behind mahakal s bhasam

ज्यादातर लोग उज्जैन के प्राचीन महाकालेश्वर मंदिर के बारे में जानते हीं होंगे। पूरे देश में इस मंदिर की भस्म आरती चर्चा का विषय बनी हुई है।

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ज्यादातर लोग उज्जैन के प्राचीन महाकालेश्वर मंदिर के बारे में जानते हीं होंगे। पूरे देश में इस मंदिर की भस्म आरती चर्चा का विषय बनी हुई है। मान्यताओं के अनुसार महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का बहुत ही सुन्दर रूप से वर्णन किया गया है। लेकिन इसका एक सच अभी भी हर किसी के लिए एक रहस्य बना हुआ है।
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बहुत से पुराणों और ग्रथों में शिव की भस्म आरती के बारे में बताया गया है, लेकिन इसे लगाने का असल कारण आज भी किसी को नहीं पता। तो चलिए आपको इससे जुड़ी एक कथा के बारे में बताते हैं, जिसके बारे में आपको बिल्कुल पता नहीं होगा।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के सामने से कुछ लोग एक मुर्दे को लेकर जा रहे थे। जिस दौरान भगवान शिव ने देखा कि उस मूर्दे के साथ-साथ और पीछे चलने वाले लोग राम नाम सत्य है का जैकारा लगा रहे थे। यह सब देखकर भगवान शंकर सोचने लगे कि ये सब लोग इस मुर्दे के पीछे चलते हुए मेरे प्रभु राम का नाम क्यों ले रहे हैं। अपने प्रभु का नाम सुनकर भगवान शंकर भी उस मुर्दे की अंतिम यात्रा में शामिल हो गए और उन सब के साथ मिलकर राम नाम का गुणगान करने लगे।
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लेकिन जैसे ही वह सारे लोग मुर्दे को लेकर शमशान पहुंच तो शिव जी ने देखा कि सभी ने राम का नाम लेना बंद कर दिया और अपनी घर-गृहस्थी की बाते करने लगे। कोई बोला दुकान खोलना है लेट हो रहा है तो कोई बोला इसको भी आज ही मरना था।

शिव सोचने लगे इन्होंने तो मेरे प्रभु का नाम लेना बंद ही कर दिया, फिर थोड़ी देर बाद मुर्दे के जलते ही एक-एक करके सब चले गए। शिव जी वही शमशान में खड़े रहे जब मुर्दा जल गया तो भगवान शिव बोले इसकी वजह से लोग मेरे प्रभु का नाम ले रहे थे ये तो बड़ा महान व्यक्ति है और तुंरत भगवान ने उसकी चिता की भस्म लेकर अपने शरीर में मल ली और तब से भगवान शंकर अपने शरीर भस्म रमाने लगे।
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भस्म को अपनी पत्नी की अंतिम निशानी माना
इसके अलावा शिवपुराण में इससे जुड़ी एक कथा मिलती है, जिसके अनुसार जब देवी सती ने खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया था। तो उनकी मृत्यु का संदेश पाकर  भगवान शिव क्रोध और शोक में अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। वे अपनी पत्नी के मृत शव को लेकर आकाश और धरती पर घूमने लगे। जब श्रीहरि ने शिव जी के इस दुख और क्रोध को देखा तो उन्होंने जल्दी से जल्दी से इसका कोई हल निकालना चाहा। अंत: उन्होंने भगवान शिव की पत्नी के मृत शरीर का स्पर्श कर इस शरीर को भस्म में बदल दिया। हाथों में केवल पत्नी की भस्म को देखकर शिवजी और भी चितिंत हो गए, उन्हें लगा वे अपनी पत्नी को हमेशा के लिए खो चुके हैं।
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अपनी पत्नी से अलग होने के दुख को शिव जी सहन नहीं कर पाए लेकिन उनके हाथ में उस समय भस्म के अलावा और कुछ नहीं था। इसलिए उन्होंने उस भस्म को अपनी पत्नी की अंतिम निशानी समझते हुए अपने शरीर पर लगा लिया ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहें। 

दूसरी ओर एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने साधुओं को संसार और जीवन का वास्तविक अर्थ बताया था जिसके अनुसार राख या भस्म ही इस संसार का अंतिम सत्य है। सभी तरह की मोह-माया और शारीरिक आर्कषण से ऊपर उठकर ही मोक्ष को पाया जा सकता है। 
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