विपक्षी एकता की दिशा में नीतीश कुमार की नई पहल

Edited By ,Updated: 11 Feb, 2017 11:55 PM

kumar  s new initiatives towards opposition unity

2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की भारी सफलता से कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों में खलबली सी मची हुई है और उनके लिए अस्तित्व ...

2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की भारी सफलता से कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों में खलबली सी मची हुई है और उनके लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।

इससे बचने व भाजपा का मजबूत विकल्प बनने के लिए नवम्बर, 2014 में पूर्व जनता परिवार के सदस्यों सपा, राजद, जद (यू), जद (एस) व इनैलो आदि ने मुलायम सिंह यादव की पहल पर एक महा मोर्चा बनाने की कोशिश की थी परंतु यह प्रयास सफल न हो सका।

इस समय जबकि भाजपा के सिवाय लगभग सभी दल हाशिए पर आए हुए हैं, भाजपा का मजबूत विकल्प बनाने के लिए एक बार फिर विपक्षी एकता की शुरूआत में उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए अखिलेश यादव व राहुल गांधी ने सपा और कांग्रेस का गठबंधन पहली बार बनाया है।
अखिलेश यादव ने इसे ‘दो युवाओं का गठबंधन’ बताते हुए प्रदेश की समस्याओं को हल करने और प्रदेश के युवाओं को एक-साथ जोड़ कर इसके विकास में भागीदार बनाने की बात कही है।

एक ओर उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ है तो दूसरी ओर पंजाब में 3 कम्युनिस्ट पाॢटयों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, माक्र्सी कम्युनिस्ट पार्टी और रैवोल्यूशनरी माक्र्सी पार्टी आफ इंडिया (आर.एम.आई.) ने पंजाब में 52 सीटों पर मिल कर चुनाव लड़ा है। अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश में गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाने की दिशा में पहल की है। अब वह कम्युनिस्टों को भी इसमें शामिल करने की कोशिश में जुट गए हैं तथा राजद और कांग्रेस से तो पहले ही जद (यू) का गठबंधन है।

गत वर्ष 8 नवम्बर को केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद ‘राजद’ व ‘कांग्रेस’ द्वारा इसका विरोध करने के बावजूद नीतीश ने कहा था कि ‘‘प्रधानमंत्री ने यह बहुत बढिय़ा कदम उठाया है।’’ इसके बाद राजनीतिक क्षेत्रों में भाजपा व जद (यू) में पुन: नजदीकियां बढऩे की अटकलें लगाई जाने लगीं तथा 16 नवम्बर को भी नीतीश ने इसे समर्थन जारी रखने की बात कही जिससे इन अटकलों को और बल मिला।

पर बाद में वह अपने उक्त स्टैंड से पलट गए और पहली बार 19 दिसम्बर को जद (यू) व भाजपा के पुनर्मिलन की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि ‘‘भारत में 100 फीसदी ‘कैशलैस इकोनॉमी’ संभव नहीं है। अमरीका जैसे विकसित देश में भी 40 प्रतिशत लेन-देन नकद होता है।’’ 
अब एक बार फिर 10 फरवरी को नीतीश कुमार ने नई दिल्ली में कहा कि ‘‘विश्व में कहीं भी ‘कैशलैस’ और ‘लैस कैश’ की अर्थव्यवस्था काम नहीं कर रही है तथा भारत में भी यह काम नहीं कर सकती।’’

उक्त बयान से जहां नीतीश ने भाजपा से अपनी दूरी कायम रहने का संकेत दिया वहीं इसी दिन वह माक्र्सी पार्टी के मुख्यालय में सीता राम येचुरी से मिले और कहा कि वह काले धन के तो विरुद्ध हैं पर नोटबंदी लागू करने के तरीके से सहमत नहीं और इससे देश को कोई लाभ नहीं हुआ।इसके अलावा दोनों नेताओं ने देश को बचाने के लिए नरेंद्र मोदी और भाजपा को रोकने तथा (उत्तर प्रदेश के) चुनावों में सपा और कांग्रेस के गठबंधन के साथ खड़े होने और नीतीश ने इसके लिए सम विचारक पाॢटयों के एक होने की आवश्यकता जताई है।

हालांकि श्री येचुरी से भेंट को उन्होंने शिष्टïाचार भेंट ही करार दिया परंतु दोनों नेताओं के बीच आधे घंटे की हुई इस बातचीत को ‘राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव की प्रक्रिया की शुरूआत’ करार दिया जा रहा है।आज जबकि कांग्रेस सहित देश के विपक्षी दल आंतरिक कलह और फूट का शिकार हैं, यदि ये आपसी मतभेद भुलाकर आपस में गठबंधन कर लें तो न सिर्फ उनके लिए बल्कि देश के लिए भी यह अच्छा होगा।

मजबूत लोकतंत्र के लिए उतने ही मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। विपक्ष के विभाजित होने पर सत्तारूढ़ दल मनमाने निर्णय ले सकता है परंतु विपक्ष के मजबूत होने पर सत्तारूढ़ दल अपनी निरंकुश नीतियों को देश पर लागू नहीं कर सकता जिससे अंतत: देश को ही लाभ पहुंचता है।

विपक्षी एकता के लिए नीतीश द्वारा देर से शुरू किया गया यह एक अच्छा प्रयास है परंतु यदि इस बारे कोई फैसला देश में जारी पांच राज्यों के चुनावों से पूर्व हो जाता तो अधिक अच्छा था क्योंकि इस समय तो पांच में से दो राज्यों के चुनाव हो भी चुके हैं जबकि उत्तर प्रदेश में भी चुनाव का पहला चरण समाप्त हो चुका है। जो भी हो, गठबंधन की स्थिति में इन चुनावों में न सही अगले चुनावों में अवश्य लाभ हो सकता है।     —विजय कुमार

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