मामूली फुलझड़ी से लेकर रॉकेट तक समान रूप से घातक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Oct, 2017 02:47 AM

equally sparky to rocket equally fatal

इससे पहले कि पटाखा समर्थक अत्यधिक भावुक होकर पटाखों पर प्रतिबंध को सुप्रीमकोर्ट का हिन्दू विरोधी पग करार दें उन्हें सुबह के समय दिल्ली के सर्वाधिक लोकप्रिय लोधी गार्डन में सैर के लिए जाना चाहिए। इस 90 एकड़ में सघन उगे हुए पेड़ों वाले गार्डन में धुंध...

इससे पहले कि पटाखा समर्थक अत्यधिक भावुक होकर पटाखों पर प्रतिबंध को सुप्रीमकोर्ट का हिन्दू विरोधी पग करार दें उन्हें सुबह के समय दिल्ली के सर्वाधिक लोकप्रिय लोधी गार्डन में सैर के लिए जाना चाहिए। इस 90 एकड़ में सघन उगे हुए पेड़ों वाले गार्डन में धुंध और धुआं इतना गहरा होता है कि 8 बजे सुबह तक वहां चलना बड़ा मुश्किल होता है तो फिर शेष दिल्ली या शेष उत्तर भारत की हालत क्या होगी? यह स्थिति भी तब है जब अभी पटाखे नहीं फोड़े जा रहे। 

विशेषज्ञों का कहना है कि पटाखों पर प्रतिबंध से सामान्य प्रदूषण जांच में नहीं नापे जाने वाले पारा, सिक्का और एल्यूमीनियम जैसे विषैले पदार्थों की घातक खुराक से नागरिक बच सकेंगे। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार यह एक ऐसा पग है जो नए डीजल वाहनों पर अस्थायी रोक, और ऑड-ईवन स्कीम से अधिक विवेकपूर्ण है।

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सिस इंस्टीच्यूट अथवा टी.ई.आर.आई. के महानिदेशक अजय माथुर के अनुसार गत वर्ष दिल्ली को 10 दिनों तक खतरनाक हद तक विषैले तत्वों से युक्त जिस गहरे धुंधलके ने अपनी लपेट में ले रखा था उसमें पटाखे चलाने का बहुत बड़ा योगदान था। उनके अनुसार ‘‘सुप्रीमकोर्ट का प्रतिबंध इस बात को यकीनी बनाएगा कि पिछले वर्षों के विपरीत दिल्ली दीवाली के बाद स्वच्छ हवा के लिए नहीं तरसेगी और इस बार सांस की बीमारियों से पीड़ितों को इस अवधि के दौरान शहर छोड़ कर कहीं और जाने के बारे में सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी।’’ 

उल्लेखनीय है कि मामूली फुलझड़ी से लेकर अधिक व्यापक राकेट तक  में मौजूद मिश्रण को जलाने के लिए आक्सीजन पैदा करने के लिए आक्सीडाइटिंग एजैंटों की जरूरत पड़ती है। इसी से रिएक्शन की गति और रंग निर्धारण होता है तथा मिश्रण आपस में जुड़ा रहता है। मोटे तौर पर पटाखों आदि के निर्माण में नाइट्रेट, सल्फर, चारकोल, एल्यूमीनियम, टाइटेनियम, तांबा, स्ट्रोन्शियम, बैरियम, डैक्सट्रिन एवं पैरोन आदि का इस्तेमाल किया जाता है। विशेष रूप से दीवाली के अवसर पर चलाए जाने वाले पटाखों की भारी मात्रा को देखते हुए क्रियात्मक रूप से शरीर का प्रत्येक अंग जोखिम पर होता है। फैसला सुनाने वाले मान्य न्यायाधीशों न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर तथा दीपक गुप्ता ने अपने फैसले के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि दीवाली मनाए जाने के पांच दिनों के भीतर प्रतिदिन दिल्ली में 10 लाख किलो पटाखे चलाए जाते हैं। 

सुप्रीमकोर्ट में अपने हल्फिया बयान में देश के सर्वोच्च प्रदूषण नियामक ‘सैंट्रल बोर्ड आफ पॉल्यूशन कंट्रोल’ (सी.पी.सी.बी.) ने अपने विश्लेषण में कहा कि आमतौर पर 4 तरह के पटाखे इस्तेमाल किए जाते हैं जिनमें एटम बम, चीनी पटाखे, मैरून तथा गारलैंड क्रैकर शामिल हैं। बोर्ड ने अपने विश्लेषण में पाया कि इनमें इस्तेमाल किए जाने वाले 4 मुख्य घटकों में जो चीजें शामिल हैं उनमें पटाखों से चमकीली लपटें एवं सफेद चिंगारियां निकालने के लिए एल्यूमीनियम पाऊडर के अलावा सल्फर, पोटाशियम नाइट्रेट तथा बैरियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है।

सी.पी.सी.बी. के वैज्ञानिकों के अनुसार ये पदार्थ पटाखे चलाने पर पैदा होने वाले स्मॉग का मुख्य स्रोत हैं जो कई दिनों तक दीवाली के बाद भी राजधानी को अपनी लपेट में लिए रखती है। इस स्मॉग में सल्फर आक्साइड तथा नाइट्रोजन आक्साइड के अलावा सिक्का, पारा, स्ट्रोंशियम, लिथियम एवं एल्यूमीनियम जैसी भारी धातुओं से युक्त अन्य पदार्थों का अत्यंत उच्च स्तर होता है। लेकिन हर कोई इस बात पर विश्वास नहीं करता कि राज्य सरकारों ने इस मुद्दे को उतनी गंभीरता से लिया है जितनी गंभीरता से इसे लिया जाना चाहिए। 

सरकार को पटाखों से होने वाले नुक्सान का अधिक आक्रामक ढंग से प्रचार करने की आवश्यकता है क्योंकि ज्यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि पटाखों में क्या कुछ पड़ा हुआ होता है और ये उन्हें किस प्रकार नुक्सान पहुंचाता है। लोगों तक यह जानकारी पहुंचाने की जरूरत है। इसी प्रकार संभवत: यह देखने का भी समय आ गया है कि पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने पराली जलाने से रोकने के लिए कुछ ठोस कार्य किया है या नहीं। 

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