हाईकोर्ट के जमानत मामले में समूचे यूएपीए पर चर्चा पर न्यायालय ने जताई नाखुशी

Edited By PTI News Agency,Updated: 18 Jun, 2021 10:03 PM

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नयी दिल्ली, 18 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जमानत के एक मामले में समूचे आतंकवाद निरोधी कानून यूएपीए पर चर्चा किये जाने को लेकर नाखुशी जाहिर की और यह स्पष्ट किया कि उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा मामले में तीन छात्र...

नयी दिल्ली, 18 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जमानत के एक मामले में समूचे आतंकवाद निरोधी कानून यूएपीए पर चर्चा किये जाने को लेकर नाखुशी जाहिर की और यह स्पष्ट किया कि उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले का इस्तेमाल देश की किसी भी अदालत द्वारा मिसाल के तौर पर नहीं किया जाएगा।

शीर्ष अदालत ने दिल्ली पुलिस की याचिका पर इसी हफ्ते आए उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

न्यायालय ने कहा, “यह हैरान करने वाला है कि जमानत की एक याचिका में 100 पन्नों के फैसले में समूचे कानून पर चर्चा की गई है। यह हमें परेशान कर रहा है। यहां कई सवाल है, जो यूएपीए की वैधानिकता को लेकर सवाल उठाते हैं जिसे उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती ही नहीं दी गई थी। ये जमानत याचिकाएं थीं।”

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि दिल्ली दंगा मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के फैसले में उच्च न्यायालय द्वारा गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) कानून (यूएपीए) के दायरे को ‘सीमित करना एक महत्वपूर्ण’ मुद्दा है जिसका पूरे देश पर असर हो सकता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय द्वारा व्याख्या की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसलों को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपीलों पर जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तनहा को नोटिस जारी किये हैं। तीनों आरोपियों को इन अपील पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने हैं। इस मामले पर अब 19 जुलाई को शुरू हो रहे हफ्ते में सुनवाई की जाएगी।


शीर्ष अदालत ने हालांकि तीनों आरोपियों की जमानत देने के उच्च न्यायालय के 15 जून के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि इन फैसलों को देश में अदालतें मिसाल के तौर पर दूसरे मामलों में ऐसी ही राहत के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगी।


पीठ ने अपने आदेश में कहा, “इस बीच, जिस आदेश को चुनौती दी गई है उसे मिसाल के तौर पर नहीं देखा जाएगा और किसी भी कार्रवाई में किसी भी पक्ष द्वारा इन्हें आधार मानकर दलील नहीं दी जा सकती। यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादियों (नरवाल, कालिता और तन्हा) की जमानत पर इस चरण में हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी कि उच्च न्यायालय ने तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देते हुए पूरे यूएपीए को पलट दिया है। इस पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मुद्दा महत्वपूर्ण है और इसके पूरे भारत में असर हो सकते हैं। हम नोटिस जारी करके दूसरे पक्ष को सुनना चाहेंगे।”

मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि “निष्कर्ष वस्तुत: इन आरोपियों को बरी करने का रिकॉर्ड हैं।” उन्होंने कहा कि अन्य आरोपी भी इसका हवाला देकर जमानत के लिये अनुरोध करेंगे।

पीठ ने कहा, “इस कानून की जिस तरह व्याख्या की गई है उस पर संभवत: उच्चतम न्यायालय को गौर करने की आवश्यकता होगी। इसलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं।”

छात्र कार्यकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि उच्चतम न्यायालय को यूएपीए के असर और व्याख्या पर गौर करना चाहिए ताकि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत का सुविचारित फैसला आए।


इस मामले की सुनवाई की शुरुआत में मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लेख किया और कहा, ‘‘पूरे यूएपीए को सिरे से उलट दिया गया है।’’ मेहता ने कहा कि दंगों के दौरान 53 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हो गए। ये दंगे ऐसे समय में हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति और अन्य प्रतिष्ठित लोग यहां आए हुए थे।


सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने व्यापक टिप्पणियां की हैं। वे जमानत पर बाहर हैं, उन्हें बाहर रहने दीजिए लेकिन कृपया फैसलों पर रोक लगाइए। उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाने के अपने मायने हैं।’’
प्रदर्शन के अधिकार के संबंध में उच्च न्यायालय के फैसलों के कुछ पैराग्राफ को पढ़ते हुए मेहता ने कहा, ‘‘अगर हम इस फैसले पर चले तो पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली महिला भी प्रदर्शन कर रही थी। कृपया इन आदेशों पर रोक लगाएं।’’
उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूएपीए की धारा 15 में “आतंकवादी कृत्य” की परिभाषा यद्यपि व्यापक और कुछ अस्पष्ट है लेकिन इसमें आतंकवाद के आवश्यक लक्षण होने चाहिए और “आतंकवादी कृत्य” वाक्यांश के बेरोकटोक उन आपराधिक कृत्यों के लिये इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती जो स्पष्ट रूप से भारतीय दंड विधान के दायरे में आते हैं।

दिल्ली पुलिस ने फैसले की आलोचना करते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय की व्याख्या से आतंकवादी मामलों में अभियोजन कमजोर होगा।

दिल्ली पुलिस ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूएपीए के प्रावधान सिर्फ उन मामलों से निपटने के लिये लगाए जा सकते हैं, जिनका ‘भारत की रक्षा’ पर स्पष्ट प्रभाव हो, न उससे ज्यादा न उससे कम।

सिब्बल ने कहा कि छात्र कार्यकर्ताओं के पास मामले में बहुत दलीलें हैं।


उच्च न्यायालय ने 15 जून को जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा को जमानत दी थी। उच्च न्यायालय ने तीन अलग-अलग फैसलों में छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था।


अदालत ने कहा था,‘‘ ऐसा लगता है कि सरकार ने असहमति को दबाने की अपनी बेताबी में प्रदर्शन करने का अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली कर दी तथा यदि इस मानसिकता को बल मिलता है तो यह ‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा’। ’’
छात्रों को 50-50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने पर जमानत दी गई है। उन्हें 17 जून को जेल से रिहा किया गया था। यह मामला पिछले वर्ष उत्तर-पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से संबंधित है।


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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