मर चुकी महिला की रगों में फिर दौड़ा खून — दिल्ली के डॉक्टरों ने रचा इतिहास, एशिया में पहली बार हुआ ऐसा चमत्कार

Edited By Updated: 10 Nov, 2025 08:32 AM

a dead woman s blood flows again  delhi doctors create history

मेडिकल साइंस की हिस्ट्री में ऐसा चमत्कार शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो। दिल्ली के द्वारका स्थित HCMCT मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसने न सिर्फ देश बल्कि पूरे एशिया को गौरवान्वित कर दिया है। डॉक्टरों की टीम ने 55...

 नई दिल्ली: मेडिकल साइंस की हिस्ट्री में ऐसा चमत्कार शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो। दिल्ली के द्वारका स्थित HCMCT मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसने न सिर्फ देश बल्कि पूरे एशिया को गौरवान्वित कर दिया है। डॉक्टरों की टीम ने 55 वर्षीय महिला की मौत के बाद उनके शरीर में फिर से रक्त प्रवाह चालू कर दिया, ताकि उनके अंगों को सुरक्षित रूप से जरूरतमंद मरीजों को दान किया जा सके।

यह कारनामा संभव हुआ “नॉर्मोथर्मिक रीजनल परफ्यूजन (NRP)” नामक तकनीक से — यह तकनीक अब तक एशिया में किसी भी अस्पताल ने सफलतापूर्वक नहीं अपनाई थी। इस प्रक्रिया में ECMO मशीन की मदद से महिला के शरीर के निचले हिस्से में ऑक्सीजन युक्त रक्त का संचार दोबारा चालू किया गया, ताकि उनके लिवर और किडनी को जीवित स्थिति में रखा जा सके और ट्रांसप्लांट के लिए तैयार किया जा सके।

मृतका गीता चावला, जो लंबे समय से मोटर न्यूरॉन डिज़ीज़ से जूझ रही थीं, ने जीवनकाल में ही अंगदान की इच्छा जताई थी। 6 नवंबर की रात जब उन्हें मृत घोषित किया गया, तो परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए अंगदान की अनुमति दी। इसके बाद डॉक्टरों ने अत्यंत सावधानी और वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत NRP प्रोसीजर शुरू किया।

मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन के चेयरमैन डॉ. श्रीकांत श्रीनिवासन के अनुसार, भारत में आमतौर पर अंगदान ब्रेन डेथ के बाद किया जाता है, जब दिल अभी भी धड़कता है। लेकिन इस मामले में अंगदान सर्कुलेटरी डेथ के बाद हुआ — यानी जब दिल की धड़कन पूरी तरह रुक चुकी थी। ऐसे में समय बहुत कम होता है, लेकिन NRP तकनीक ने यह चुनौती पार कर ली। प्रक्रिया पूरी होते ही NOTTO (नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) ने तुरंत अंगों को जरूरतमंद मरीजों को आवंटित किया।

गीता चावला का लिवर इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (ILBS) में 48 वर्षीय मरीज को ट्रांसप्लांट किया गया। उनकी दोनों किडनियां मैक्स हॉस्पिटल, साकेत में दो मरीजों - एक 63 और दूसरे 58 वर्ष के - को दी गईं। साथ ही, उनकी कॉर्निया और त्वचा भी दान की गई, जिससे कई अन्य लोगों को नई रोशनी और उम्मीद मिली। यह उपलब्धि न सिर्फ विज्ञान की जीत है बल्कि मानवता की भी मिसाल है - जहां एक व्यक्ति की मृत्यु ने कई जिंदगियों को नई शुरुआत दी।  

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