फैक्ट चेक: अपने वादों पर कितना खरा उतरा तालिबान?

Edited By DW News,Updated: 12 Aug, 2022 08:40 PM

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फैक्ट चेक: अपने वादों पर कितना खरा उतरा तालिबान?

सत्ता पर काबिज होने के तुरंत बाद पहली प्रेस कांफ्रेंस में तालिबान ने अपनी उदारवादी नीतियों की घोषणा की थी. महिलाओं को अधिकार देने और विरोधियों को माफ करने की बात कही थी. क्या तालिबान अपने वादों पर खरा उतरा?इस्लामी कानूनों के तहत महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाएगा दावा: तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने अगस्त 2021 में अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, "इस्लाम के ढांचे के भीतर महिलाएं समाज में काफी सक्रिय रहेंगी. उन्हें पढ़ाई करने और काम करने की अनुमति होगी.” डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: गलत साबित हुआ दावा जब तालिबान ने सत्ता संभाली, तो कई लोगों को डर था कि 1990 के दशक की तरह ही महिलाओं पर कठोर पाबंदी होगी. आखिर यह डर सही साबित हुआ. अपने एक साल के शासन के दौरान तालिबान ने महिलाओं को लेकर कई तरह की पाबंदियां लागू की है. इनमें से एक है सार्वजनिक स्थान पर जाने से पहले महिलाओं को खुद को सिर से पैर तक ढंकना होता है. यदि कोई महिला घर के बाहर अपना चेहरा नहीं ढकती है, तो उसके पिता या निकटतम पुरुष रिश्तेदार को जेल हो सकती है या उन्हें सरकारी नौकरी से निकाला जा सकता है. महिलाएं बिना किसी पुरुष अभिभावक के विमान से यात्रा नहीं कर सकती. अगर किसी महिला की शादी हो गई है, तो उसके साथ उसका पति होना चाहिए. अगर शादी नहीं हुई है, तो कोई करीबी रिश्तेदार. अफगानिस्तान में सार्वजनिक पार्क में प्रवेश के लिए भी नियम बनाए गए हैं. इसमें तीन दिन महिलाओं के लिए और चार दिन पुरुषों के लिए आरक्षित है. साथ ही, तालिबानी फरमान के मुताबिक, जरूरी काम होने पर ही महिलाएं घर से बाहर निकल सकती हैं. तालिबान का कहना है कि सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं की वजह से ऐसे फैसले लिए गए हैं, लेकिन विद्वानों का कहना है कि इस तरह के प्रतिबंध इस्लामी कानून के दायरे में नहीं आते हैं. अफगानिस्तान में रहने वाले धार्मिक विद्वान सैयद अब्दुल हादी हेदयात महिलाओं के शरीर ढंकने के तालिबानी फरमान का विरोध करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मुस्लिम मौलवियों और देश के बीच हिजाब पर सहमति है, लेकिन महिलाओं के लिए हिजाब के प्रकार के बारे में अलग-अलग राय है. इस्लाम के अनुसार चेहरा, हाथ और पैर शरीर के वे हिस्से नहीं हैं जिन्हें ढंकना जरूरी है." एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने कुछ क्षेत्र में महिलाओं के काम करने पर भी पाबंदी लगा दी है. रिपोर्ट में कहा गया है, "स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, ज्यादातर महिला सरकारी कर्मचारियों को घर पर रहने के लिए कहा गया है. तालिबान की नीति से जाहिर होता है कि वे सिर्फ उन क्षेत्रों में महिलाओं को काम करने की अनुमति देना चाहते हैं जहां पुरुष उनकी जगह नहीं ले सकते. निजी क्षेत्र में उच्च पदों पर कार्यरत कई महिलाओं को भी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है.” यह भी पढ़ेंः तालिबान के लड़ाकों ने उठाई किताबें यह नीति इस्लाम की बुनियादी नियमों का भी उल्लंघन करती है. कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी, ईस्ट बे में मध्य पूर्वी अध्ययन और इस्लामी दर्शन के सेवानिवृत्त प्रोफेसर फरीद यूनोस ने कहा, "इस्लाम महिलाओं के साथ समान व्यवहार करता है, विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में. महिलाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाई है. पैगंबर मुहम्मद की पत्नी और बेटी इसके उदाहरण हैं.” हेदयात और यूनुस दोनों ने कहा कि इस्लामी नियमों के अनुसार, शिक्षा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अनिवार्य है. हेदयात ने कहा, "इस्लामी शरीयत महिलाओं की शिक्षा और उनके काम करने के खिलाफ नहीं है, क्योंकि महिलाओं की भूमिका के बिना हमारा समाज समृद्ध नहीं होगा.” एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि तालिबान की पाबंदियों और नीतियों का विरोध करने वाली महिलाओं को परेशान और प्रताड़ित किया गया. उन्हें धमकाया गया और गिरफ्तार किया गया. हाईस्कूल में पढ़ सकेंगी छात्राएं दावा: तालिबान की सत्ता में वापसी के कुछ हफ्तों बाद छोटी लड़कियां अलग-अलग कक्षाओं में फिर से पढ़ाई शुरू कर सकती थीं, लेकिन माध्यमिक विद्यालयों में छात्राएं पढ़ाई करने नहीं जा सकीं. तालिबान के प्रवक्ता मुजाहिद ने कहा था, "शिक्षा मंत्रालय हाई स्कूल की लड़कियों की शिक्षा के लिए जल्द से जल्द जमीन उपलब्ध कराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है.” हालांकि, इसके लिए कोई समय सीमा की जानकारी नहीं दी गई थी. डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: गलत साबित हुआ दावा मार्च में, शिक्षा मंत्रालय ने घोषणा की कि लड़कियों सहित सभी छात्रों के लिए कक्षाएं खुलेंगी. हालांकि, एक दिन बाद, जैसे ही लड़कियों ने पहली बार स्कूल में जाना शुरू किया, मंत्रालय ने आदेश को उलट दिया और छात्राओं को स्कूल छोड़ने के लिए कहा. मंत्रालय ने शिक्षकों की कमी का हवाला दिया और स्कूल यूनिफॉर्म पर सवाल उठाए. मंत्रालय ने दावा किया कि "इस्लामी कानून और अफगान संस्कृति" के अनुसार योजना तैयार होने के बाद वह लड़कियों के लिए स्कूल खोल देगा. तब से लेकर अभी तक कुछ नहीं बदला है. लड़कियों की पढ़ाई बंद है. यह भी पढे़ंः तालिबान शासन में महिलाओं का शोषण जारी पूर्व शत्रुओं को माफी दावा: 17 अगस्त, 2021 को मुजाहिद ने कहा था, "मैं देश के सभी लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि चाहे वे अनुवादक रहे हों या सैन्य गतिविधियों से जुड़े रहे हों, वे सभी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं. किसी के साथ बदले का व्यवहार नहीं किया जाएगा. 20 सालों तक जिन लोगों ने हमारे खिलाफ लड़ाई लड़ी है उन सभी को माफ कर दिया जाएगा.” डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: गलत साबित हुआ दावा एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बताया, "तालिबान की सत्ता में वापसी के दौरान प्रतिशोध की कार्रवाई की गई और एक के बाद एक कई लोगों की हत्या हुई. विदेशी सुरक्षा बलों के कथित सहयोगियों की तलाश की गई. अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) ने 15 अगस्त, 2021 और 15 जून, 2022 के बीच तालिबानी अधिकारियों द्वारा किए गए कम से कम 160 गैर-न्यायिक हत्याएं, 178 जबरन गिरफ्तारी, 23 नजरबंदी के साथ-साथ पूर्व सरकारी और सुरक्षा अधिकारियों की यातना के 56 मामले दर्ज किए हैं. यूएनएएमए की रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि कई मौकों पर माफी का उल्लंघन किया गया था. इन आंकड़ों में दर्जनों गैर-न्यायिक हत्याएं, प्रताड़ना के साथ-साथ "इस्लामिक स्टेट - खुरासान प्रांत" और नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान (एनआरएफ) के कथित सदस्यों की मनमानी गिरफ्तारी शामिल नहीं है. एनआरएफ ने पिछले साल सितंबर तक तालिबानी बलों से पंजशीर घाटी की सुरक्षा की और अभी भी इस क्षेत्र में नियंत्रण वापस लेने का प्रयास कर रहा है. जून महीने में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बताया कि पंजशीर प्रांत में तालिबान एनआरएफ का सदस्य होने के आरोप में नागरिकों को मनमाने तरीके से गिरफ्तार कर रहा है और उन्हें यातना दे रहा है. एमनेस्टी के दक्षिण एशिया शोधकर्ता जमान सुल्तानी ने इस कार्रवाई को ‘बढ़ते पैटर्न' के तौर पर बताया. यह भी पढे़ंः तालिबान के शासन को अभी भी अवैध मानती हैं अफगान महिलाएं पत्रकारों को ना तो धमकी दी जाएगी और ना ही उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी दावा: तालिबान के प्रवक्ताओं ने रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) को दिए गए इस वादे को दोहराया है और निष्पक्ष मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता जताई. प्रवक्ताओं ने कहा कि जब तक वे तालिबान के ‘सांस्कृतिक ढांचे' में हस्तक्षेप नहीं करते हैं उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: गलत साबित हुआ दावा सत्ता संभालने के कुछ दिनों बाद ही तालिबानी लड़ाकों ने डीडब्ल्यू पत्रकार के एक रिश्तेदार की हत्या कर दी. तालिबानी लड़ाके पहले उस पत्रकार की तलाश कर रहे थे. सितंबर 2021 में, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने बताया कि तालिबान और एनआरएफ लड़ाकों के बीच संघर्ष में अफगानिस्तान के राष्ट्रीय पत्रकार संघ के प्रमुख फहीम दश्ती की मौत हो गई. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि उनके पास इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि तालिबान ने पत्रकारों की हत्या की है. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब से तालिबान ने सत्ता प्राप्त की है, तब से प्रेस की स्वतंत्रता में गिरावट आई है. पिछले साल के अंत में प्रकाशित आरएसएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2021 में अफगान न्यूजरूम में काम करने वाले 10,000 से अधिक लोगों में से केवल 4,360 ही दिसंबर में काम कर रहे थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2021 के पहले छह महीने में अफगानिस्तान में 543 मीडिया संस्थान थे. वहीं, तालिबान के महज तीन महीने शासन के दौरान 231 बंद हो गए. अफगानिस्तान पत्रकार संघ और आईजेएफ के सर्वे में पाया गया कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से 318 राष्ट्रीय मीडिया संस्थान बंद कर दिए गए. जनवरी में, तालिबान के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया कि सरकार ने देश के किसी भी मीडिया संस्थान को बंद नहीं किया है. कुछ संस्थान आर्थिक कमी की वजह से बंद हो गए. उसी साक्षात्कार में, उन्होंने स्वीकार किया कि अफगानिस्तान में मीडिया कवरेज के दौरान उन नियमों का पालन करना पड़ता है जिन्हें पश्चिमी देशों में प्रतिबंध के तौर पर माना जा सकता है. मार्च में, तालिबान ने कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान को अफगानिस्तान में प्रसारण से रोक दिया, जिनमें बीबीसी, वॉयस ऑफ अमेरिका और डीडब्ल्यू शामिल हैं. करीब एक महीने बाद, अफगानिस्तान में कम से कम एक दर्जन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान से कहा कि वह मनमाने तरीके से पत्रकारों को गिरफ्तार ना करे. पत्रकार संघ के सर्वे के मुताबिक, सूचना पाने में समस्या, सेल्फ-सेंसरशिप, बदले की कार्रवाई का डर और आर्थिक संकट जैसी मुख्य वजहें ‘अफगान मीडिया के अभूतपूर्व पतन' का कारण बनी. वहीं, सर्वे में शामिल करीब 33 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया पर भरोसा नहीं है. जबकि, 10 में से लगभग नौ ने कहा कि वे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों पर भरोसा करते हैं. मादक पदार्थों के कारोबार पर प्रतिबंध दावा: प्रवक्ता मुजाहिद ने कहा था, "हम अपने देशवासियों, महिलाओं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आश्वस्त कर रहे हैं कि किसी नशीले पदार्थ का उत्पादन नहीं करेंगे.” उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि तालिबान 2000 में अफीम से बनने वाली नशीली दवाओं का उत्पादन को शून्य पर वापस लाया और वैकल्पिक फसलों के उत्पादन का वादा किया. डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: वादे की नहीं हुई पुष्टि अफगानिस्तान दशकों से हेरोइन और अफीम का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक रहा है. यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन ड्रग एंड क्राइम के शोध के मुताबिक, 2020 में अफगानिस्तान ने दुनिया भर में सभी गैर-फार्मास्युटिकल ओपिओइड का लगभग 85 फीसदी उपलब्ध कराया था. इस साल तालिबान ने अप्रैल में अफीम की खेती और फसल पर प्रतिबंध लगा दिया. किसानों को जेल में डालने और उनके खेतों को जलाने की धमकी दी गई. मादक पदार्थ रोकथाम के उप-मंत्री मुल्ला अब्दुल हक अखुंद ने एपी को बताया कि तालिबान अन्य सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम कर रहा था, ताकि किसानों की आय बढ़ाने के लिए वैकल्पिक फसलों की तलाश की जा सके. मुजाहिद ने बताया कि तालिबान अब तक अपने इस वादे पर कायम है. उनका इस क्षेत्र में एक ट्रैक रिकॉर्ड है. 2004 के विश्व बैंक के अध्ययन के अनुसार, 2000 में खेती पर प्रतिबंध के बाद अफगानिस्तान में अफीम का उत्पादन लगभग शून्य हो गया था. 2001 में तालिबान के सत्ता से बाहर होने के बाद अफीम की खेती फिर से बढ़ गई थी. इस बात के बावजूद कि इस प्रयास में सफलता का विदेशी संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषज्ञों का सवाल है कि इस बार ओपिओइड उत्पादन को खत्म करने का प्रयास कितना प्रभावी और टिकाऊ होगा. आखिरकार, मादक पदार्थों की तस्करी देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिससे 2021 में 1.8 बिलियन डॉलर और 2.7 बिलियन डॉलर के बीच राजस्व मिलने का अनुमान है. अफीम का कुल मूल्य अफगान जीडीपी का 9 से 14 फीसदी है. दक्षिण एशिया के विश्लेषक शहरयार फाजली ने कहा कि अन्य वैश्विक चुनौतियों और पर्याप्त मानवाधिकार मुद्दों को देखते हुए तालिबान को मिलने वाली विदेशी सहायता उसकी अपेक्षाओं के मुताबिक नहीं हो सकती है. साथ ही, मादक पदार्थों के उत्पादन को समाप्त करने से होने वाले आर्थिक नुकसान से निपटने के लिए भी पर्याप्त नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा, "पिछले रिकॉर्ड के अनुसार अफीम के कारोबार पर रोक लगाने से तालिबान के सशस्त्र विरोधियों को ग्रामीण असंतोष का फायदा उठाने का वही अवसर मिल सकता है जैसे तालिबान द्वारा गणतंत्र के खात्मे के प्रयास की वजह से मिला था.”

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे DW फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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