अभिरक्षा की लड़ाई में 14-वर्षीय लड़की को ‘चल संपत्ति' नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Edited By Pardeep,Updated: 05 Mar, 2024 10:42 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 14-साल के बच्चे को ‘चल संपत्ति' नहीं माना जा सकता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक लड़की के जैविक पिता को उसकी अभिरक्षा की अनुमति दी गई थी।

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 14-साल के बच्चे को ‘चल संपत्ति' नहीं माना जा सकता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक लड़की के जैविक पिता को उसकी अभिरक्षा की अनुमति दी गई थी। 

न्यायालय ने कहा कि नाबालिग बच्ची अपनी बुआ के साथ खुशीपूर्वक रह रही है। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ बुआ (पिता की बहन) की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि बच्चे का स्थायित्व "सर्वाधिक महत्वपूर्ण" है। इसमें कहा गया है कि मार्च 2014 में पैदा हुई बच्ची लगभग तीन महीने की उम्र से ही अपने जैविक पिता की बहन (बुआ) के साथ रह रही है।

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा, “यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें कोई भी पक्ष गोद लेने का दावा कर रहा है, जो अन्य प्रकार से मोहम्मडन कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है। संरक्षक होने का दावा भी नहीं किया जा रहा है। यह केवल बच्चे की अभिरक्षा से संबंधित विवाद है।'' पीठ ने सोमवार को सुनाए गए फैसले में इस बात का उल्लेख किया कि उसने बच्ची से बातचीत की, जिसने कहा कि वह वर्तमान (बुआ के) परिवार के साथ रहकर खुश है और वह “अस्थिर” नहीं होना चाहती। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब बच्चे की अभिरक्षा बुआ को दी गई थी तब वह अविवाहित थी, लेकिन अब उसके दो बच्चे हैं। हालांकि, यह अदालत के फैसले में बाधक नहीं था, क्योंकि बच्ची ने स्पष्ट रूप से अपनी बुआ के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की थी। न्यायालय ने कहा, ‘‘बच्ची की मौजूदा उम्र को ध्यान में रखते हुए वह इस संदर्भ में अपनी राय बनाने में सक्षम है....उसे 14 साल की उम्र में चल संपत्ति के तौर पर प्रतिवादी संख्या दो (पिता) को नहीं सौंपा जा सकता, जिसके साथ वह जन्म के समय से कभी नहीं रही। बच्ची का स्थायित्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।'' 

लड़की की मां ने 2014 में जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था। दंपती ने दो बच्चों में से एक को अपने पास रखा, जबकि उन्होंने लड़की को पालने के लिए उसकी नानी को सौंप दिया। ओडिशा उच्च न्यायालय के आदेश आने तक नानी ने उसे उसकी बुआ को सौंपने से पहले तीन महीने तक अपने पास रखा। तब से बच्ची अपनी बुआ के साथ ही रह रही थी। 

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