ग्रहों की दशा और दिशा यूं बदल कर सच करें अपने जीवन का हर सपना

Edited By Updated: 24 Oct, 2015 03:08 PM

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सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं। सुखों का भोग तथा दुखों का निदान मानव जीवन का महत्वपूर्ण भाग है। फलित ज्योतिष सुख-दुख का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर मनुष्य का मार्गदर्शन करता है।

सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं। सुखों का भोग तथा दुखों का निदान मानव जीवन का महत्वपूर्ण भाग है। फलित ज्योतिष सुख-दुख का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर मनुष्य का मार्गदर्शन करता है।
 
जीवन का संपूर्ण सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि विषय ग्रहों पर आधारित हैं। ये ग्रह 27 नक्षत्र एवं 12 राशियों पर भ्रमण करते हैं। परिणामस्वरूप ऋतुएं, वर्ष, मास तथा दिन-रात होते हैं।
 
अनिष्ट ग्रह जब मानव को पीड़ा देते हैं तब वह उनके शमन हेतु उपाय खोजता है। जातक चन्द्रिका, भावप्रकाश, धर्मसिन्धु, प्रश्रमार्ग नारदसंहिता, नारदपुराण एवं ज्योतिष ग्रंथ लाल किताब आदि ने अनिष्ट ग्रह पीड़ा निदान के अनेक उपाय बताए हैं। इसमें हम ग्रहों द्वारा उत्पन्न कष्ट दूर करने हेतु दान एवं औषधि स्नान विधि दे रहे हैं।
 
(1) रवि- पौराणिक आख्यानों में रवि को कश्यप मुनि तथा अदिति का पुत्र कहा जाता है। इसी कारण रवि का प्रसिद्ध नाम आदित्य है। वेदांत दर्शन में रवि को जगत जीवात्मा कहा जाता है।
 
रवि के बुरे प्रभाव से प्रभावहीनता तथा नेतृत्व गुणों का अभाव होने लगता है। रवि को प्रसन्न रखने के लिए गेहूं, गुड़, तांबा, सोना, लाल वस्त्र, गाय एवं माणिक्य दान करना चाहिए।  ‘लाल किताब’ के अनुसार धर्मस्थान में बादाम दान देने व तांबे को पानी में बहाने से रवि की कृपा प्राप्त होती है। पितृ पूजा तथा श्राद्ध से भी रवि प्रसन्न होते हैं।
 
जातक चंद्रिका तथा भाव प्रकाश ग्रंथों में ग्रहों की कृपा प्राप्ति के लिए विशिष्ट औषधि स्नानों का भी विवरण प्राप्त होता है। कनेर, नागरमोथा, देवदारू, केसर, मेनसिल, इलायची तथा महुआ के फूल पानी में डालकर स्नान करने से रवि की शुभता प्राप्त होती है।
 
(2) चंद्रमा- फलित ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारकत्व प्राप्त है। शिव की आराधना चंद्रमा को प्रिय है। सरस्वती उपासना भी फल देती है।
 
गाय का दूध, दही, घी, गोबर तथा गौमूत्र इन पंचगव्य को सीप, शंख तथा स्फटिक से स्पर्श कराकर पानी में मिलाकर स्नान करने से चंद्रमा प्रसन्न होते हैं। मोती, चावल, घी से भरा कलश, कपूर, बैल, दही, शंख तथा मोती चंद्रमा के दान हैं।
 
लाल किताब वर्षा जल, चावल तथा चांदी को सदा पास रखकर चंद्र कृपा प्राप्त करने की सलाह देती है।
 
(3) मंगल- विवाह में मंगल दोष से सभी परिचित हैं। मंगल विवाह में विलंब भी उत्पन्न करता है। अष्टम मंगल ज्यादा कष्टकारी है। इस दोष को दूर करने के लिए- 
 
(1) पंचमुखी दीपक जलाकर पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य) से मंगल ग्रह की पूजा कर मंगल चंद्रिका स्त्रोत का 108 दिन तक पाठ करना चाहिए। प्रतिदिन 7 या 21 पाठ किए जा सकते हैं। (2) मां गौरी का पूजन तथा पार्वती मंगल का पाठ मंगल को प्रिय है। (3) भगवान हनुमान की आराधना मंगल की कृपा दिलवाती है। (4) सावित्री व्रत, मंगलागौरी व्रत तथा कुंभ विवाह मंगल दोष समाप्त करते हैं।
मंगल की कृपा प्राप्त करने के लिए मंगल यंत्र का स्वयं निर्माण कर पूजन कर स्थापित करना चाहिए।
 
लाल चंदन, लाल पुष्प, बिल्वपत्र, जटामासी, मौलश्री, हींग, मालकांगनी चूर्ण से स्नान करना शुभ है। काले कुत्ते को घी, गुड़, रोटी खिलाना तथा योग्य व्यक्ति को मूंगा, गेहूं, मसूर, लाल बैल, गुड़, सोना, तांबा तथा लाल व दान करना चाहिए।
लाल किताब मीठा भोजन, मिठाई, बताशे दान को श्रेष्ठ उपाय बताती है।
 
(4) बुध- लाल किताब के अनुसार तांबे का टुकड़ा सुराख करके पानी में बहाना बुध के लिए उत्तम है। भारतीय शास्त्रों के अनुसार पन्ना, चावल, गौरोचन, शहद, सोना, जायफल, पीपरमूल से मिश्रित जल से स्नान करने से बुध उत्तम फल देते हैं।
नीला वस्त्र, हरा फूल, सोना, पन्ना, मूंग, घी, कांसे के बर्तन, बुध के प्रसिद्ध दान हैं। बुध की कृपा के लिए भगवान गणेश व विष्णु की आराधना तथा उन्हें बुधवार को 108 दूर्वा चढ़ाना चाहिए।
 
(5) बृहस्पति- पौराणिक आख्यानों में बृहस्पति को अत्यंत शुभ तथा प्रभावशाली ग्रह माना जाता है। इन्हें ‘देव गुरु’ की उपाधि प्राप्त है। सरसों, गूलर, मुलहठी, शहद, चमेली के चूर्ण से स्नान करना बृहस्पति के लिए उत्तम है।
 
पुखराज, हल्दी, पीले व पीली दालें, नमक, पीला पुष्प, खांडसारी शक्कर, गुड़ दान करने से बृहस्पति प्रसन्न होते हैं। लाल किताब अष्ट गंध का दान तथा तिलक लगाने को बृहस्पति का उत्तम उपाय बताती है। ब्रह्मा की आराधना शुभ है।
 
(6) शुक्र- पाश्चात्य ज्योतिष विद्वान शुक्र को कला, प्रेम तथा आकर्षण का प्रतिनिधि ग्रह मानते हैं। यह काम का प्रतीक तथा दैत्य गुरु की उपाधि भारतीय फलित ज्योतिष में पाता है।
 
जायफल, केसर, इलायची, मूली के बीज, हरड़ तथा बहेड़ा का चूर्ण पानी में मिलाकर स्नान करने से शुक्र की कृपा प्राप्त होती है।
 
हीरा, चांदी, चावल, दही, घी, मिश्री, सफेद पुष्प व कपड़े, सफेद चंदन, घोड़ा शुक्र के दान हैं। लाल किताब के अनुसार जप, गाय, कन्या तथा तेल दान शुक्र के लिए शुभ हैं। संतोषी माता का व्रत तथा भगवती दुर्गा की आराधना शुक्र को प्रिय है।
 
(7) शनि- शिव एवं भैरव की उपासना शनि की कृपा के लिए अत्यंत आवश्यक है। शनि की पीड़ा शांति के लिए तेल में अपनी छाया देखकर उसे पात्र सहित दान देने की सलाह लाल किताब देती है।
 
नीलम, काले तिल, वस्त्र, काले पशु, कम्बल, लोहा, उड़द, तेल शनि के दान हैं। सौंफ, लोभान, खस, काला तिल, गोंद, शतकुसुम के चूर्ण से स्नान उत्तम होता है। 
साढ़ेसाती तथा ढैय्या की उग्रता, शनि का मारक होना तथा अतिकष्ट देने की स्थिति में महामृत्युंजय का जाप राहत देता है। 
 
(8 एवं 9) राहु व केतु- इन छायाग्रहों के दान, स्नान, देवता तथा उपासना शनि की तरह ही हैं। दान एवं स्नान में गोमेद, लहसुनिया, हाथी दांत तथा कस्तूरी को भी सम्मिलित करना चाहिए।
 
लाल किताब में कच्चे कोयले को पानी में बहाना, मसूर दान, जौ सिरहाने रखना, कुत्तों को रोटी खिलाना तथा तेल दान राहु-केतु के उपाय बताए गए हैं। आचार्य सुश्रुत ग्रहपीड़ा तथा रोग से मुक्ति के लिए प्रायश्चित करने को महत्व देते हैं। 
 
फलित ज्योतिष में एक से अधिक ग्रहों की पीड़ा शांत करने के लिए लाजवंती, कूट, वरियार, मालकांगनी, मोथा, सरसों, हल्दी, देवदारू, शरकोंका तथा लौंध के चूर्ण से स्नान करने का निर्देश है। 
 

—पं. रामचंद्र शर्मा ‘वैदिक’ 

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