रक्षाबंधन से जुड़ी 10 रोचक बातें...जो अधिकतर लोग नहीं जानते

Edited By ,Updated: 28 Aug, 2015 08:49 AM

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भाई-बहन का रिश्ता दुनिया में सबसे प्यारा और भावना से जुड़ा रिश्ता है। इस रिश्ते में झगड़ा भी है तो प्यार भी। जहां एक भाई बहन की सुरक्षा के लिए हर दम तत्पर रहता है

भाई-बहन का रिश्ता दुनिया में सबसे प्यारा और भावना से जुड़ा रिश्ता है। इस रिश्ते में झगड़ा भी है तो प्यार भी। जहां एक भाई बहन की सुरक्षा के लिए हर दम तत्पर रहता है तो वहीं बहन भाई की लंबी उम्र के लिए रक्षा सूत्र उसके हाथ में बांधती है। सावन महीने की फुहारों के साथ ही भारत में त्यौहारों की शुरुआत हो जाती है।

रक्षा बंधन भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता प्रतीक है। हर बहन को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। रूठे भाई को मनाने और अपना मनचाहा गिफ्ट पाने का यह सबसे बेहतरीन दिन होता है। रक्षा बंधन के बारे में क ऐसी रोचक बातें हैं जो शायद आप नहीं जानते...तो आइए आज आपको कुछ ऐसी ही रोचक बातों से रू-ब-रू करवाएं।
 
- इस दिन व्रत करना चाहिए एवं व्रत रखने वाले को स्नान के बाद देवताओं, ऋषि एवं पितरों का तर्पण करना चाहिए।

-रक्षाबंधन पर जहां बहन अपने भाई को रक्षासूत्र बांधती है वहीं मान्यता है कि इस दिन हमें जो वस्तु प्रिय होती है उसे भी सूत्र बांध सकते हैं चाहे फिर वो कार्यालय में रखा कंप्यूटर हो या घर में कोई प्रिय वस्तु, ऐसा करने से हमारी बाधाएं दूर होती हैं।

-रक्षाबंधन वाले दिन दोपहर बाद पीले रेशमी कपड़े में केसर, चंदन, सुवर्ण, दूर्वा, सरसों एवं चावल रखकर, गोबर से लिपे स्थान पर कलश की स्थापना करें। इसके बाद उस कलश पर रक्षा सूत्र रखें एवं पूजन के बाद उस रक्षा सूत्र को किसी विद्वान ब्राह्मण से अपने दाहिने हाथ में बंधवा लें। कहते हैं ऐसा करने से सभी परेशानियों से उभरने के लिए किया गया ये काम लाभकारी होता है।

-वामन बनकर जब भगवान विष्णु ने दानवराज बलि से उसकी पूरी जमीन ले ली तो उसने भगवान को अपने यहां रहने का अनुरोध किया। बाद में देवी लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधी और बदले में भगवान को वापस ले गईं।

-प्राचीन काल में देवताओं व दानवों के बीच 12 वर्षों तक युद्ध हुआ। इसमें देवताओं को हार का सामना करना पड़ा। असुरों ने स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया। पराजित इंद्र ने दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति से कहा कि मैं स्वर्ग से निकल भी नहीं सकता और यहां सुरक्षित भी नहीं हूं। यह सुनकर इंद्राणी ने कहा कि कल श्रावणी शुक्ल पूर्णिमा के दिन मैं रक्षासूत्र तैयार करूंगी, इसे आप पूर्ण विधान से ब्राह्मणों द्वारा बंधवा लीजिएगा। इस रक्षा सूत्र का पूजन करके ब्राह्मणों ने स्वस्ति मंत्रों के साथ इंद्र को बांधा। ऐसा करने से असुरों पर इंद्र की विजय हुई। इस दिन बहनें अपने भाई को स्वयं की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र (राखी) बांधती है। यह रक्षासूत्र शिष्य अपने गुरु से भी बंधवा सकते हैं या गुरु को भी बांध सकते हैं। अपने ईष्ट देवता को भी रक्षासूत्र बांधना चाहिए, जिससे वह हमारी रक्षा करें।

-ब्राह्मणों एवं द्विजों के लिए यह विशेष पर्व है। इस दिन वह नए यज्ञोपवीत धारण करते हैं और वेद परायण के शुभारंभ करते हैं। प्राचीन समय यह कर्म गुरु-शिष्यों के साथ करते थे। इस दिन वह जाने-अनजाने हुए पापों के निराकरण के लिए हेमाद्रि संकल्प करके दशविधि स्नान करते हैं। इसके बाद अन्य विधियों से पूजन कर यज्ञोपवीत धारण करते हैं।

-महाभारत युद्ध के दौरान एक बार युद्धिष्ठिर ने यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में विशेष रूप से श्रीकृष्ण, भीष्म पितामह, दुर्योधन सहित समस्त महान लोग आमंत्रित किए गए थे। यज्ञ में शिशुपाल भी आमंत्रित था जो कि श्रीकृष्ण से बहुत घृणा करता था। शिशुपाल श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था। इसी वजह से श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की सौ गलतियां माफ करने का वरदान दिया था। युद्धिष्ठिर के यहां यज्ञ आयोजन में श्रीकृष्ण को अधिक सम्मान पाता देख शिशुपाल भड़क गया।

शिशुपाल इतना क्रोधित हो गया कि उसने भरी सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करना शुरू कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण चुपचाप उसका अपमान सहन करते रहे और उसकी सौ गलतियां पूरी होने की प्रतिक्षा करते रहे। जब शिशुपाल की श्रीकृष्ण के अपमान स्वरूप सौ गलतियां हो गई उसके तुरंत बाद भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का मस्तक धड़ से अलग कर दिया।

शिशुपाल का वध करने के बाद जब पुन: सुदर्शन चक्र को श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर धारण किया उस समय उनकी अंगुली भी कट गई। रक्त बहने लगा। यह देख द्रोपदी ने अपने वस्त्र से एक पट्टी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांध दी। तब श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को इस पट्टी रूपी रक्षासूत्र का ऋण भविष्य में चुकाने का वरदान दिया। जब पांडव दुर्योधन से द्युत क्रीड़ा में द्रोपदी को हार गए तब दु:शासन ने भरी सभा में द्रोपदी की साड़ी उतारने का प्रयास किया। उस समय द्रोपदी ने श्रीकृष्ण का स्मरण किया। तब श्रीकृष्ण ने द्रोपदी का मान बचाया और उनके द्वारा बांधे गए पट्टी रूपी रक्षासूत्र का मान रखा था।

- रक्षाबंधन की कथा पांडवों से भी जुड़ती है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि कैसे मैं सभी संकटों को पार कर सकता हूं तब भगवान कृष्ण ने उन्हें और उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी और सभी को रक्षासूत्र बांधने को कहा था।

-कहा जाता है कि जब सिकंदर ने भारत पर हमला किया तो उसका सामना राजा पुरु से था। सिकंदर की पत्नी ने भारत में राखी के महत्व को जानकर पुरु को राखी बांधकर अलेक्जेंडर पर हमला न करने की गुजारिश की। पुरु ने ग्रीक रानी को बहन मानते हुए उनकी राखी का सम्मान रखा।

-जब चित्तौड़ पर गुजरात के राजा ने आक्रमण किया, तब रानी कर्णावती ने तुरंत हुमायूं को राखी भेजकर मदद की गुजारिश की। इस राखी से भावुक हुआ हुंमायूं अपनी सेना के साथ रानी की मदद के लिए पहुंचा।


-राजपूतों के इतिहास में भी रक्षा के इस धागे की अहम जगह है। कहा जाता है कि जब भी राजपूत युद्ध के लिए निकलते थे, तो औरतें उनके माथे में तिलक लगाकर, कलाईयों में रक्षा धागे बांधती थीं। यह धागा जीत का शुभ चिह्न माना जाता था।

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