संविधान के उल्लंघन में 5 साल के कार्यकाल से आगे काम करता रहा चौथा राज्य वित्त आयोग : धनखड़

Edited By PTI News Agency,Updated: 19 Sep, 2021 06:57 PM

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कोलकाता, 19 सितंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने चौथे राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) के संविधान के उल्लंघन में पांच साल की निर्धारित अवधि के बाद भी काम करते रहने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि आयोग के सदस्य ‘‘वेतन वापस करने के...

कोलकाता, 19 सितंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने चौथे राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) के संविधान के उल्लंघन में पांच साल की निर्धारित अवधि के बाद भी काम करते रहने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि आयोग के सदस्य ‘‘वेतन वापस करने के लिए जवाबदेह’’ हैं और ‘‘सभी खर्चों की वसूली की जानी चाहिए क्योंकि जनता के पैसों को इस तरह बर्बाद नहीं किया जा सकता।’’
उन्होंने यह दावा भी किया कि राज्य वित्त आयोग ने 2014 से राज्यपाल को अनुशंसा नहीं भेजी है, जो उनके मुताबिक ‘‘संवैधानिक तंत्र का ध्वस्त होने जैसा’’ है।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘संविधान के तहत एसएफसी पांच वर्ष के लिये होता है। ममता बनर्जी चौथा राज्य वित्त आयोग संविधान के उल्लंघन में इसके बाद भी बरकरार रहा। अध्यक्ष और सदस्य वेतन और सुविधाएं राज्य को लौटाने के लिये जवाबदेह हैं तथा संबंधितों से सभी खर्चे वसूल किए जाने की जरूरत है क्योंकि जनता के पैसे को इस तरह बर्बाद नहीं किया जा सकता।’’
चौथे राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष अभिरूप सरकार ने हालांकि ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि फरवरी 2016 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपनी रिपोर्ट सौंपने के बाद पैनल के सदस्यों को कोई शुल्क नहीं मिला।

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अप्रैल 2013 में चौथे राज्य वित्त आयोग का गठन किया गया था।

आरोप के बारे में पूछे जाने पर, सरकार ने कहा, ‘‘आयोग के तीन अंशकालिक सदस्य थे। उन्हें बैठकों में आने के लिए फीस मिलती थी। फरवरी 2016 में अपनी रिपोर्ट जमा करने के बाद हमें कोई पैसा नहीं मिला है। कोई नया एसएफसी नहीं बनाया गया है अभी तक।’’
गौरतलब है कि 2019 में कार्यभार संभालने के बाद से धनखड़ का ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी की सरकार के साथ टकराव चल रहा है।

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘‘ममता बनर्जी अनुच्छेद 243आई और 243वाई के तहत राज्य वित्त आयोग को राज्यपाल को सिफारिशें देनी होती हैं जिन्हें राज्य विधानमंडल के समक्ष रखा जाता है। संवैधानिक तंत्र का कैसा पतन है, 2014 के बाद से राज्यपाल को कोई सिफारिश नहीं की गई।’’


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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