Edited By vasudha,Updated: 08 Aug, 2019 05:48 PM
संयुक्तराष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) के एक जलवायु मूल्यांकन में कहा गया कि यदि उत्सर्जन और वनों की कटाई पर रोक नहीं लगायी गई तो मानवता कुछ दशकों में खाद्य सुरक्षा और बढ़ते तापमान के बीच अस्थिरता का सामना कर सकती है...
नेशनल डेस्क: संयुक्तराष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) के एक जलवायु मूल्यांकन में कहा गया कि यदि उत्सर्जन और वनों की कटाई पर रोक नहीं लगायी गई तो मानवता कुछ दशकों में खाद्य सुरक्षा और बढ़ते तापमान के बीच अस्थिरता का सामना कर सकती है। आईपीसीसी ने चेतावनी दी कि बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के बीच वैश्विक तापमान सीमित करने के प्रयासों में यदि तेजी नहीं लायी गई तो ये प्रयास बेकार हो सकते हैं। साथ ही हमारे द्वारा जमीन के इस्तेमाल में भी परिवर्तन लाने की जरुरत है।
भूमि इस्तेमाल और जलवायु परिवर्तन पर उसकी रिपोर्ट में भविष्य में वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने के लिए उष्णकटिबंधीय वनों को बचाने की जरुरत को रेखांकित किया गया है। इसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि उत्सर्जन में कमी खतरनाक स्थिति से बचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में कार्बन प्रबंधन के प्रोफेसर डेव रियाय ने कहा कि यह खतरनाक स्थिति है। सीमित जमीन, बढ़ती जनसंख्या और सभी जलवायु की आपात स्थिति में हैं।
भूमि अंतत: जलवायु से जुड़ी हुई है। अपने वनों, पौधों और मिट्टी की मदद से यह मनुष्यों द्वारा किये एक तिहाई उत्सर्जन को सोख लेती है। इन संसाधनों का अत्यधिक दोहन ग्रह को गर्म करने वाला कार्बन डायआक्साइड, मीथेन और नाइट्रस आक्साइड उत्पन्न करता है। वहीं कृषि क्षेत्र पृथ्वी के ताजा पानी के लगभग 70 प्रतिशत का उपयोग करता है।
वैश्विक जनसंख्या जब सदी के मध्य तक 10 अरब होने की ओर बढ़ रही है, जमीन का उपयोग किस तरह से सरकारों, उद्योग और किसानों द्वारा किया जाता है यह तय करेगा कि जलवायु परिवर्तन सीमित होगा, तेज होगा या स्थिति अत्यंत खराब होगी। आईपीसीसी सह अध्यक्ष एच ली ने वीरवार को रिपोर्ट जारी करने के दौरान कहा कि भूमि बढ़ती आबादी के दबाव में है और भूमि ही समाधान का हिस्सा है लेकिन यह सब अकेले नहीं कर सकती।