Edited By Sonia Goswami,Updated: 23 Jun, 2018 05:00 PM
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने इतिहास की पुस्तक में बदलाव करते हुए किताबों में चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी से जुड़े इतिहास को हटा दिया है।
जयपुरः राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने इतिहास की पुस्तक में बदलाव करते हुए किताबों में चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी से जुड़े इतिहास को हटा दिया है। बोर्ड ने कक्षा 12 की इतिहास की किताब से उस किस्से को हटा दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को शीशे में देखा था।
बता दें कि पद्मिनी से जुड़ा यह किस्सा ‘मुगल आक्रमण: प्रकार और प्रभाव’ के सेक्शन पद्मिनी की कहानी में था। हालांकि अब इसे हटा दिया गया है। बोर्ड ने फिल्म पद्मावत को लेकर हुए बवाल के बाद यह फैसला लिया। अब नई किताबों में पद्मिनी की कहानी को बदल दिया गया है।
पुरानी किताब में क्या लिखा था?
दरअसल साल 2017 की इतिहास के किताब में लिखा गया था, ‘आठ वर्ष तक घेरा डालने के बाद सुल्तान जब चित्तौड़ को नहीं जीत पाया तो उसने एक प्रस्ताव रखा कि यदि उसे पद्मिनी का प्रतिबिंब ही दिखा दिया जाए तो वह दिल्ली लौट जाएगा।’
किताब में आगे लिखा गया था, ‘राणा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। दर्पण में पद्मिनी का प्रतिबिंब देखकर जब अलाउद्दीन वापस लौट रहा था, उस समय उसने रतन सिंह को कैद कर लिया और रिहाई के बदले में पद्मिनी की मांग की।
नई किताब में ये हुआ बदलाव
वहीं साल 2018 के नए संस्करण में अब लिखा गया है, ‘आठ वर्ष तक घेरा डालने के बाद जब सुल्तान चित्तौड़ को नहीं जीत पाया उसने संधि प्रस्ताव के बहाने धोखे से रतन सिंह को कैद कर लिया और रिहाई के बदले में पद्मिनी की मांग की। नए संस्करण में एक नई लाइन भी जोड़ी गई है। इसमें यह लिखा गया है कि पद्मिनी का विवरण साल 1540 में लिखी गई मलिक मोहम्मद जायसी के किताब पद्मावत के अनुसार है।
इस शख्स के कहने पर पद्मिनी के मोह में पड़ा था खिलजी, फिर किया हमला!
गौरतलब है कि पिछले साल निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ को लेकर काफी विवाद हुआ था और राजस्थान सरकार ने भी इस फिल्म का विरोध किया था। उस वक्त कहा जा रहा था कि अब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों में भी पद्मावती के इतिहास में परिवर्तन किया जा सकता है। उस दौरान राजस्थान बोर्ड के चेयरमैन बीएल चौधरी ने बताया था कि किताबों में परिवर्तन किया जा सकता है। चौधरी ने कहा था कि जल्द ही इतिहासकारों से बात करके किताबों में बदलाव किया जाएगा और अगले साल नई किताबें छप सकती है।