सरकार का बड़ा फैसला: अब ज़रूरी नहीं FGD, कोयला संयंत्रों को मिली पर्यावरण नियमों से राहत

Edited By Updated: 13 Jul, 2025 11:33 AM

fgd is no longer necessary coal plants get relief from environmental rules

भारत सरकार ने हाल ही में एक ऐसा फैसला लिया है जो पर्यावरण से जुड़े नियमों में बड़ी छूट के रूप में देखा जा रहा है। इस फैसले के तहत अब देश के लगभग 80% कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम लगाने की जरूरत नहीं होगी। यह वही...

नेशनल डेस्क: भारत सरकार ने हाल ही में एक ऐसा फैसला लिया है जो पर्यावरण से जुड़े नियमों में बड़ी छूट के रूप में देखा जा रहा है। इस फैसले के तहत अब देश के लगभग 80% कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम लगाने की जरूरत नहीं होगी। यह वही यंत्र है जो संयंत्रों से निकलने वाली जहरीली सल्फर डाइऑक्साइड गैस को कम करता है।

क्या है FGD सिस्टम और क्यों है ज़रूरी?
FGD यानी फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन एक विशेष प्रकार की तकनीक है जो बिजली संयंत्रों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस को नियंत्रित करती है। यह गैस वायु प्रदूषण का बड़ा कारण होती है और सांस की बीमारियों से लेकर अम्ल वर्षा तक कई गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देती है। भारत सरकार ने वर्ष 2015 में इसे कोयला आधारित सभी बिजली संयंत्रों के लिए अनिवार्य कर दिया था।

नया आदेश: कहाँ लागू होगी छूट?
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, अब देश के 79% कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को FGD लगाने से छूट दे दी गई है। ये वे संयंत्र हैं जो अत्यधिक प्रदूषित या घनी आबादी वाले क्षेत्रों से कम से कम 10 किलोमीटर दूर स्थित हैं। ऐसे संयंत्रों को अब यह प्रदूषण-रोधी तकनीक अपनाने की बाध्यता नहीं होगी।

क्यों लिया गया यह फैसला?
इस फैसले के पीछे सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया है कि जिन इलाकों में संयंत्र स्थित हैं, वे न तो ज्यादा आबादी वाले हैं और न ही पहले से अत्यधिक प्रदूषित। ऐसे में वहां FGD सिस्टम लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाती। इसके अलावा, संयंत्रों की आर्थिक स्थिति और बिजली उत्पादन लागत में संभावित वृद्धि भी इस निर्णय के पीछे के कारणों में गिनी जा रही है।

क्या होंगे इसके पर्यावरणीय प्रभाव?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। भले ही संयंत्र कम आबादी वाले क्षेत्रों में हों, लेकिन वायु प्रदूषण सीमाओं में नहीं बंधता। सल्फर डाइऑक्साइड हवा में मिलकर सैकड़ों किलोमीटर दूर तक असर डाल सकती है। इससे ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत पर नकारात्मक असर हो सकता है।

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