देश ‘आजादी’ के 69वें वर्ष में दाखिल लेकिन जनता के सपने पूरे होने बाकी

Edited By ,Updated: 14 Aug, 2015 11:44 PM

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आज 15 अगस्त है और हम स्वतंत्रता के 69वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आज का यह दिन हम ऐसे वातावरण में मना रहे हैं जब हमारी सीमाओं पर लगातार हमले हो रहे हैं और देश की सुरक्षा भारी खतरे में है।

आज 15 अगस्त है और हम स्वतंत्रता के 69वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।  आज का यह दिन हम ऐसे वातावरण में मना रहे हैं जब हमारी सीमाओं पर लगातार हमले हो रहे हैं और देश की सुरक्षा भारी खतरे में है। पाकिस्तान मात्र जुलाई महीने में ही 18 बार युद्ध विराम का उल्लंघन कर चुका है। 

अब तक के सफर में हमने अनेक क्षेत्रों में तरक्की की है। स्वतंत्रता के समय हम खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भर थे परंतु अब हम आत्मनिर्भर हो गए हैं। इसी अवधि में देश में कारों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। घर-घर में मोटरसाइकिल, एयरकंडीशनर, कम्प्यूटर, टैलीविजन और अधिकांश जेबों में मोबाइल फोन पहुंच चुके हैं।
 
देश में कम्प्यूटर क्रांति आई और विज्ञान-प्रौद्योगिकी में भारत का विश्व में दबदबा बना है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों पर भारतीयों का वर्चस्व बढ़ा है व विदेशों में बसने वाले भारतीयों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। 
 
परंतु इसके साथ ही नकारात्मक पहलुओं की भी कोई कमी नहीं। आज भी देश में बड़ी संख्या में लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा तथा चिकित्सा जो सरकारी स्कूलों व अस्पतालों में मिलनी चाहिए, नहीं मिल रही और लोग स्वच्छ पानी और लगातार बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। यही नहीं आर्थिक बोझ तले दबे किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। 
 
देश में कानून व्यवस्था का भठ्ठा बैठा हुआ है। हत्या, लूटपाट, ड़कैती और महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार बढ़ रहे हैं। मासूम बच्चियों और वृद्धाओं तक से बलात्कार हो रहे हैं। थानों पर हमले हो रहे हैं। माओवादियों व अन्य समाज विरोधी तत्वों की विध्वंसक गतिविधियां लगातार जारी हैं।
 
देश में इस वर्ष के पहले 6 महीनों में  साम्प्रदायिक हिंसा की 330 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं जबकि 2014 में इसी अवधि में 252 घटनाएं हुई थीं। इस वर्ष पहले 6 महीनों में साम्प्रदायिक हिंसा में 51 लोग मारे गए जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 33 लोग मारे गए थे। 
 
आजादी के बाद देश में अधिकांश समय तक कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का शासन रहा। बीच में लगभग सवा 8 वर्ष श्री वाजपेयी की एन.डी.ए. सरकार तथा जनता पार्टी की गठबंधन सरकारें रहीं और 2014 के चुनावों में पहली बार भाजपा ने भारी बहुमत से अपनी सरकार बनाई है। 
 
शुरू से ही हमारे देश के शासक जनता को राम राज्य का सपना दिखाते रहे हैं जो अब तक अधूरा है। 2014 में श्री  नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई भाजपा सरकार से बड़ी आशाएं थीं लेकिन सरकार की कारगुजारी से उनके सहयोगी दलों तक में भी निराशा पैदा हो रही है। 
 
23 जुलाई को ही भाजपा की पूर्व सहयोगी शिव सेना के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने कहा कि ‘‘नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद देश में कुछ भी नहीं बदला’’ और अब नरेंद्र मोदी के प्रशंसक व बजाज उद्योग समूह के अध्यक्ष राहुल बजाज ने भी कहा है कि ‘‘मोदी सरकार चमक खो रही है। देश में भ्रष्टाचार नहीं घटा।’’
 
देश के दोनों ही बड़े दलों में आदर्शों और नैतिकता के मापदंडों का क्षरण हुआ है तथा वास्तविक कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा और अंतर्कलह जोरों पर है। राष्ट्रीय और राष्ट्रीय हित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी दोनों राजनीतिक दलों में सहमति नहीं हो पाती जिस कारण न संसद चल पाती है और न ही राज्यों की विधानसभाओं में कोई काम हो पाता है। 
 
दोनों ही बड़े राष्ट्रीय दलों कांग्रेस तथा भाजपा पर से जनता का विश्वास उठ गया है जिसका प्रमाण फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनावों में मिला जब आम आदमी पार्टी (आप) ने 70 में से 67 सीटें जीत लीं। 
 
देश में महंगाई, रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहे हैं और यह सब देखकर कभी-कभी तो लगता है कि देश किसी अंतहीन सुरंग में गुम होता चला जा रहा है और यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा कोई पता नहीं।
 
ऐसी निराशाजनक स्थिति के बावजूद यह संसार आशा पर ही कायम है। अत: आशा करनी चाहिए कि हमारे शासक वर्ग को प्रभु देर-सवेर इतनी सद्बुद्धि अवश्य देंगे कि वे उन सपनों को पूरा करने की दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ाएं जिन्हें दिखाकर वे सत्ता में आए थे।  
 

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