Edited By rajesh kumar,Updated: 29 Jun, 2022 07:20 PM
उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र संकट पर बुधवार को कहा कि विधानसभा का पटल लोकतंत्र के इन मुद्दों का हल कर करने के लिए एकमात्र रास्ता है। न्यायालय ने शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।
नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र संकट पर बुधवार को कहा कि विधानसभा का पटल लोकतंत्र के इन मुद्दों का हल कर करने के लिए एकमात्र रास्ता है। न्यायालय ने शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। यह याचिका महाराष्ट्र के राज्यपाल के उस निर्देश के खिलाफ दायर की गई है, जिसमें राज्य की उद्धव ठाकरे नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को बृहस्पतिवार को विधानसभा में शक्ति परीक्षण के लिए कहा गया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने प्रभु की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि शक्ति परीक्षण (विधायकों की) अयोग्यता प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर सकता है या अयोग्यता कार्यवाही करने की विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों में किस तरह से हस्तक्षेप कर सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि सदन का पटल ही लोकतंत्र के इन मुद्दों का हल करने के लिए एकमात्र रास्ता है।''
शिवसेना के वकील सिंघवी ने क्या दलीलें दीं?
सिंघवी ने दलील दी कि न्यायालय को उस वक्त तक शक्ति परीक्षण की अनुमति नहीं देनी चाहिए जब तक कि डिप्टी स्पीकर कुछ बागी विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं कर लेते हैं। सिंघवी ने कहा कि शक्ति परीक्षण अतिशीघ्र कराने का आदेश चीजों को गलत तरीके से या गलत क्रम में करने जैसा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो विधायक कोरोना वायरस से संक्रमित हैं जबकि कांग्रेस के दो विधायक विदेश में हैं और उनसे बृहस्पतिवार को शक्ति परीक्षण में हिस्सा लेने को कहा गया है।
सिंघवी ने कहा कि शक्ति परीक्षण कराने का मतलब संविधान की 10वीं अनुसूची को निष्क्रिय करने जैसा होगा। पीठ ने कहा कि 10वीं अनुसूची कड़े प्रावधानों वाला है और न्यायालय को इसे मजबूत करना चाहिए। विषय की सुनवाई जारी है। गौरतलब है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र के विधानभवन के सचिव को बृहस्पतिवार सुबह 11 बजे एमवीए सरकार का शक्ति परीक्षण कराने को कहा है।