Edited By Pardeep,Updated: 22 Feb, 2020 11:16 AM
ब 5 अगस्त को राज्यसभा में अनुच्छेद 370 निरस्त करने का विधेयक पारित हो रहा था, ठीक उस समय एक संवैधानिक चूक होते-होते टल गई। विधेयक को लेकर गृहमंत्री अमित शाह बड़े प्रसन्न थे। एक के बाद एक मंत्री आगे बढ़-बढ़कर उन्हें बधाई दे रहे थे। इस गहमागहमी के बीच...
नेशनल डेस्कः जब 5 अगस्त को राज्यसभा में अनुच्छेद 370 निरस्त करने का विधेयक पारित हो रहा था, ठीक उस समय एक संवैधानिक चूक होते-होते टल गई। विधेयक को लेकर गृहमंत्री अमित शाह बड़े प्रसन्न थे। एक के बाद एक मंत्री आगे बढ़-बढ़कर उन्हें बधाई दे रहे थे। इस गहमागहमी के बीच सायं लगभग 5 बजे एक संयुक्त सचिव सदन में पधारे और उन्होंने अमित शाह के कान में कुछ फुसफुसाया जिसे सुनकर अमित शाह के मुखमंडल से मुस्कान उड़ गई। संयुक्त सचिव ने उनके कान में जो कहा वह यह था कि लोकसभा का पूर्व अनुमोदन लिए बिना जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एवं अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण असंवैधानिक होगा।
यह बात सुनकर जब अमित शाह अपने चैंबर में चाय के लिए पहुंचे तो उनको चाय में मिठास गायब-सी लग रही थी। यह बात जब अन्य मंत्रियों को पता चली तो उन्हें लगा मानो संयुक्त सचिव ने भाजी मार दी है। एक मंत्री ने तो संयुक्त सचिव को उनके ‘नामाकूल’ सुझाव के लिए झाड़ते हुए कहा, ‘‘एक कनिष्ठ अधिकारी कैसे अंतिम क्षणों में अडंग़े डाल सकता है।’’ परंतु अमित शाह किसी बात को हल्के में लेने वाले नहीं हैं। उन्होंने संयुक्त सचिव की पूरी बात सुनी। सारे मामले में फांस यह थी कि चूंकि अनुच्छेद 370 केवल जम्मू-कश्मीर संविधान सभा द्वारा या उसकी अनुपस्थिति में जम्मू-कश्मीर सभा द्वारा ही निरस्त किया जा सकता है, राज्यसभा इसे निरस्त नहीं कर सकती।
उन्होंने बताया कि लोकसभा में एक प्रस्ताव लाया जाना चाहिए जो जम्मू-कश्मीर सभा की शक्तियां सदन को प्रदान करे ताकि वह कोई कानून पास कर सके। अत: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पहले चर्चा के लिए लोकसभा में रखा जाए और उसके बाद ही वह राज्यसभा में पारित हो सकता है। यह पूरी तरह एक नई समस्या खड़ी हो गई थी। इसके लिए कई बैठकें करना और कई प्रकार की औपचारिकताएं पूरी करना अनिवार्य हो गया। संयुक्त सचिव ने जो विषय उठाया था, वह बिल्कुल समायोजित था। ठीक उसी समय पता चला कि लोकसभा में इस समय सरोगेसी विधेयक पर चर्चा चल रही है।
अमित शाह स्पीकर के चैंबर में गए और उन पर इस बात के लिए जोर डाला कि सदन में जम्मू-कश्मीर सभा की शक्तियां संसद को प्रदान करने वाला प्रस्ताव प्रस्तुत करने की तुरंत अनुमति दी जाए। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लाने की भी अनुमति मांगी। उस समय लोकसभा सदन में बहुत थोड़े विपक्षी सांसदों के अलावा डी.एम.के. के टी.आर. बालू थे जिन्होंने इसका विरोध किया लेकिन सत्ताधारी पार्टी ने उनकी एक न चलने दी और प्रस्ताव लाने की अनुमति मिल गई। अमित शाह विजयी भाव लिए राज्यसभा में वापस आए और उस प्रस्ताव को पटल पर रखा जो लोकसभा में शोर-शराबे के बीच पास करा लिया गया था। बाकी इतिहास है।