Edited By Tanuja,Updated: 01 Nov, 2022 02:28 PM
श्रीलंका की तरह ही अब पाकिस्तान पर भी आर्थिक संकट का असर पड़ रहा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय टिक-टिक टाइम बम की तरह...
इस्लामाबाद: श्रीलंका की तरह ही अब पाकिस्तान पर भी आर्थिक संकट का असर पड़ रहा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय टिक-टिक टाइम बम की तरह हो रही है और देश धीरे-धीरे श्रीलंका बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। डेली पार्लियामेंट टाइम्स में लिखते हुए मुहम्मद हमजा क़मर ने कहा कि पाकिस्तान के पास बड़ी मात्रा में कर्ज, उच्च मुद्रास्फीति, बेरोजगारी में वृद्धि और कई अन्य व्यापक आर्थिक समस्याएं हैं जो स्पष्ट रूप से देश के सामने आने वाली कई चुनौतियों को दर्शाती हैं। आवश्यक वस्तुओं पर आयात, सीमित विदेशी मुद्रा स्रोत, मुक्त व्यापार पर प्रतिबंध और संचित विदेशी ऋण श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ कई अन्य खतरनाक समानताएं हैं।
क़मर ने पुष्टि की कि अपनी संप्रभु गारंटी के हिस्से के रूप में, पाकिस्तान को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निर्माण के लिए चीन से 46 बिलियन अमरीकी डालर (अब 55 बिलियन अमरीकी डालर) प्राप्त हुए। इन निवेशों के इक्विटी हिस्से को डॉलर के संदर्भ में 17-20 प्रतिशत की दर से रिटर्न की गारंटी दी गई थी, जिसमें ऋण-इक्विटी अनुपात 80 और 20% के बीच था। 26 महीने से भी कम समय में चीन अपने निवेश की भरपाई कर लेगा और अगले 25 सालों तक पाकिस्तान को करता रहेगा। डेली पार्लियामेंट टाइम्स के अनुसार, इतनी ऊंची लागत देश की अर्थव्यवस्था को पंगु बना सकती है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चीन का कर्ज जाल कितना खतरनाक है यह श्रीलंका से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता। चीन के हाथों अपना हंबनटोटा द्वीप पहले ही गंवा चुके श्रीलंका पर बैंकरप्ट यानि दीवालिया तक हो गया ।
श्रीलंका के बाद पाकिस्तान भी अपने खास दोस्त चीन के जाल में फंस चुका है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, अप्रैल 2021 तक, पाकिस्तान पर अपने विदेशी ऋण का 27.4 प्रतिशत यानी 24.7 बिलियन डॉलर चीन का बकाया है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जो चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई पहल की प्रमुख परियोजना है, इस परियोजना के लिए पाकिस्तान ने चीन से अथाह कर्ज ले रखा है। पिछले साल जब सऊदी अरब ने पाकिस्तान से अपना कर्ज वापस मांगा तो उसे चीन से मनमाने ब्याज पर कर्ज लेकर सऊदी अरब का पैसा वापस लौटाना पड़ा था।
यही नहीं मेडागास्कर, मालदीव और ताजिकिस्तान जैसे एशियाई और अफ्रीकी देश चीनी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। चीन ने यहां परियोजनाओं के लिए पानी की तरह पैसा बहाया, अब कर्ज न चुकाने पर आंखें तरेरने लगा है। चीन की साजिश सरल है, वो बुनियादी ढांचे के निर्माण का वादा करता है, उलटी-सीधी शर्त रखता है और जब देनदार देश वापस भुगतान करने में विफल रहता है, तो उसे अपनी राष्ट्रीय संपत्ति सौंपने या चीन को रणनीतिक लाभ देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।