इस गांव में 5 दिन कपड़े नहीं पहनती महिलाएं, बहुत साल से चली आ रही ये अनोखी परंपरा

Edited By Updated: 11 Dec, 2025 03:26 PM

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हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के पिनी गांव में हर साल एक अनोखी परंपरा मनाई जाती है। इस दौरान महिलाएं पांच दिन तक कपड़े नहीं पहनतीं और पूर्ण एकांतवास में रहती हैं। वे न तो घर से बाहर निकलती हैं और न ही परिवार के किसी सदस्य से बात करती हैं। यह प्रथा...

नेशनल डेस्क : भारत अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और अनोखी मान्यताओं के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसी परंपराएं प्रचलित हैं, जिनमें लोगों की गहरी आस्था और विश्वास झलकता है। इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के पिनी गांव की एक अनोखी और दुर्लभ परंपरा सामने आई है।

सावन के अंतिम दिनों में पांच दिवसीय उत्सव
पिनी गांव में सावन महीने के अंतिम दिनों में हर साल यह खास पांच दिवसीय त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान महिलाएं पारंपरिक नियमों के अनुसार पूर्ण एकांतवास में रहती हैं। इस अवधि में वे न तो घर से बाहर निकलती हैं और न ही अपने पतियों या परिवार के किसी सदस्य से बातचीत करती हैं। इस परंपरा को महिलाओं के लिए पवित्र, अनिवार्य और अनुशासनपूर्ण माना जाता है।

पुरुषों पर भी सख्त नियम लागू
त्योहार के दौरान पुरुषों पर भी विशेष नियम लागू होते हैं। किसी भी पुरुष को घर के भीतर प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती। साथ ही उन्हें संयम का पालन करना पड़ता है और शराब, मांसाहार तथा किसी भी प्रकार के अपवित्र आचरण से दूर रहना होता है। गांव वाले मानते हैं कि यदि किसी ने इस अवधि में नियमों का उल्लंघन किया, तो विपत्ति आ सकती है। यही कारण है कि पूरा गांव इन नियमों का पालन अत्यंत श्रद्धा और अनुशासन के साथ करता है।

पौराणिक कथा से जुड़ी परंपरा
इस अनोखी प्रथा के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। माना जाता है कि प्राचीन काल में एक राक्षस बार-बार गांव पर हमला करता था। उस समय गांव के संरक्षक देवता लाहु घोंडा ने उस राक्षस का वध करके गांव की रक्षा की थी। इसी घटना की स्मृति और देवता के सम्मान में यह परंपरा शुरू हुई। लोग मानते हैं कि देवता की कृपा और गांव की सुरक्षा बनाए रखने के लिए इस प्रथा का पूर्ण पालन करना आवश्यक है।

भले ही आधुनिक समाज में यह रस्म अनोखी और असामान्य लग सकती है, लेकिन पिनी गांव के लिए यह परंपरा उनकी सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हर साल यह उत्सव गांववासियों के लिए श्रद्धा, अनुशासन और सामूहिक विश्वास का प्रतीक बनकर आता है।

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