किरदार के लिए स्लम्स का एक्सपीरियंस लिया, उनका लहजा सीखा और कपड़े भी इसी हिसाब से पहने: दिव्या

Updated: 11 Sep, 2025 03:57 PM

ek chatur naar starcast exclusive interview with punjab kesari

फिल्म के बारे में स्टारकास्ट नील नितिन मुकेश और दिव्या खोसला और डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। 'एक चतुर नार' डायरेक्टर उमेश शुक्ला की फिल्म है जो 12 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। यह फिल्म थ्रिलर और कॉमेडी का अनोखा मेल है जिसमें लखनऊ के स्लम्स की पृष्ठभूमि पर अमीर-गरीब की ज़िंदगी की टकराहट को दिलचस्प अंदाज में दिखाया गया है। फिल्म में दिव्या खोसला, नील नितिन मुकेश, सुशांत सिंह, यशपाल शर्मा, जाकिर हुसैन, छाया कदम, हेली दारूवाला और गीता अग्रवाल शर्मा शामिल हैं। इस फिल्म के बारे में स्टारकास्ट नील नितिन मुकेश और दिव्या खोसला और डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश  

उमेश शुक्ला

सवाल- इस फिल्म का टाइटल 'एक चतुर नार' कैसे आया?
जवाब-
इस फिल्म का टाइटल कहानी और कैरेक्टर से आया। हमारी मुख्य लड़की बेहद स्मार्ट और चतुर है। जब हमने स्क्रिप्ट लिखी तभी यह महसूस हुआ कि यह टाइटल सबसे ज्यादा सूट करेगा। कहानी के अनुसार ही कैरेक्टर और टाइटल दोनों तय हुए। आपने  यह गाना सुना होगा एक चतुर नार तो हमने भी ह्यूमर और थ्रिलर के संगम के साथ नए रूप में पेश किया है। यह कोई पुराना वर्जन नहीं है बल्कि नया और इंटरेस्टिंग अंदाज है।

सवाल- एक्टिंग से डायरेक्शन तक अब आप ‘एक चतुर नार’ जैसी फिल्म को अपने करियर में कहां प्लेस करते हैं?
जवाब-
देखिए ‘एक चतुर नार’ मेरे लिए एक खास फिल्म है क्योंकि ये अब तक की मेरी फिल्मों से जॉनर के लिहाज से काफी अलग है। मैंने पहले कभी थ्रिलर अटेम्प्ट नहीं किया था लेकिन थिएटर में ज़रूर किया है जैसे गुलाम बेगम बादशाह या शेर छेर जैसे थ्रिलर प्ले किए हैं लेकिन फिल्म में ये मेरा पहला अनुभव है इस जॉनर के साथ। अक्सर ऐसा होता है कि जब आपकी कोई फिल्म जैसे ओह माय गॉड या 102 नॉट आउट हिट होती है तो प्रोड्यूसर्स उसी टोन की स्क्रिप्ट लेकर आते हैं। लेकिन जब ये स्क्रिप्ट आई तो मुझे लगा कि अब इस नए जॉनर को एक्सप्लोर करने का वक्त है। और मेरा हमेशा से मानना रहा है कि फिल्म सिर्फ एक एंटरटेनर बन कर न रह जाए उसमें कोई एक बात ज़रूर हो जो दर्शक अपने साथ लेकर जाए। इस फिल्म में मुझे ह्यूमर और थ्रिल का शानदार मेल भी मिला और जब इतनी मजबूत कास्ट और टीम आपके साथ हो तो आप खुद को वाकई में ब्लेस्ड महसूस करते हैं।

सवाल- आपने थिएटर और फिल्मों दोनों में काम किया है। आपके लिए दोनों में क्या अंतर है और कौन-सा क्राफ्ट ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगता है?
जवाब-
मेरे लिए दोनों क्राफ्ट्स बराबर चुनौतीपूर्ण हैं। थिएटर में आपको सिर्फ सात-आठ सीन में पूरी कहानी कहनी होती है जो अपने आप में एक बड़ा चैलेंज है। वहीं फिल्म में वही कहानी अगर सौ या उससे भी ज़्यादा सीन में फैलानी हो तो उसे उस फॉर्मेट में ढालना भी उतना ही मुश्किल होता है। थिएटर की खास बात ये है कि वहां आपको इंस्टेंट रिस्पॉन्स मिल जाता है अगर कुछ काम नहीं कर रहा तो अगले शो में आप उसे बदल सकते हैं। लेकिन फिल्म में वो मौका नहीं होता इसलिए मैं स्क्रिप्ट मिलने के बाद उसे लोगों को सुनाता हूं रिएक्शन लेता हूं कई लोगों को पढ़ने भी देता हूं जिससे बेहतर समझ बनती है। दोनों ही माध्यमों की अपनी-अपनी खूबियां और चुनौतियां हैं और मैं दोनों को ही पूरी तरह एंजॉय करता हूं।

दिव्या खोसला

सवाल- आपके कैरेक्टर का निर्माण कैसे हुआ? यह आपके वास्तविक व्यक्तित्व से कितना अलग है?
जवाब-
सर ने मुझे बार-बार याद दिलाया कि यह लड़की कमीनी है और मैं वैसी नहीं हूं। इस किरदार के लिए मैंने लखनऊ के स्लम्स का एक्सपीरियंस लिया उनका लहजा सीखा और कपड़े भी उसी हिसाब से पहने। यह काफी चुनौतीपूर्ण था लेकिन इससे सीखने को बहुत मिला। हमने इसे काफी इंट्रस्टिंग बनाने की कोशिश की है।

सवाल- इस फिल्म में अपने किरदार की तैयारी कैसे की?
जवाब-
देखिए हमारी जो कहानी है वो पूरी तरह से ओरिजिनल है तो कहीं से ऐसा नहीं था कि मैं कुछ पहले से जानती हूं। मैं हमेशा सेट पर जाने से पहले अपनी स्क्रिप्ट पढ़ कर जाती थी और कोशिश करती थी कि मैं वो इंसान बन जाऊं।  मैं तो हमेशा अपने कैरेक्टर में रहती थी अगर कोई मुझसे इंग्लिश में भी बात करता है तो मैं तो उससे उसी भाषा में बात करती थी।  मैंने हर उस तरीके को अपनाया जो मेरे कैरेक्टर की मांग थी।

सवाल- आपने अब तक कई शानदार रोल किए हैं तो अब आगे क्या करना चाहती हैं?
जवाब-
मैं ये ज़रूर कहना चाहूंगी कि जब मेरी पिछली फिल्म सावी आई थी तब हर इंटरव्यू में मुझसे यही पूछा जा रहा था कि आपकी ड्रीम फिल्म क्या है और आप क्या करना चाहती हैं। उस समय मेरा जवाब हर बार यही होता था मुझे एक अच्छी कॉमेडी फिल्म करनी है क्योंकि मुझे लगता है कि वो मेरा जॉनर है और मैं उसमें बहुत अच्छा कर सकती हूं। इसलिए मैं बहुत शुक्रगुजार हूं उमेश सर की जिन्होंने मुझे एक चतुर नार जैसी कॉमेडी फिल्म का हिस्सा बनाया। ये मेरे लिए एक नया और एक्साइटिंग जॉनर है। अब उम्मीद यही है कि लोग इसे पसंद करें और अगर ऐसा हुआ तो यकीनन आगे और भी अच्छे मौके मिलेंगे।

सवाल- इस फिल्म में आपके लिए सबसे चैलेंजिंग हिस्सा क्या रहा?
जवाब-
मेरे लिए सबसे चैलेंजिंग यही था कि जो किरदार मैंने निभाया वो मुझसे बिल्कुल अलग था। वो चौल और बस्ती में पली-बढ़ी लड़की है और सच में मैं जाकर कुछ वक्त उस बस्ती में रही नाले के पास उसी माहौल में ताकि उस किरदार को महसूस कर सकूं। आसान नहीं था क्योंकि मैं उस बैकग्राउंड से नहीं आती। लेकिन जब फिल्म बनी और स्क्रीन पर देखा तो जो भी मेहनत और अप्स एंड डाउंस मैंने झेले सब सार्थक लगे। फिल्म इतनी अच्छी बनी है कि मैं वाकई उमेश सर की बहुत शुक्रगुजार हूं।

नील नितिन मुकेश

सवाल- आपके कैरेक्टर में इस फिल्म की अनएक्सपेक्टेड चीज क्या है?
जवाब-
इस फिल्म 'एक चतुर नार' में अभिषेक का जो ग्रे शेड वाला किरदार मैंने निभाया है वो मेरे लिए बेहद खास और यादगार है। मैं उमेश सर का दिल से शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे इस लायक समझा कि मैं इस दमदार कहानी का हिस्सा बन सकूं। हर एक्टर की ख्वाहिश होती है कि उसे ऐसा कोई रोल मिले जो न सिर्फ चुनौतीपूर्ण हो बल्कि लोगों के दिलों में जगह बना ले और मुझे ये किरदार पहली ही स्क्रिप्ट के पांच मिनट सुनते ही ऐसा लगा। इस फिल्म की खास बात ये है कि इसमें हर किरदार में एक टेढ़ापन है चाहे वो दिव्या जी हों, जाकिर भाई, यशपाल जी या गीता जी और इस ग्रे शेड की दुनिया में खुद को साबित करना एक बड़ी जिम्मेदारी थी। मेरा किरदार सिर्फ एक विलेन नहीं है बल्कि उसमें आम आदमी से जुड़ी कई परतें हैं जो उसे बेहद रियल बनाती हैं। कॉमेडी और थ्रिलर का ये अनोखा मेल मेरे लिए पहली बार था और इसने मुझे बतौर कलाकार और भी निखारा। सेट पर सर का मार्गदर्शन मिलता रहा कि कहां थोड़ा कंट्रोल करना है, कहां थोड़ा और देना है और यही वजह रही कि परफॉर्मेंस में एक ईमानदारी बनी रही। जब आप कैरेक्टर को सच्चाई से निभाते हैं तो बिना किसी स्लैपस्टिक के भी दर्शकों को हंसी आती है और यही इस फिल्म की खूबसूरती है।

सवाल- आपने इतने अलग-अलग कैरेक्टर निभाए हैं यह किरदार आपके पिछली फिल्मों से कितना अलग है?
जवाब-
मुझे हमेशा से ग्रे शेड किरदारों की तरफ एक खास आकर्षण रहा है जॉनी गद्दार से लेकर अब तक। जब मेरी पहली फिल्म आ रही थी तब दौर लव स्टोरीज़ का था लेकिन मुझे एक ही समय पर दो फिल्मों का ऑफर मिला जाने तू या जाने ना और जॉनी गद्दार। मैं जानता था कि एक ही फिल्म मिलेगी और उस वक्त मेरा आत्मविश्वास यही कह रहा था कि अगर जॉनी गद्दार करूं तो कम से कम खो नहीं जाऊंगा खुद को साबित करने का मौका मिलेगा। अब तक 30 से ज़्यादा फिल्में कर चुका हूं कई नेशनल अवॉर्ड विनिंग डायरेक्टर्स के साथ काम किया है और हर बार मेरा झुकाव उन्हीं किरदारों की ओर रहा जो सिर्फ अच्छे या बुरे नहीं होते बल्कि जिनमें लेयर्स होती हैं जैसे सात खून माफ, न्यूयॉर्क, वज़ीर या लफंगे परिंदे में। जब उमेश सर ने ये नया किरदार ऑफर किया तो पहला रिएक्शन यही था कि ये हीरो है विलेन है या क्या है पर जैसे जैसे कहानी खुलती गई समझ आया कि यही इसकी खूबसूरती है। ये एक ऐसा किरदार है जो रियल है हालातों में फंसा हुआ है और जिन्दगी के उतार-चढ़ाव के साथ खुद भी बदलता है। उसमें एक कॉमिक टोन भी है पर सच्चाई भी है और ये रिलेटेबिलिटी ही मेरे लिए इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी रही। और जैसा कि दिव्या ने ट्रेलर में भी कहा ये सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि एक स्ट्रैटा की टकराहट है, नाले और नदी किनारे की दुनिया का फर्क, अमीर-गरीब की सोच का फर्क जो अक्सर हम नजरअंदाज कर देते हैं। इस फिल्म में बहुत सारे ट्विस्ट्स हैं इसलिए ज्यादा खुलकर नहीं बोल सकता लेकिन इतना कहूंगा कि ये कहानी वाकई में बहुत दिलचस्प है और इसका हिस्सा बनना मेरे लिए बेहद खास अनुभव रहा।

सवाल- दिव्या के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
जवाब-
मैं सच में दिव्या जी की खास तौर पर तारीफ करना चाहता हूं। हमने उन्हें अब तक ग्लैमरस और ब्यूटीफुल रोल्स में देखा है और वो वाकई बेहद खूबसूरत हैं लेकिन इस फिल्म में उन्होंने खुद को पूरी तरह एक अलग मोल्ड में ढाला है। जब हम पहले दिन सेट पर मॉनिटर पर सीन देख रहे थे तो सच कहूं तो मुझे झटका लगा कि वो ये सब इतनी सहजता से कर रही हैं। किरदार का लुक, बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी सब कुछ ऑन पॉइंट था। मेरा मानना है कि अगर कोई एक्टर अपने लुक्स के साथ किरदार में रियल दिखे तो आधी लड़ाई वहीं जीत ली जाती है। मैं खुद भी इस बात से गुज़रा हूं कि कैसे एक फिक्स इमेज को तोड़ना पड़ता है तो मैं समझ सकता हूं कि उनके लिए ये कितना चैलेंजिंग रहा होगा। लेकिन उन्होंने जिस तरह से किरदार निभाया वो इस फिल्म की बड़ी ताकत है और मज़ेदार बात ये है कि फिल्म शुरू होने से ठीक पहले हमारी एक गणपति दर्शन के दौरान मुलाकात हुई थी और वहीं मैंने उनसे कहा था कि मैं आपसे काम करने की उम्मीद कर रहा हूं और कुछ ही समय में ये सच हो गया। अब हम बस यही मैनिफेस्ट कर रहे हैं कि हमारी फिल्म ब्लॉकबस्टर हो।

 

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