Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Jul, 2023 08:51 AM
आज विश्व का सर्वाधिक चर्चित और चिन्तनीय विषय पर्यावरण है। वृक्षों के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Reason for disasters: आज विश्व का सर्वाधिक चर्चित और चिन्तनीय विषय पर्यावरण है। वृक्षों के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जल का दुरुपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। प्राकृतिक पदार्थों का दोहन मानव के द्वारा किया जा रहा है। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक पदार्थों, वृक्ष, जल, वायु आदि का संरक्षण करने की बजाय उसको नष्ट करने में लगा हुआ है। विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़, भूकम्प, अतिवृष्टि ने जो कहर बरपाया है यह चिन्ता का विषय है।
अगर इसी तरह से हम प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करते रहे तो हमारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे, प्रदूषण युक्त वातावरण, जो केवल बीमारियों के सिवाय कुछ नहीं होगा। गाड़ियो, कारखानों से अंधाधुंध निकलने वाले धुएं से पर्यावरण दिन-प्रतिदिन प्रदूषित हो रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए किसी के पास कोई उपाय नहीं है। पर्यावरण के घटक तत्व हैं वायु, जल, भू्मि, वृक्ष-वनस्पतियां।
अथर्ववेद में सर्वप्रथम जल-वायु के अतिरिक्त औषधियों या वृक्ष-वनस्पतियों को पर्यावरण का घटक तत्व बताया गया है। वेद में इन तत्वों को ‘छन्दस’ कहा गया है। ‘छन्दस’ का अर्थ है ‘आवरक’ या ‘पर्यावरण’। अथर्ववेद का कथन है कि जल, वायु और वृक्ष-वनस्पति पर्यावरण के घटक तत्व हैं और ये प्रत्येक लोक में जीवन शक्ति के लिए अनिवार्य हैं, यदि ये नहीं होंगे तो मानव का जीवित रहना संभव नहीं। इन तत्वों के प्रदूषण या विनाश से पर्यावरण प्रदूषित होता है। आज विश्व भर में भूमि, जल, वायु आदि सबको अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित किया जा रहा है।
यांत्रिक उपकरण इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं। जीवन शक्ति प्राणतत्व या ऑक्सीजन के एकमात्र स्रोत वृक्ष-वनस्पतियों को निर्दयतापूर्वक काटा जा रहा है। यदि वृक्ष नहीं होंगे तो मनुष्य को ऑक्सीजन नहीं मिल पाएगी और वह जीवित नहीं रह सकेगा। वैदिक ऋषियों ने पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए जलवायु और वृक्ष-वनस्पतियों को प्रमुख साधन बताया है।
वायु संरक्षण करें : वेदों में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, द्यु-भू अर्थात भूमि और द्युलोक के संरक्षण की बात अनेक मंत्रों में कही गई है। साथ ही वृक्ष-वनस्पतियों के संरक्षण का आदेश दिया गया है। वेदों में वायु को अमृत कहा गया है। वायु जीवनशक्ति देती है। इसको ‘भेषज’ या ‘औषधि’ कहा गया है। यह प्राणशक्ति देती है और अपान शक्ति के द्वारा सभी दोषों को बाहर निकालती है।
ऋग्वेद में कहा गया है कि हम ऐसा कोई काम न करें, जिससे वायुरूपी अमृत की कमी हो। हम प्राणवायु को कम करते हैं तो अपने लिए मृत्यु का संकट तैयार करते हैं।
जल को व्यर्थ न गंवाएं : वेदों में जल की उपयोगिता और उसके महत्व पर बहुत बल दिया है। जल जीवन है, अमृत है, भेषज है, रोगनाशक है और आयुवर्द्धक है। जल को दूषित करना पाप माना गया है। जल के विषय में कहा गया है कि इसमें सभी रोग नष्ट होते हैं। जल सर्वोत्तम वैद्य है। जल हृदय के रोगों को भी दूर करता है। जल को ईश्वरीय वरदान माना गया है। अनेक मंत्रों में जल को दूषित न करने का आदेश दिया गया है। जल और वृक्ष-वनस्पतियों को कभी हानि न पहुंचाएं।
पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि नदी के किनारे या नदी में जो थूकता है, मूत्र करता है या शौच करता है, वह नरक में जाता है और उसे ब्रह्म हत्या का पाप लगता है।
वृक्ष-वनस्पतियों को बचाएं : वेदों और ग्रंथों में वृक्ष-वनस्पतियों का बहुत महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है। वृक्ष-वनस्पति मनुष्य को जीवनी शक्ति देते हैं और उसका रक्षण करते हैं।
औषधियां प्रदूषण को नष्ट करने का प्रमुख साधन हैं, इसलिए उन्हें ‘विषदूषणी’ कहा गया है। वेद में वृक्षों को ‘पशुपति’ या ‘शिव’ कहा गया है। ये ‘संसार के विष’ यानी ‘कार्बन डाइऑक्साइड’ को पीते हैं और इस प्रकार ये शिव के तुल्य विषपान करते हैं और प्राणवायु या ऑक्सीजन रूपी अमृत देते हैं।
अत: वृक्षों को शिव का मूर्तरूप समझना चाहिए। इसी आधार पर ऋग्वेद में वृक्षों को लगाने का आदेश है। ये जल के स्रोतों की रक्षा करते हैं। एक मंत्र में कहा गया है कि वृक्ष प्रदूषण को नष्ट करते हैं, अत: उनकी रक्षा करनी चाहिए।