Edited By Manisha,Updated: 12 Dec, 2025 10:05 AM
सीरीज साली मोहब्बत के बारे में डायरेक्टर टिस्का चोपड़ा और एक्टर दिव्येंदु शर्मा ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। 12 दिसंबर को टिस्का चोपड़ा लेकर आ रही हैं अपनी एक नई वेब सीरीज साली मोहब्बत। यह सीरीज जी5 पर रिलीज होगी। इस क्राइम थ्रिलर सीरीज में राधिका आप्टे, दिव्येंदु शर्मा, अनुराग कश्यप, अंशुमान पुष्कर और सौरसेनी मैत्रा भी नजर आएंगे। इस सीरीज के जरिए टिस्का चोपड़ा डायरेक्शन में अपना कदम रख रही हैं। टिस्का चोपड़ा खुद एक जानी मानी अभिनेत्री हैं। सीरीज के बारे में डायरेक्टर टिस्का चोपड़ा और एक्टर दिव्येंदु शर्मा ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...
टिस्का चोपड़ा
सवाल 1. इतने सारे टैलेंटेड एक्टर्स और क्रिएटिव लोगों के साथ यह प्रोजेक्ट कैसे शुरू हुआ? कास्टिंग की शुरुआत कैसे हुई?
जवाब: कई बार फिल्म की शुरुआत किसी और आइडिया से होती है और वो कहीं और जाकर पूरी होती है। लेकिन फिल्मों का अपना एक चुंबकीय आकर्षण होता है जो लोग इससे जुड़ने चाहिए, वो खिंचकर आ ही जाते हैं। दिव्येंदु हमारे पहले चॉइस थे ‘रतन’ के किरदार के लिए। उनसे बातचीत हुई कुछ पॉइंट्स पर डिस्कशन चला और आखिर में हम एक बेहतरीन जगह पर पहुंचे। राधिका के लिए भी हमने कुछ और एक्टर्स से मुलाकात की, लेकिन हमें लगा कि इस फिल्म को उनकी ही काबिलियत चाहिए। मनीष बतौर क्रिएटिव प्रोड्यूसर फिल्म को लेकर बेहद पैशनेट थे। उनका विजन और उनका जुनून इस प्रोजेक्ट को बहुत मजबूत बनाता है।”
सवाल 2. यह आपका पहला डायरेक्टोरियल प्रोजेक्ट है। क्या हमेशा से डायरेक्शन आपकी कॉलिंग थी?
जवाब: नहीं ऐसा कोई पल नहीं था जब मैंने कहा कि अब डायरेक्ट करूंगी। मेरे अंदर से कहानियां निकल रही थीं और मैंने तीन शॉर्ट फिल्में बनाईं चटनी, चूरी, रूबरू। ‘चटनी’ दुनिया की सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली शॉर्ट फिल्मों में से एक बनी। डायरेक्ट करने का असली मज़ा ये है कि आप एक विचार को कागज़ से उठाकर स्क्रीन पर ले आते हैं फिर एडिटिंग, फिर ऑडियंस के साथ एक ‘पिंग-पोंग’ वाला रिश्ता बनता है। साली मोहब्बत के साथ भी मैं यही उम्मीद करती हूं कि दर्शक इसमें अपने-अपने अर्थ खोजें। ये अनुभव बेहद विनम्र बनाने वाला है।
सवाल 3. कई लोग कहते हैं कि डायरेक्टर और प्रोड्यूसर का काम ‘थैंकलेस’ होता है। क्या आप सहमत हैं?
जवाब: डायरेक्टर का काम बिल्कुल भी थैंकलेस नहीं है। प्रोड्यूसर का थोड़ा हो सकता है क्योंकि ग्राउंड पर समस्याएं सबसे ज्यादा उनके पास जाती हैं। लेकिन हमारी तरह की फिल्मों में, जहां हर विभाग का योगदान बेहद अहम है मैं इसे थैंकलेस नहीं मानती। ये काम बहुत रिवॉर्डिंग है।
दिव्येंदु शर्मा
सवाल 4. सेट का माहौल कैसा था? क्या इस प्रोजेक्ट ने आपको एक्टिंग करते समय एक्स्ट्रा पुश दिया?
जवाब: सेट पर हमारी सबसे बड़ी ताकत थी कि हम सब एक ही पेज पर थे। शूटिंग से पहले हमने स्क्रिप्ट रीडिंग की, चर्चाएं कीं, पार्टी भी की। तो सेट पर पहुंचते ही कोई कंफ्यूज़न नहीं था सिर्फ काम और मज़ा। हर सीन को बेहतर से बेहतर करने की इच्छा रहती थी। कई बार ऐसा होता है कि लोग साथ में काम तो कर लेते हैं लेकिन जुड़ाव नहीं होता। यहां उल्टा था काम भी अच्छा हुआ और एक-दूसरे की कंपनी भी पसंद आई।”
सवाल 5. शूटिंग के बाद डिटैच होना आसान होता है? फिल्म अब रिलीज़ के करीब है आपकी भावनाएं क्या होती हैं?
टिस्का: मैं सेट से बिल्कुल भी डिटैच नहीं हो पाती। मैं लोगों, लोकेशन, सुबह की ड्राइव हर चीज़ से जुड़ जाती हूं।
फिल्म खत्म होते ही मैं बाथरूम में जाकर बैठ जाती हूं क्योंकि अलग होना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन फिल्म बनने के बाद जो रिश्ता बन जाता है वो ‘कार्मिक’ होता है। अब दिव्येंदु, राधिका, मनीष ये सब मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं।
दिव्येंदु: एक्टर के तौर पर हमारा प्रोसेस थोड़ा अलग है। शूट खत्म होने के बाद मैं ट्रिप पर चला जाता हूं ताकि दिमाग रीसेट हो जाए। कभी-कभी कुछ प्रोजेक्ट ऐसे होते हैं जिन्हें खत्म होते ही लगता है अच्छा हुआ खत्म हुआ और कुछ इतने खूबसूरत होते हैं कि उनकी यादें अचानक से दिल में लौट आती हैं।
सवाल 6. आपके लिए ऐसा क्या ‘नॉन-नेगोशिएबल’ है? कौन-सी चीज़ हो तो आप स्क्रिप्ट या प्रोजेक्ट छोड़ देंगे?
टिस्का: मेरे लिए सबसे जरूरी है डायरेक्टर की क्लैरिटी, कहानी और उद्देश्य की स्पष्टता और फाइनेंसिंग की स्पष्टता अगर कोई खुद ही नहीं जानता कि उसे क्या चाहिए, तो सेट पर वो ‘एक और टेक, एक और टेक’ वाला टॉर्चर हो जाता है। ज़िंदगी इतनी लंबी नहीं कि अधूरे प्लान वाली फिल्में करते रहें।
दिव्येंदु: मेरे लिए सबसे ज़रूरी है सम्मान। अगर टीम एक-दूसरे की इज्जत नहीं करती तो फिर कुछ भी काम नहीं आता। और हां डायरेक्टर का कन्फ्यूज़ होना सबसे डरावना होता है। आपको पहले ही इंटरैक्शन में पता चल जाता है कि इंसान कैसा है।