Film Review : रेप को सबसे जघन्य अपराध क्यों नहीं माना जाता? महत्वपूर्ण सवाल उठाती है फिल्म 'कूकी'

Updated: 28 Jun, 2024 02:29 PM

kooki movie review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है फिल्म कूकी

फिल्म समीक्षा: कूकी
कलाकार: रितिशा खाउंड, राजेश तैलंग, रीना रानी, ​​दीपानिता शर्मा, देवोलीना भट्टाचार्जी, रितु शिवपुरी
बैनर: निरी मीडिया ओपीसी प्राइवेट लिमिटेड
प्रोड्यूसर: डॉ. जुनमोनी देवी खाउंड
निर्देशक: प्रणब जे डेका
रेटिंग : 3*/5

 

कूकी: फिल्म कूकी असम की एक गैंगरेप पीड़िता 16 वर्षीय किशोरी की कहानी है, जो गैंगरेप जैसे क्रूरतम क्राइम को जघन्य अपराध  न मानने वाली भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाती है। फिल्म में रेप पीड़िता की मनोदशा और उसके दर्द को बहुत ही मार्मिक ढंग से दर्शाया गया है। फिल्म में रितिशा खाउंड ने मुख्य किरदार निभाया है तथा राजेश तेलंग, दिपानिता शर्मा अटवाल, रितु शिवपुरी, देवलीना भट्टाचार्जी एवं बोधिसत्व शर्मा आदि कलाकार अन्य किरदारों में हैं।

 

कहानी: फ़िल्म की शुरुआत स्वीट सिक्सटीन की प्रेम कहानी से होती है लेकिन कूकी की ज़िंदगी कैसे गैंग रेप के बाद बदल जाती है। निर्मात्री जुनमोनी देवी खाउंड की फ़िल्म कूकी इसी कहानी को बयान कर रही है। एक 16 वर्षीय लड़की कूकी का गैंगरेप होता है तो उसके दिल और ज़ुबान से जब यह आह निकलती है तो फिर दर्शकों के दिलों और रूह को छू जाती है। कूकी का खूबसूरत जीवन और सपनों भरा भविष्य सामूहिक बलात्कार के द्वारा बर्बाद कर दिया जाता है। दोषियों के खिलाफ अदालत के फैसले से उसे लगता है कि उसके साथ विश्वासघात हुआ है और एक पीड़ित के तौर पर उसे इंसाफ नहीं मिला है।

 

 

एक्टिंग :  इस संवेदनशील फ़िल्म में कूकी का टाइटल रोल रितीषा खाउंड ने बहुत ही नेचुरल ढंग से निभाया है। इतनी सी उम्र में उन्होंने इतने चुनौतियों भरे रोल को जिया है और प्रभावित किया है वह बधाई की पात्र हैं। बिग बॉस फेम टीवी स्टार देवोलीना भट्टाचार्जी ने इसमें एक पत्रकार की भूमिका निभाई है। राजेश तैलंग ने धनंजय मिश्रा के रूप में भी असरदार अदाकारी की है। सभी कलाकारों ने अपनी-अपनी भूमिकाओं को बखूबी निभाया है।

 

 

निर्देशन : जहां तक फ़िल्म के निर्देशन का सवाल है, निर्देशक प्रणब जे. डेका ने कुशल निर्देशन किया है। कई नाजुक दृश्यों को उन्होंने भलीभाँति फिल्माया है। बलात्कार जैसे मामले में भी विक्टिम को पुलिस के सामने, अदालत में स्टेटमेंट देना पड़ता है भले ही वह किसी भी स्थिति में हो। इस पीड़ा को एक सीन के माध्यम से फ़िल्म में दर्शाया गया है जब पुलिस से डॉक्टर कहता है कि वो ज़िंदा है अपने आप में यही एक करिश्मा है। स्टेटमेंट देने का तो अभी सवाल ही नहीं उठता। उसके वकील पिता कूकी को समझाते हैं कि तुम्हे तकलीफ से गुजरना होगा मगर स्टेटमेंट देना होगा। फिर वह पूरा बयान देती है रोते हुए चिल्लाते हुए। यह सब सीन कहीं गहरे रूप से दर्शकों के मन मस्तिष्क में उतर जाते हैं। फ़िल्म के क्लाइमेक्स में जब कूकी अपना एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर करती है तो उसे देखने वाले होश खो बैठते हैं। इतना इम्प्रेसिव क्लाइमेक्स सीन बहुत कम ही फिल्मो में देखने को मिलता है जिस तरह इसे पेश किया गया है वो देखने लायक है।

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