Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 24 Jul, 2025 10:41 AM

देश की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह कदम संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन यानी 21 जुलाई को उठाया। हालांकि, उन्होंने इसके पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया लेकिन खबरों...
नेशनल डेस्क: देश की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह कदम संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन यानी 21 जुलाई को उठाया। हालांकि, उन्होंने इसके पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया लेकिन खबरों की मानें तो इसकी असली वजह कुछ और ही है। जानकारी के अनुसार यह पूरा मामला जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ पेश किए गए एक प्रस्ताव को लेकर था। विपक्ष की ओर से यह प्रस्ताव तैयार किया गया था जिस पर 63 सांसदों के हस्ताक्षर थे। आश्चर्य की बात यह रही कि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस प्रस्ताव को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया। यह फैसला सत्तापक्ष के लिए चौंकाने वाला था क्योंकि सरकार भी जस्टिस वर्मा को लेकर एक अलग प्रस्ताव तैयार कर रही थी। लेकिन धनखड़ ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया जिससे सरकार असहज हो गई।
केंद्र सरकार की नाराज़गी और दो मंत्रियों का फोन
इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाराज़गी सामने आई। रिपोर्ट्स के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने उपराष्ट्रपति से फोन पर बात की। उन्होंने यह साफ कहा कि प्रधानमंत्री इस फैसले से खुश नहीं हैं। हालांकि, फोन पर धनखड़ ने स्पष्ट किया कि वे सिर्फ नियमों के दायरे में रहकर काम कर रहे हैं और उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।
बिना प्रोटोकॉल के पहुंचे राष्ट्रपति भवन
इस पूरे घटनाक्रम को और चौंकाने वाला तब माना गया जब धनखड़ ने बिना किसी पूर्व सूचना के राष्ट्रपति भवन पहुंचकर इस्तीफा दे दिया। आमतौर पर ऐसी मुलाकातें पहले से तय होती हैं और सभी सरकारी प्रोटोकॉल का पालन होता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। उनकी यह अचानक घोषणा ना सिर्फ सरकार बल्कि पूरे सियासी गलियारों को हैरान कर गई।
क्या है इसके पीछे की असल वजह?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ और केंद्र सरकार के बीच विचारों की टकराहट लंबे समय से जारी थी। जस्टिस वर्मा का मामला शायद इस दूरी को आखिरी मोड़ तक ले आया। धनखड़ का इस्तीफा यह दर्शाता है कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति जब अपनी स्वायत्तता और नियमों का पालन करते हैं तो राजनीतिक ताकतें भी असहज हो जाती हैं।