आपातकाल पर संविधान के प्रावधानों में संशोधन अनुभवों की उपज : न्यायालय

Edited By PTI News Agency,Updated: 01 Oct, 2020 09:38 PM

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नयी दिल्ली, एक अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि आपातकाल पर संविधान के प्रावधानों में किये गये संशोधन, आपातकाल के दौरान हुयी ज्यादतियों की उपज हैं, जिसने यह बताया कि ‘अनियंत्रित शक्तियां और निर्बाध विवेकाधिकार’...

नयी दिल्ली, एक अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि आपातकाल पर संविधान के प्रावधानों में किये गये संशोधन, आपातकाल के दौरान हुयी ज्यादतियों की उपज हैं, जिसने यह बताया कि ‘अनियंत्रित शक्तियां और निर्बाध विवेकाधिकार’ स्वतंत्रता को बर्बाद करने के हालात को जन्म देते हैं।

आपातकाल पर संविधान के प्रावधानों में किये गए संशोधन का मकसद इसके दुरुपयोग को रोकना था।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि 1978 में संविधान के 44वें संशोधन ने अनुच्छेद 352 के तहत आपात शक्तियों को सीमित किया और ‘आंतरिक अशांति’ शब्द को बदलकर ‘सशस्त्र विद्रोह’ कर दिया गया।

न्यायालय ने कहा कि अब महज आंतरिक अशांति के नाम पर देश में आपातकाल लागू नहीं किया जा सकता और यह भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले सशस्त्र विद्रोह की सीमा तक पहुंचनी चाहिए।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूति के एम जोसफ की पीठ ने अपने फैसले में कहा,‘‘अनुच्छेद 352 में संसदीय संशोधन अनुभवों की उपज है: आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों से मिले अनुभव, मानव अधिकारों के उल्लंघन के अनुभव और इन सबके ऊपर यह सबक कि अनियंत्रित अधिकार और निर्बाध विवेकाधिकार स्वतंत्रता को बर्बाद करने के लिये अनुकूल माहौल उपलब्ध कराते हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘अपने पिछले इतिहास से मिले सबक से हमें इसी तरह के शब्दों वाले किसी भी ऐसे कानून के प्रति सचेत रहना चाहिए, जिनका गंभीर दुरुपयोग हो सकता हो। पीठ ने कहा कि 44वें संविधान संशोधन ने संविधान के अनुच्छेद 352 के दुरुपयोग को रोकने का प्रावधान किया है।’’
न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक मंदी की स्थिति में फैक्टरियों को श्रम कानूनों के कुछ प्रावधानों पर अमल से छूट देने संबंधी गुजरात सरकार के श्रम एवं रोजगार कार्यालय की दो अधिसूचनाओं को निरस्त करते हुये ये टिप्पणियां की।

न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कोविड -19 महामारी की वजह से उत्पन्न आर्थिक मंदी की स्थिति देश की सुरक्षा के लिये खतरा होने वाली ‘आंतरिक अशांति’ के दायरे में नहीं आती है।

न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि महामारी की वजह से उत्पन्न आर्थिक संकट ने शासन के सामने अभूतपूर्व चुनौतियां खड़ी कर दी है लेकिन केन्द्र के साथ तालमेल से राज्य सरकारें इनका समाधान निकाल सकती हैं।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुये तीन बार देश में आपातकाल लगाया। पहली बार, 1962 में चीन के भारत पर हमला करने के दौरान लगाया गया, जिसे 1968 में हटाया गया।

न्यायालय ने कहा, ‘‘1971 में पाकिस्तान के साथ शुरू हुये संघर्ष के बाद राष्ट्रपति ने विदेशी आक्रमण की वजह से भारत की सुरक्षा के प्रति खतरे को देखते हुये आपातकाल की घोषणा की थी। यह घोषणा अभी लागू ही थी कि 25 जून, 1975 को राष्ट्रपति ने एक और घोषणा लागू कर दी कि आंतरिक अशांति के खतरे की वजह से भारत की सुरक्षा के लिये गंभीर आपात स्थिति पैदा हो गयी है। ये दोनों घोषणायें मार्च 1977 में वापस ली गयीं थीं।’’


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