Edited By Yaspal,Updated: 15 Feb, 2020 07:13 PM
कांग्रेस महासचिव मल्लिकार्जुन खड़गे ने संविधान के तहत प्रदत्त आरक्षण को राज्यों द्वारा अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए केंद्र से कानून में संशोधन करने की शनिवार को मांग की। खड़गे ने कहा कि भाजपा नीत उत्तराखंड सरकार द्वारा अनुसूचित जाति (एससी) और...
मुंबईः कांग्रेस महासचिव मल्लिकार्जुन खड़गे ने संविधान के तहत प्रदत्त आरक्षण को राज्यों द्वारा अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए केंद्र से कानून में संशोधन करने की शनिवार को मांग की। खड़गे ने कहा कि भाजपा नीत उत्तराखंड सरकार द्वारा अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को आरक्षण मुहैया किए बगैर राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में पदों को भरने की ‘गलती' को निष्प्रभावी करने के लिए कानून में बदलाव जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘‘ उत्तराखंड सरकार आरक्षण के लिए मामले को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।'' उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने हाल में कहा था कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं और पदोन्नति में कोटा का दावा करना मौलिक अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताते हुए खड़गे ने कहा, ‘‘ अदालत ने कई टिप्पणियां की हैं, जैसे आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है, जबकि इसकी जरूरत नहीं थी।'' उन्होंने कहा, ‘‘ समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।'' कांग्रेस नेता ने सार्वजनिक पदों पर भर्ती और पदोन्नति में आरक्षण को मौलिक अधिकार नहीं बताने वाले उत्तराखंड सरकार के तर्क को ‘‘ मनुवादी'' करार दिया। खड़गे ने इसे आरक्षण खत्म करने की ओर पहला कदम करार दिया और कहा कि कांग्रेस इसका विरोध करेगी।
कांग्रेस के मुताबिक उत्तराखंड सरकार ने संवैधानिक प्रावधान के बावजूद अदालत में कहा कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कोई निर्देश नहीं दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की है जबकि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान आर्थिक रूप से कमजोर तबके को आरक्षण का जोर-शोर से जिक्र किया था। केंद्र रिक्तियों को भर नहीं रहा, बल्कि सार्वजनिक उपक्रमों को बंद कर रहा है।''
खड़गे ने कहा, ‘‘जहां तक रेलवे की बात है तो सरकार ने 150 मार्गों का निजीकरण किया है। उन्होंने कहा, ‘‘ वह (केंद्र सरकार) सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करने की प्रक्रिया में जुटी हुई है। आजादी के तुरंत बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो शुरू किया था वह उसे नष्ट करने की कोशिश कर रही है।''