Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jun, 2018 03:19 PM
दिव्यदृष्टि बढ़ाने वाली साधनाओं में ''त्राटक'' प्रमुख है।
दिव्यदृष्टि बढ़ाने वाली साधनाओं में 'त्राटक' प्रमुख है। इसे बिंदुयोग भी कहते हैं। अस्त-व्यस्त, इधर-उधर भटकने वाली बाह्य और अंत:दृष्टि को किसी बिंदु विशेष पर, लक्ष्य विशेष पर एकाग्र करने को बिंदु साधना कह सकते हैं। त्राटक का उद्देश्य यही है। त्राटक में बाह्य नेत्रों एवं दीपक जैसे साधनों का उपयोग किया जाता है, इसलिए उसकी गणना स्थूल उपचारों में होती है।
योग साधना में एकाग्रता का अत्यधिक महत्व है। मन:शक्तियों का बिखराव ही उस मनोबल के उत्पन्न होने में सबसे बड़ी बाधा है, जिस पर साधनाओं की सफलता निर्भर करती है। त्राटक के माध्यम से किया गया एकाग्रता का अभ्यास समाधि की स्थिति तक ले जाता है। समाधि के साथ दिव्यदृष्टि का जागृत होना सर्व विदित है।
त्राटक विधियां अनेक प्रकार की हैं। कुछ लोग सफेद कागज पर काला गोला बनाते हैं। उसके मध्य में श्वेत बिंदु रहने देते हैं। इस पर नेत्रदृष्टि और मानसिक एकाग्रता को केंद्रित किया जाता है। अष्टधातु के बने तश्तरीनुमा पतरे के मध्य में तांबे की कील लगाकर उस मध्य बिंदु को एकाग्र भाव से देखते रहने का भी वैसा ही लाभ बताया जाता है। कहते हैं कि धातु के माध्यम से वेधक दृष्टि की शक्ति और भी अधिक बढ़ती है।
भारतीय योग शास्त्र के अनुसार, इसके लिए चमकते प्रकाश का उपयोग करना उपयुक्त माना गया है। सूर्य, चंद्र, तारे आदि प्राकृतिक प्रकाश पिंडों को या दीपक जैसे मानव कृत प्रकाश साधनों को काम में लाने का विधान है।