अध्ययन दौरान वैज्ञानिक को सांप ने काटा, अनुभव मे जो लिखा जानकर रह जाएंगे दंग

Edited By Tanuja,Updated: 11 Nov, 2018 06:28 PM

scientist documents 24 hours following snake bite and dies

इतिहास में ऐसे कई  किस्से हैं, जब वैज्ञानिक ने किसी अध्ययन के लिए अपनी जान दे दी। इन्हीं में से एक कहानी है कार्ल पैटरसन शिमिट की, जिन्होंने सांप के काटने के बाद के अनुभव को जानने के लिए अपनी जान दे दी...

वॉशिंगटनः  इतिहास में ऐसे कई  किस्से हैं, जब वैज्ञानिक ने किसी अध्ययन के लिए अपनी जान दे दी। इन्हीं में से एक कहानी है कार्ल पैटरसन शिमिट की, जिन्होंने सांप के काटने के बाद के अनुभव को जानने के लिए अपनी जान दे दी। साल 1957, सितंबर का महीना। अमेरिका के शिकागो प्रांत के लिंकन पार्क चिड़ियाघर में काम करने वाले एक शख्स के हाथ एक अजीबोगरीब सांप लगा। 76 सेंटीमीटर लंबे इस सांप की प्रजाति जानने के लिए वह उसे शिकागो के नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में ले गया। वहां उसकी मुलाकात मशहूर वैज्ञानिक कार्ल पैटरसन शिमिट से हुई। PunjabKesariशिमिट को सरीसृप विज्ञान का एक बड़ा जानकार माना जाता था। शिमिट ने देखा कि इस सांप के शरीर पर बहुरंगी आकृतियां हैं। वह सांप की प्रजाति का पता लगाने को तैयार हो गए। इसके बाद 25 सितंबर को उन्होंने अपनी पड़ताल में पाया कि ये अफ्रीकी देशों में पाया जाने वाला एक सांप था। इस सांप का सिर बूमस्लैंग सांपों जैसा था जो कि सब-सहारन अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है। लेकिन शिमिट अपनी इस पड़ताल को लेकर आश्वस्त नहीं थे। अपने जर्नल में इस पड़ताल के बारे में लिखते हुए शिमिट बताते हैं कि उन्हें इस सांप के बूमस्लैंग होने पर शक है, क्योंकि इस सांप की एनल प्लेट बंटी हुई नहीं थी। लेकिन इस शक को दूर करने के लिए शिमिट ने जो किया, उसकी वजह से उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा।PunjabKesariशिमिट सांप को अपने काफी करीब लाकर उसके शरीर पर बनी आकृतियों का अध्ययन करने लगे। वह अचंभे के साथ सांप के शरीर और सिर पर बनी आकृतियां और रंग देख रहे थे, तभी इस सांप ने उनके अंगूठे पर काट लिया। लेकिन शिमिट ने डॉक्टर के पास जाने के बजाय अपने अंगूठे को चूसकर सांप का जहर बाहर निकालने की कोशिश शुरू कर दी। यही नहीं, उन्होंने अपने जर्नल में सांप के कांटने के बाद हो रहे अनुभवों को दर्ज करना शुरू कर दिया। अपने जर्नल में शिमिट लिखते हैं, "4:30 से 5:30 तक जी मिचलाने जैसा अनुभव हुआ, लेकिन उल्टी नहीं आई, मैंने होमवुड तक एक ट्रेन में यात्रा की। उसके बाद 5:30 से 6:30 तक काफी ठंड और झटके लगने जैसी अनुभूति हुई, जिसके बाद 101.7 डिग्री का बुखार आया। फिर शाम 5:30 बजे ही मसूड़ों में खून आना शुरू हो गया।" शिमिट आगे लिखते हैं, "8:30 बजे मैंने दो टोस्ट खाए। फिर रात 9:00 से 12:20 तक मैं आराम से सोया। इसके बाद मैंने पेशाब किया, जिसमें ज्यादातर मात्रा खून की थी।PunjabKesariइसके बाद 26 सितंबर की सुबह 4:30 बजे मैंने एक गिलास पानी पिया और जी मिचलाने की वजह से उल्टी की। जो कुछ नहीं पच पाया था, मेरे पेट से बाहर निकल गया। इसके बाद मैंने काफी बेहतर महसूस किया और सुबह साढ़े छह बजे तक सोया।" शिमिट ने आगे लिखा, "सुबह साढ़े छह बजे मेरे शरीर का तापमान 98.2 डिग्री सेल्सियस था। मैंने टोस्ट के साथ उबले अंडे, एप्पल सॉस, सिरीयल्स और कॉफी पी। इसके बाद पेशाब नहीं आई, बल्कि हर तीन घंटे पर एक आउंस खून निकला। मुंह और नाक से खून निकलना लगातार जारी रहा, लेकिन ज्यादा मात्रा में नहीं।" इसके बाद दोपहर के डेढ़ बजे शिमिट ने अपनी पत्नी को फोन किया, लेकिन जब तक डॉक्टर पहुंचे, तब तक शिमिट का पूरा शरीर पसीने में डूब चुका था। वह बेहोशी की स्थिति में थे। अस्पताल पहुंचने पर एक डॉक्टर ने उन्हें होश में लाने की काफी कोशिश की, लेकिन दोपहर तीन बजे तक डॉक्टरों ने शिमिट को मृत घोषित कर दिया। PunjabKesariडॉक्टरों ने बताया कि सांस लेने में तकलीफ की वजह से शिमिट की मौत हुई थी। बता दें कि अफ्रीकी सांप बूमस्लैंग का जहर बड़ी तेजी से असर करता है। किसी पक्षी की जान लेने के लिए इसका 0.0006 मिलीग्राम जहर ही काफी है। इस जहर के प्रभाव से शरीर में खून के थक्के जमना शुरू हो जाते हैं, जिससे खून का प्रवाह बाधित हो जाता है। इसके बाद शरीर में अलग-अलग जगहों से खून निकलना शुरू हो जाता है और फिर पीड़ित की मौत हो जाती है। शिमिट की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कहती है कि उनके फेफड़ों, आंखों, दिल, किडनियों और दिमाग से खून बह रहा था। 'शिकागो ट्रिब्यून' में इस मामले पर छपी खबर में दावा किया गया था कि शिमिट की मौत से पहले उन्हें डॉक्टर के पास जाने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने इससे इनकार करते हुए कहा कि इससे लक्षणों पर असर पड़ सकता है। PunjabKesariकुछ लोग मानते हैं कि शिमिट की जिज्ञासा ने उनकी जान ले ली। हालांकि, कुछ लोग ये मानते हैं कि शिमिट इतने प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे कि वह जानते थे कि इस जहर को बेअसर करने वाली दवा सिर्फ अफ्रीका में उपलब्ध थी। ऐसे में, उन्होंने अपनी मौत को स्वीकार कर लिया था। पब्लिक रेडियो इंटरनेशनल के साइंस फ्राइडे प्रोग्राम को पेश करने वाली टॉम मेकनामारा कहती हैं कि शिमिट अपनी मौत को सामने देखकर जरा भी हिचके नहीं, बल्कि एक अनजान रास्ते पर बढ़ गए। 

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