Edited By ,Updated: 16 Dec, 2015 09:56 AM
शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्रीसीताराम का विवाह हुआ था इसलिए इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में जाना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्रीसीताराम का विवाह हुआ था इसलिए इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में जाना जाता है। बहुत सारे पंडितो का मानना है की श्रीराम और सीता के 36 में से 36 गुण मिले थे। आज भी जिस लड़के और लड़की के पूरे 36 गुण मिल जाते हैं उसे तो पंडित की तरफ से भगवान द्वारा बनाई गई श्रेष्ठ जोड़ी का खिताब मिल जाता है जैसे सीता-राम की जोड़ी।
विवाह से पहले ही देवी सीता ने श्रीराम को पति रूप में स्वीकार कर लिया था। दोनों पहली बार राजा जनक की पुष्पवाटिका में मिले थे। वहां देवी सीता विवाह से पहले गौरी पूजन कर उनसे सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करने आई थी और प्रभु राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ पुष्प तोड़ने आए थे। प्रथम भेंट में ही दोनों एक दूसरे को पसंद कर चुके थे।
श्रीरामायण के इस दोहे अनुसार-
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो। करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो। एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली। तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
श्रीराम जी को देखने के बाद देवी सीता माता गौरी का पूजन करते वक्त मन ही मन उनसे विनती करती हैं कि पति रुप में उन्हें श्रीराम प्राप्त हों। माता गौरी उन्हें आशीष देती हैं कि उन्हें पति रूप में श्रीराम ही प्राप्त होंगे। धनुष भंग करके श्रीसीताराम विवाह बंधन में बंध गए।