सक्रिय ‘नकल माफिया’ कर रहा छात्रों का भविष्य अंधकारमय

Edited By ,Updated: 23 Mar, 2017 11:48 PM

the students active copying mafia is dark

देश में उच्च शिक्षा की डिग्रियां बेचने वाले फर्जी विश्वविद्यालयों की भांति ही विभिन्न परीक्षाओं......

देश में उच्च शिक्षा की डिग्रियां बेचने वाले फर्जी विश्वविद्यालयों की भांति ही विभिन्न परीक्षाओं में नकल का रोग अत्यंत गंभीर रूप धारण करता जा रहा है। परीक्षाओं में नकल के सहारे छात्र-छात्राओं को पास करवाना भी आज एक बहुत बड़ा उद्योग बन चुका है तथा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त नकल माफिया संगठित रूप से यह अवैध और अनैतिक धंधा चला रहा है। 

कुछ राज्यों में तो नकल माफिया इतना सक्रिय है कि इसने कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए नकल करवाने के लिए कहीं स्कूलों की दीवारें तोड़ दी हैं तो कहीं खिड़कियों में छेद तक करवा दिए हैं। ‘नकल माफिया’ को न ही प्रशासन का और न ही पुलिस का कोई भय दिखाई दे रहा है। हरियाणा में चल रही 10वीं और 12वीं कक्षाओं की बोर्ड परीक्षाओं के दौरान राज्य भर में 2500 के लगभग नकल के मामले पकड़े जा चुके हैं और यह कुप्रवृत्ति लगातार कितनी गंभीर हो रही है, यह  विभिन्न  बोर्ड परीक्षाओं में सामने आने वाले नकल के ताजा मामलों से स्पष्ट है:

03 मार्च को ‘हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड’ की +2 की अंग्रेजी परीक्षा के दौरान हमीरपुर के स्कूलों में 8 छात्र नकल करते पकड़े गए। 08 मार्च को हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षाओं के दौरान हिसार जिले में नकल के 26 मामले पकड़े गए। 

08-9 मार्च को दोआबा सीनियर हायर सैकेंडरी स्कूल, नूरमहल में +2 की परीक्षा में 2 छात्र कैमिस्ट्री के पेपर में और सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल, गिद्दड़पिंडी में 6 छात्र इतिहास की परीक्षा में नकल करते पकड़़े गए। 15 मार्च को मुम्बई में महाराष्टï्र बोर्ड परीक्षाओं के दौरान मराठी, फिजिक्स, पॉलीटिकल साइंस और अकाऊंट्स आदि विषयों की परीक्षा शुरू होने से पूर्व ही उक्त विषयों के प्रश्र पत्र ‘व्हाट्सएप’ पर डालने के सिलसिले में मुम्बई में एक प्रिंसीपल सहित अनेक लोगों को गिरफ्तार किया गया। 17 मार्च को सूरत में माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10वीं कक्षा की परीक्षा में एक डमी छात्र परीक्षा देता पकड़ा गया।


—इसी दिन उत्तर प्रदेश में बोर्ड की परीक्षा में बलिया और मथुरा आदि में अनेक छात्र गणित के पर्चे में एक-दूसरे की नकल करते पकड़े गए।
—मथुरा में तो नकल माफिया स्वयं परीक्षा कक्ष में घुस कर परीक्षार्थियों को हल किए हुए प्रश्रों की पर्चियां दे रहा था। 

20 मार्च को मध्य प्रदेश के अनेक स्कूलों में बोर्ड की 10वीं कक्षा की अंग्रेजी की परीक्षा में अध्यापकों की मौजूदगी में छात्रों को खुलेआम नकल करवाई गई। अनेक परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों के परिजनों को खिड़़कियों से पर्चियां फैंक कर नकल करवाते पकड़ा गया। मुरैना में तो परीक्षा से 15 मिनट पहले ‘व्हाट्सएप’ के जरिए प्रश्र पत्र लीक कर दिया गया। 

21 मार्च को सरकारी कन्या विद्यालय, झज्जर में 10वीं की साइंस की परीक्षा में निरीक्षण पर तैनात एक अध्यापिका नकल करवाती पकड़ी गई। 22 मार्च को भटिंडा के एक परीक्षा केंद्र में पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की दसवीं कक्षा का हिन्दी का प्रश्र पत्र परीक्षा शुरू होने के कुछ ही मिनट बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। उक्त उदाहरणों से स्पष्टï है कि परीक्षा केंद्रों में नकल को रोकने के सरकारी दावे झूठे ही साबित हो रहे हैं। नकलची छात्र-छात्राओं से पर्चियां और पाठ्य पुस्तकें ही नहीं, मोबाइल फोन भी बरामद हो रहे हैं। अनेक परीक्षा केंद्रों में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे होने के बावजूद छात्र बेधड़क नकल कर रहे हैं। 

यदि परीक्षाओं में नकल का रोग ऐसे ही फैलता रहा तो कहीं ऐसा न हो कि हमारे देश की अधिकांश युवा पीढ़ी के पास शैक्षिक योग्यता के बोगस प्रमाण पत्र तो हों पर वास्तव में वह ज्ञान से पूर्णत: कोरी हो। नकल रोकने के लिए परीक्षाओं के निरीक्षक स्टाफ और प्रवेश द्वार पर मौजूद स्टाफ की जिम्मेदारी तय करना आवश्यक है ताकि छात्र-छात्राएं परीक्षा भवन में नकल करने में सहायक पर्चियां, पुस्तकें, मोबाइल फोन आदि ले जाने में सफल न हो सकें। परीक्षा केंद्रों के आसपास ‘मोबाइल जैमर’ लगाने की भी आवश्यकता है। ऐसा करने से परीक्षार्थियों द्वारा नकल के लिए मोबाइल फोन आदि के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सकेगी।

नकल के इस बढ़ते हुए महारोग को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने राज्य के सभी जिला अधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रैंसिंग करने का निर्णय किया है परंतु इतना ही काफी नहीं तथा नकल रोकने के लिए देश भर में कठोर कानून बनाने की भी जरूरत है। हालांकि 1992 में उत्तर प्रदेश में बनाए गए नकल विरोधी कानून के अंतर्गत तत्कालीन सरकार ने नकल को गैर-जमानती अपराध बनाया था परन्तु न जाने क्यों 1994 में यह कानून रद्द कर दिया गया।  —विजय कुमार

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