Interview: नए दौर में काम करना चुनौतीपूर्ण, समय के साथ नई चीजों को अपनाना जरूरी: सोनाली बेंद्रे

Edited By Varsha Yadav,Updated: 02 May, 2024 10:44 AM

sonali bendre jaideep ahlawat shriya exclusive interview for the broken news 2

‘द ब्रोकन न्यूज सीजन 2' के बारे में सोनाली बेंद्रे, जयदीप अहलावत और श्रिया पिलगांवकर ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/ जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:

नई दिल्ली। वेब सीरीज 'द ब्रोकन न्यूज 2' का बेसब्री से इंतजार करने वालों के लिए खुशखबरी है क्योंकि सोनाली बेंद्रे, जयदीप अहलावत और श्र‍िया पिलगांवकर की यह लोकप्रिय वेब सीरीज जल्द ही एक बार फिर आपका मनोरंजन करने आ रही है। दूसरे सीजन में एक बार फिर मीडिया कंपनियों के बीच काफी प्रतियोगिता नजर आने वाला है। सीरीज का निर्देशन विनय वाइकुल ने किया है। ट्रेलर रिलीज होने के साथ ही दर्शकों में काफी उत्साह नजर आ रहा है। 'द ब्रोकन न्यूज' का दूसरा सीजन 3 मई, 2024 से ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम होगा। ‘द ब्रोकन न्यूज सीजन 2' के बारे में सोनाली बेंद्रे, जयदीप अहलावत और श्रिया पिलगांवकर ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/ जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:

 

सोनाली बेंद्रे

Q. 80 और 90 के दशक की अभिनेत्रियां आज भी इंडस्ट्री में काफी सक्रिय हैं, इसका श्रेय आप किसको देती हैं?  
-मुझे ऐसा लगता है कि ये समय हमें मिला है, जब बेहद खूबसूरत कहानियां लिखी जा रही हैं। जिनका हिस्सा बनने का हमें मौका मिल रहा है। हमसे पहले की जो अभिनेत्रियां थीं, उन्हें शायद ऐसा मौका नहीं मिला। वह भी अपने समय की बेहतरीन अभिनेत्री थीं लेकिन अब नया दौर है, जो सबके लिए बहुत अच्छा है। पहले कभी इस तरह के किरदार नहीं लिखे गए। इतने अवसर नहीं थे। शायद हम खुशकिस्मत हैं, जो हमें ऐसे किरदार मिल रहे हैं।


Q. पहले के मुताबिक आज काम करना कितना मुश्किल या आसान है?
-मेरा मानना है कि जब हम किसी काम को एन्जॉय करते हैं तो वह हमें उतना मुश्किल नहीं लगता है लेकिन हर काम मुश्किल होता है। कोई भी चीज मेहनत के बिना तो पूरी होती ही नहीं है और न ही बिना मेहनत के कुछ मिलता है। मैं हमेशा यही कहती हूं कि शॉर्टकट जैसा कुछ होता ही नहीं है। यह सिर्फ बताने के लिए होता है। नया काम चुनौतीपूर्ण तो रहता ही है क्योंकि आप एक नए दौर में आए हो। पहले काम करने में और अब करने में काफी बदलाव आ चुके हैं। फिर जब हम नए कलाकारों के साथ काम करते हैं तो लगता है कि कैसे तैयार होकर आएं जो हम कुछ अलग न लगें। हमें समय के साथ नई चीजों को अपनाना होता है।

Q. आपको टैलेंट शो, फिल्मों और ओ.टी.टी. तीनों का अनुभव है तो आप इन सबमें क्या फर्क पाती हैं?
- जो भी रिएलिटी या टैलेंट शो हैं, उनमें कैमरे के सामने मैं किसी किरदार में नहीं होती। जो भी होता है, रियल दिखता है और इस दौरान नए-नए लोगों से मिलना मैं काफी एन्जॉय करती हूं। रही बात ओ.टी.टी. या फिल्मों की तो कैमरे के सामने एक्टिंग तो वही रहती है, बस हर किरदार की मांग अलग होती है। फिल्म में टाइम कम होता है तो आपको कम पहलू दिखाने का मौका मिलता है। वहीं, सीरीज में समय ज्यादा होता है तो चीजों को एक्सप्लेन करने का मौका मिल जाता है।

 

जयदीप अहलावत
Q. एफ.टी.आई.आई. में आने का फैसला आपने कैसे किया? क्या आप शुरुआत से ही एक्टर बनना चाहते थे?
- मैंने कभी भी ऐसा कुछ प्लान नहीं किया था, न ही कभी एफ.टी.आई.आई. को लेकर कुछ सोचा था। बस, चीजें होती चली गईं। कभी सुना भी नहीं था। फिर मैंने ही कहा था कि मुझे ट्रेनिंग करनी है क्योंकि मुंबई जाना था। उसके बाद मुंबई गए और पता भी नहीं था कि किस तरह काम मिलेगा और किस तरह काम करना है। आपको नहीं पता होता कि आप आगे क्या करेंगे? मैंने कभी एक्टर बनने का भी नहीं सोचा था।

जब सी.डी.एस. में सफलता नहीं मिली तो मन में था कि 20 साल का लड़का जिसके ईर्द-गिर्द वहीं चीजें घूमती थीं उसे आर्मी और उसके बाहर की चीजें नहीं दिखाई दे रही थीं। फिर थिएटर देखा, उसमें रुचि दिखाई। फिर थिएटर किया और फिर से पढ़ाई भी की। तब एक ऐसा समय आता है कि अब क्या करना है। तब मेरे थिएटर गुरु ने कहा कि तू मंच ही कर। तू यही कर सकता है तो मैंने कहा कि मैं ऐसे मुंबई नहीं जाऊंगा। फिर मैंने एफ.टी.आई.आई. ज्वाइन किया। एफ.टी.आई.आई. में बहुत अच्छा बैच मिला। उन दो सालों में मैंने बहुत कुछ सीखा। वहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई और काम मिलता रहा।

Q. आजकल एक्टर्स अपना ज्यादातर ध्यान फिजिकल अपीयरेंस पर देते हैं? इस पर आपका क्या कहना है?
- मुझे ऐसा लगता है कि जिस चीज की जरूरत है, वो उसे पूरा करते हैं। ऐसा नहीं है कि वह अपना काम नहीं कर रहे हैं। वह वही कर रहे हैं, जिसकी रिक्वायरमेंट है। अगर फिल्म में क्राफ्ट की जरूरत है ही नहीं तो ध्यान तो बॉडी पर ही होगा ना और बॉडी बनाना भी बहुत डेडिकेशन वाला काम है। यह एक फुल टाइम जॉब है। यह कोई मजाक नहीं है, वैसी डेडिकेशन चाहिए होती है।

 

श्र‍िया पिलगांवकर

Q. ओ.टी.टी. पर आपको काफी पसंद किया जा रहा है, ये फेज आपको कैसा लग रहा है?
- मैं यह नहीं कहूंगी कि ये बस एक फेज है। मैं चाहती हूं ये सब कुछ इसी तरह लगातार चलता रहे। इस बात के लिए खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि मुझे अच्छी पटकथाएं मिली हैं। मैं खुद को ओ.टी.टी. एक्टर नहीं कहूंगी क्योंकि मैं फिल्में और ओ.टी.टी. दोनों कर रही हूं। ये बैलेंस मुझे रखना है क्योंकि ये दोनों ही माध्यम अलग हैं। ओ.टी.टी. पर जो मुझे काम मिला है वो शानदार हिस्सा रहा है। मैंने ज्यादा फिल्में नहीं की हैं तो मैं और भी फिल्में करना चाहती हूं। आज के समय में कमाल की कहानियां लिखी जाती हैं जिनमें मुझे अच्छे किरदार करने का मौका मिला है। मैं नई-नई चीजें करना चाहती हूं और लोगों को हैरान करना चाहती हूं।

Q. आप ट्राेलिंग के साथ कैसे मैनेज करती हैं?
- हम एक्टर हैं तो हमें तारीफ और ट्रोलिंग दोनों ही देखने और सुनने को मिलती हैं और  ट्रोलिंग से मुझ पर प्रभाव भी पड़ता है लेकिन 5-10 मिनट में ओवरकम भी हो जाता है। अचानक से तो मैं चिल नहीं होती, न इग्नोर करती हूं लेकिन थोड़ी देर बाद फिर दिमाग से वो चीज निकल जाती हैं लेकिन मैं ये जरूर कहूंगी कि मुझे ट्रोलिंग से फर्क पड़ता है। 

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