कश्मीर वाला मॉडल और रणनीति धीरे-धीरे बंगाल में भी लागू की जा रही: विवेक रंजन अग्निहोत्री

Updated: 22 Aug, 2025 01:01 PM

vivek ranjan agnihotri exclusive interview with punjab kesari

फिल्म द बंगाल फाइल्स के बारे में डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। विवेक रंजन अग्निहोत्री द्वारा डायरेक्टेड फिल्म द बंगाल फाइल्स 5 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। इस फिल्म कई मंझे हुए कलाकार नजर आने  वाले हैं। इस फिल्म में बंगाल के एक ऐसे किस्से को दिखाया गया जो आज भी कई लोगों को नहीं पता है। फिल्म द बंगाल फाइल्स में मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार,सौरव दास,अनुपम खेर,पुनीत इस्सर, शाश्वत चटर्जी, दिव्येंदु भट्टाचार्य और राजेश खेड़ा नजर आने वाले हैं। इस फिल्म के बारे में डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...

विवेक रंजन अग्निहोत्री

सवाल 1:‘बंगाल फाइल्स’ के ट्रेलर में आपने कहा, 'If Kashmir hurt you, Bengal Files will haunt you' ऐसा क्यों कहा आपने?
जवाब:
इस लाइन के पीछे एक बहुत गहरी ऐतिहासिक और सामाजिक सोच है। 'द कश्मीर फाइल्स' की तरह ही 'द बंगाल फाइल्स' भी भारत के बंटवारे और उससे जुड़ी एक खास रणनीति की तरफ इशारा करती है। बंटवारे के समय मुस्लिम लीग की एक रणनीति थी भारत की जनसंख्या संरचना को इंच दर इंच बदलना। उनका सपना था कि कोलकाता, मुंबई और हैदराबाद जैसे बड़े शहर भी उनका हिस्सा बनें लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिससे उन्हें अफसोस रह गया। उन्होंने बंटवारे को एक 'unfinished project' करार दिया और वही रणनीति बाद में कश्मीर में लागू की गई। कश्मीर में किस तरह से एक पूरी हिंदू कम्युनिटी को नरसंहार और हिंसा के जरिए बेदखल कर दिया गया यह इतिहास का एक बहुत ही दर्दनाक अध्याय है। बहुत से लोग यह नहीं जानते कि वहां सिखों को भी कतार में खड़ा करके गोलियों से मार डाला गया था। अब वही मॉडल और रणनीति धीरे-धीरे बंगाल में लागू की जा रही है अवैध घुसपैठ, जनसंख्या संतुलन में बदलाव, युवाओं का कट्टरपंथ की ओर बढ़ना और एंटी-इंडिया सोच का फैलना। बंगाल में आज भारी सांप्रदायिक हिंसा देखी जा रही है। इसलिए जब कश्मीर की कहानी ने लोगों को झकझोरा, तो बंगाल की सच्चाई उन्हें और भी ज्यादा बेचैन कर देगी यही वजह है कि यह लाइन ट्रेलर में कही गई है।

सवाल 2: बंगाल में 'द बंगाल फाइल्स' के ट्रेलर लॉन्च पर काफी विवाद और हंगामा हुआ। इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब:
इस विवाद को मैंने नहीं बल्कि वहां की राज्य व्यवस्था ने पैदा किया। मैं तो एक फिल्ममेकर हूं और अपनी फिल्म का ट्रेलर दिखाने गया था। लेकिन जिस तरह से राज्य सरकार ने पुलिस का इस्तेमाल करके ट्रेलर लॉन्च रोकने की कोशिश की, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था। पहले मल्टीप्लेक्स पर दबाव बनाकर इवेंट कैंसिल कराया गया, फिर एक फाइव स्टार होटल में होने वाला ट्रेलर लॉन्च भी रद्द करवाया गया। वहां हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस सामने होते हुए भी कुछ नहीं कर रही थी। पार्टी वर्कर्स ने जबरन घुसपैठ की, भगदड़ मच गई और कई युवा महिला पत्रकारों को चोटें आईं। मैंने खुद अपनी पल्लवी को भीड़ से बचाकर निकाला। यह सब देखकर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि बंगाल में लॉ एंड ऑर्डर जैसी कोई चीज नहीं है। यह घटना मुझे ताउम्र परेशान करेगी, लेकिन अब मैं आगे बढ़ना चाहता हूं और अपने सिनेमा की बात करना चाहता हूं। 'द बंगाल फाइल्स' सिर्फ एक मुद्दा नहीं एक सिनेमा अनुभव है जिसमें सिनेमैटोग्राफी, तकनीक और कंटेंट, सभी स्तर पर बहुत कुछ कहने को है। मैं चाहता हूं कि खासतौर पर युवा और जेन-ज़ी इसे देखें और सोचें।

सवाल 3: क्या आपको लगता है कि पश्चिम बंगाल सरकार फिल्म के विरोध में होने के कारण वहां 'द बंगाल फाइल्स' की रिलीज में रुकावट आ सकती है? 
जवाब:
मुझे सबसे बड़ा आश्चर्य इसी बात पर है कि आखिर इस फिल्म का विरोध क्यों हो रहा है? मैंने किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत नहीं, बल्कि एक इतिहास की सच्चाई को दिखाने की कोशिश की है। अगर कोई मेरी फिल्म में अपने पूर्वजों की पीड़ा, दुख, और इतिहास देखे तो क्या उसका सम्मान नहीं किया जाना चाहिए? क्या सिर्फ इसलिए फिल्म को बैन कर दिया जाए कि वो कड़वी सच्चाई दिखा रही है? ये तो साफ तौर पर भारत के आम लोगों और बंगाल के नागरिकों के साथ अन्याय है। जो लोग संविधान की शपथ लेकर सत्ता में हैं उनकी जिम्मेदारी है कि वो "वी द पीपल ऑफ इंडिया" की भावनाओं और अधिकारों की रक्षा करें न कि उन्हें कुचलें। अगर कोई इस फिल्म को रोकता है तो मेरे पास एकमात्र रास्ता कानून का है। मैं कोई हिंसा नहीं कर सकता न ही मेरे पास ताकत है। मैं कोर्ट जाऊंगा न्याय का सहारा लूंगा। 

सवाल 4: 'द बंगाल फाइल्स' की विदेशी स्क्रीनिंग्स में कई दर्शकों का कहना था कि उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं था। ऐसा क्यों है और आज के समय में इसे जानना कितना जरूरी है?
जवाब:
यह बहुत चौंकाने वाली बात है कि एक इतना बड़ा ऐतिहासिक सत्य, जिसे दुनिया को जानना चाहिए था, उसी देश के लोग नहीं जानते जहां यह घटना घटी। 'द बंगाल फाइल्स' भले ही बंगाल पर केंद्रित है, लेकिन यह भारत की कहानी है पूरे भारत के बंटवारे की कहानी। बंगाल का विभाजन तो दो बार हुआ पहले 1905 में और फिर 1947 में, और 1971 में बांग्लादेश बनने की त्रासदी भी इसी इतिहास से जुड़ी है। 'डायरेक्ट एक्शन डे' और 'नोआखली नरसंहार' जैसे भीषण घटनाक्रम, जिनमें हजारों निर्दोष मारे गए और कोलकाता की सड़कों पर महीनों तक लाशों की बदबू फैली रही उसे इतिहास में कहीं दबा दिया गया। सोचिए क्या कोई यहूदी बच्चा होलोकॉस्ट से अनजान होता है? कोई अफ्रीकी मूल का बच्चा स्लेवरी से? या जापानी बच्चा हिरोशिमा-नागासाकी से? फिर हमारी नई पीढ़ी इस सबसे अनजान क्यों है? जब तक हम अपने इतिहास को समझेंगे नहीं, उससे सबक नहीं लेंगे, तब तक वही गलतियां दोहराते रहेंगे। और यही हो रहा है आज भी भारत में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा उसी जड़ से उपजी है। इतिहास को जानना, उसे समझना और याद रखना इसलिए जरूरी है ताकि हम दोबारा वही दर्द न झेलें।

सवाल 5: आपके अनुसार हमें अपने ही इतिहास की सच्चाई क्यों नहीं पता? ये गलती  किसकी है?
जवाब:
इस सच्चाई से अनजान रहने की दो बड़ी वजहें हैं। पहली, हमारा एजुकेशन सिस्टम जो बच्चों को सिर्फ डॉक्टर-इंजीनियर बनाने की फैक्ट्री बन गया है न कि सोचने-विचारने वाले थिंकर्स, राइटर्स या सोशल रिफॉर्मर्स तैयार करने वाला माध्यम और दूसरी बड़ी वजह है हमारी सामूहिक मानसिकता जो सदियों की गुलामी और पीड़ा से इतनी दब गई है कि हमने दर्द को व्यक्त करना ही छोड़ दिया है। भारत में बच्चों को बचपन से ही सिखाया जाता है चुप रहो, सह लो, सवाल मत उठाओ। यह मानसिकता हमें दर्द को स्वीकारने से रोकती है जबकि हर हीलिंग प्रोसेस की शुरुआत उसी स्वीकारने से होती है। भारत का ऐतिहासिक ट्रॉमा बारह सौ साल की गुलामी, अत्याचार, नरसंहार उसे कभी खुले तौर पर स्वीकारा ही नहीं गया। इसके पीछे एक और बड़ा झूठ काम करता है वेस्टर्न आइडियोलॉजी से प्रभावित हमारी सोच जो मानती है कि मेजॉरिटी मतलब अप्रेसर और माइनॉरिटी मतलब अप्रेस्ड। जबकि भारत का सच उल्टा है यहां पर सदियों तक माइनॉरिटी शासकों ने बहुसंख्यक जनता को गुलाम बनाए रखा। इस झूठ ने हमारे आत्मगौरव को कुचल दिया। 'द बंगाल फाइल्स' जैसी फिल्में इस झूठ को चुनौती देती हैं और हमें अपने दर्द को स्वीकार कर उससे बाहर निकलने का रास्ता दिखाती हैं। जब हम अपने इतिहास को ईमानदारी से स्वीकार करेंगे तभी समाज के लड़के-लड़कियां गर्व से सिर उठाकर चलेंगे और भारत अपनी वास्तविक ताकत को पहचान पाएगा।

सवाल 6: कम्युनल वायलेंस दिखाते वक्त क्या आप इतिहास को सच दिखाने पर फोकस करते हैं या दर्शकों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित रहते हैं?
जवाब:
देखिए, अगर केवल फिल्म देखकर लोगों में नफरत पैदा होती, तो हर एक्शन फिल्म देखकर लड़कों को सड़क पर निकलकर गुंडों और पुलिस वालों से लड़ जाना चाहिए था लेकिन ऐसा होता नहीं है। मेरी फिल्मों का मकसद नफरत फैलाना नहीं, बल्कि "आर्ट ऑफ एब्सेंस" के ज़रिए यह दिखाना है कि जब इंसानियत गायब हो जाती है, तो समाज किस हद तक गिर सकता है। मेरी कोशिश यही रहती है कि दर्शक इन घटनाओं को देखकर सोचें कि ऐसा दोबारा कभी न हो। जैसे ‘कश्मीर फाइल्स’ देखकर लोगों में कश्मीरी पंडितों के लिए सहानुभूति और संवेदना जागी न कि नफरत। ‘द बंगाल फाइल्स’ भी ऐसी ही फिल्म है यह जोड़ने का काम करती है, तोड़ने का नहीं। इतिहास को सच-सच बताना जरूरी है और जो लोग उसे छुपाना चाहते हैं वही सबसे ज्यादा विरोध करते हैं। अगर कोई कमरे में चोर है और आप बस इतना कह दें कि यहां चोर है, तो सबसे पहले वही चोर चिल्लाएगा कि आप झूठ बोल रहे हैं। यही सच्चाई है जो लोग हकीकत से डरते हैं, वो ही ‘हेट’ की बात करते हैं। मेरा काम सच दिखाना है, संवेदना जगाना है न कि उकसाना।

सवाल 7: इस फिल्म की कास्टिंग के बारे में बताइए। क्या आप वही एक्टर्स लेकर आए जो आपने पहले से सोचे थे ?
जवाब:
जी बिल्कुल जो एक्टर्स मैंने सोचे थे वही कास्ट हुए हैं। मैंने कभी दूसरे नाम पर विचार नहीं किया। जैसे राजीव लाल रॉय चौधरी के लिए मैंने पहले ही देबू यानी देबेंदु को ही लिखा था क्योंकि वह एक बहुत अच्छे कलाकार हैं। गांधी के किरदार के लिए खैर साहब को चुना गया  और मैडम के लिए भी वही कलाकार चुना गया जो मैंने सोचा था। मां भारती के किरदार के लिए मैं पल्लवी को लेना चाहता था लेकिन शुरुआत में वह तैयार नहीं थीं क्योंकि उन्हें लगा कि वे इतनी बुजुर्ग महिला का रोल निभा नहीं पाएंगी। लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि उम्र से ज्यादा जरूरी है आपकी एक्टिंग की गहराई और आखिर में उन्होंने इस रोल को स्वीकार कर लिया। पल्लवी ने मां भारती का किरदार बहुत ही भावुक और असरदार तरीके से निभाया है जो आपके रोंगटे खड़े कर देगा। मिथुन चक्रवर्ती और दर्शन जैसे कलाकार भी डायलॉग्स के साथ बिल्कुल फिट रहे और दर्शन के साथ थोड़ी तारीखों को लेकर समस्या थी लेकिन मैंने उन्हें भरोसा दिलाकर काम करवाया। पल्लवी कास्टिंग में बहुत सक्रिय रहती हैं, वे कई ऑडिशन लेती हैं और हम कभी कास्टिंग में कोई समझौता नहीं करते। हमारे फिल्म के टीजर में 16 एक्टर्स के केवल एक-एक एक्सप्रेशन हैं जो आधे-आधे सेकंड के हैं उससे ही आप समझ सकते हैं कि परफॉर्मेंस का स्तर कितना ऊंचा है।

सवाल 8: फिल्म 'बंगाल फाइल्स' देखने के बाद दर्शक कौन सा इमोशन लेकर बाहर निकलेंगे?  
जवाब:
देखिए मैं यह तो बिल्कुल नहीं कह सकता कि दर्शक क्या महसूस करेंगे लेकिन मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि फिल्म का असर गहरा है। अभी तक हमने अमेरिका में लगभग बारह हाउसफुल स्क्रीनिंग्स की हैं जिनमें विभिन्न जाति, भाषा और समुदाय के लोग शामिल थे जिनमें बंगाली, तेलुगु, यूएस के लोग, ब्लैक्स, व्हाइट्स, स्पैनिश, गुजराती सभी थे। हर जगह एक समान प्रतिक्रिया मिली है। जब इंटरवल होता है तो लोग अपनी सीट से उठते नहीं, एक-दूसरे की तरफ देखते नहीं, और पूरी थिएटर में सन्नाटा छा जाता है। फिल्म खत्म होने के बाद भी लोग वहीं बैठे रहते हैं एक-दूसरे से नजरें नहीं मिलाते। कई जगहों पर लोगों की भावुकता इतनी गहरी होती है कि वे रो भी पड़ते हैं। मैं तो पहले ही कह रहा हूं कि पंजाब केसरी के दर्शक अपने साथ टिश्यू बॉक्स लेकर जाएं खासकर महिलाएं। इस फिल्म को देखकर लोगों को दुख और गुस्सा दोनों महसूस होंगे कि आखिर यह सच्चाई हमसे क्यों छुपाई गई? कौन लोग हैं जिन्होंने इसे दबाया? और आज भी इसे दबाने की कोशिश क्यों हो रही है? इस बात पर मुझे बहुत गुस्सा आता है और मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म का यही असर और हर दर्शक तक पहुंचेगा।

सवाल 9: आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में बताइए? क्या अभी कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करने वाले हैं?
जवाब:
अभी फिलहाल कोई नया प्रोजेक्ट शुरू नहीं है क्योंकि अभी ‘बंगाल फाइल्स’ को रिलीज करना और उसके प्रचार-प्रसार पर ध्यान देना जरूरी है। इसके बाद भविष्य में कुछ नया बनाने का विचार होगा। वैसे मैंने महाभारत नाम से एक फिल्म का अनाउंसमेंट पहले ही कर रखा है लेकिन उसके रिसर्च का काम अभी डेढ़ साल तक चलेगा जो अब तक तीन साल से जारी है। इस बीच में मैं इंडिया में बुजुर्गों के इमोशंस पर आधारित एक छोटी फिल्म बनाना चाहता हूं। यह मेरे लिए एक तरह का 'डिटॉक्स' होगा क्योंकि पिछले छह- सात सालों से मैंने जो पीड़ा और दर्द सहा है उससे बाहर निकलने के लिए मुझे इस प्रोजेक्ट की जरूरत महसूस हो रही है।

 

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