जनाकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए अमरेन्द्र को कुछ अधिक प्रयास करने होंगे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 01:22 AM

amendant will have to make more efforts to fulfill the aspirations

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने गत वर्ष 11 मार्च को पंजाब के लोगों से जन्मदिन उपहार प्राप्त करने के बाद 16 मार्च को मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला था। किसी भी सरकार की कारगुजारी का मूल्यांकन करने के लिए एक वर्ष की अवधि बेशक काफी कम होती है तो भी...

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने गत वर्ष 11 मार्च को पंजाब के लोगों से जन्मदिन उपहार प्राप्त करने के बाद 16 मार्च को मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला था। किसी भी सरकार की कारगुजारी का मूल्यांकन करने के लिए एक वर्ष की अवधि बेशक काफी कम होती है तो भी प्रारंभिक कदमों से भविष्य का संकेत मिल जाता है।

इस पद पर उनका द्वितीय कार्यकाल चुनावी अभियान दौरान कांग्रेस और खुद उनके द्वारा किए गए वायदों को पूरा करने के सच्चे प्रयासों से शुरू हुआ। उनके चुनावी अभियान के मुख्य मुद्दों में से एक था नशेखोरी की समस्या की समाप्ति। उन्होंने वायदा किया था कि मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के मात्र 4 सप्ताह के अंदर वह इस समस्या का ‘सफाया’ कर देंगे। तब भी शायद बहुत कम लोगों ने उनके इस वायदे को गंभीरता से लिया होगा। लेकिन सरकार का गठन होते ही उन्होंने एक विशेष प्रकोष्ठ की स्थापना करके नशीले पदार्थों की समस्या से निपटने के लिए एक बहुत ही सक्षम अधिकारी को कमान सौंपी। 

विपक्षी पार्टियां बेशक उन्हें किसी भी काम के लिए श्रेय न दें तो भी कथित रूप में नशे की लत के कारण हुई अनेक मौतों के बावजूद अमरेन्द्र सिंह ने कुछ प्रयास किए हैं और उनका दावा है कि सैंकड़ों नशा तस्कर गिरफ्तार किए गए हैं। यह एक ऐसी समस्या है जिस पर प्रभावी रूप में नकेल कसने के लिए अनेक वर्ष लगेंगे। यह काम करने के लिए केवल कठोर पग उठाना ही काफी नहीं होगा बल्कि रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे और विकास करना होगा। उनके प्रमुख राजनीतिक विरोधी और वरिष्ठ एवं वयोवृद्ध राजनीतिज्ञ तथा पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल यात्रा करने और लोगों को मिलने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे। लेकिन अमरेन्द्र सिंह की सरकार की कार्यशैली उनसे बहुत अलग तरह की है। अपने 2 अंतिम कार्यकालों दौरान तो प्रकाश सिंह बादल ने गवर्नैंस का काम अपने पुत्र व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर ही छोड़ रखा था। 

इसके विपरीत कैप्टन अमरेन्द्र सिंह आंखें मूंद कर अपने किसी पार्टी नेता को गवर्नैंस सौंपने की प्रवृत्ति नहीं रखते। काफी लोग उनका स्थान लेने को पंख पसार रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा ऐसे लोगों में से एक हैं। मुंहफट क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने नवजोत सिंह सिद्धू जहां उनकी सरकार को परेशान करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते, वहीं वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल भी उचित समय की बाट जोह रहे हैं। यही सबसे बड़ा कारण है कि गवर्नैंस के लिए अमरेन्द्र सिंह अपने अफसरों पर निर्भर हैं। उन्होंने वरिष्ठ नौकरशाहों को शक्तियों का आबंटन कर रखा है और यह दावा कर रहे हैं कि उनका काम केवल नीति तैयार करना और निर्देश देना है जबकि यह देखना नौकरशाही का काम है कि उसने इन आदेशों का पालन करना है या फिर खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी चलानी है। 

2002 से 2007 तक अपने पूर्व मुख्यमंत्रित्व काल दौरान भी अमरेन्द्र ने ऐसे ही लक्ष्णों का प्रदर्शन किया था। उनके विरुद्ध लोगों को सबसे अधिक शिकायत यह थी कि वे एक ऐसी अंतरंग मंडली पर निर्भर हैं जो उन तक किसी को पहुंचने ही नहीं देती और जिसने हर प्रकार की सूचनाओं पर नियंत्रण जमाया हुआ है। दुर्भाग्य की बात है कि इस पुरानी चांडाल चौकड़ी का कुछ भाग अभी भी मौजूद है और उसका खूब हुक्म चलता है। हालांकि इन लोगों को ज्यादा मुखर न होने का आदेश मिला हुआ है। फिर भी ऐसा लगता है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अतीत से कुछ सबक सीखे हैं और अपनी सरकार के कामकाज पर पैनी नजर रखे हुए हैं। बेशक उनकी कारगुजारी पर फैसला सुनाने के लिए एक वर्ष की अवधि बहुत कम है तो भी उन्हें इस बात का श्रेय अवश्य ही दिया जाना चाहिए कि वह अपने पूर्व कार्यकाल की तुलना में अधिक सच्चे मन से प्रयास कर रहे दिखाई देते हैं। 

उनसे बहुत घनिष्ठता से संबंधित लोगों द्वारा अनुरोधपूर्वक कहा जा रहा है कि वर्तमान सरकार का अधिक समय तो पूर्ववर्ती शासन द्वारा सत्ता तंत्र के हर अंग तथा संस्थानों में की गई गड़बडिय़ों को दुरुस्त करने में ही लग रहा है। मुख्यमंत्री के एक करीबी विश्वासपात्र ने कहा : ‘‘अकाली-भाजपा सरकार ने दशक भर लम्बे शासन दौरान व्यवस्था को बहुत गहरा आघात पहुंचाया है या फिर इसे बहुत पंगु बना दिया है।’’ इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा बजट के निर्देशों और प्रावधानों का अनुपालन कम होता था और उल्लंघन अधिक व बहुत बड़ी मात्रा में धन बिना कोई रिकार्ड रखे बर्बाद किया जाता था।

विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर भी उस सरकार ने अक्षम लोगों की नियुक्ति कर रखी थी। यहां तक कि संवैधानिक पदों पर भी काबिल लोग तैनात नहीं थे। इस बीमार विरासत का बोझ मौजूदा सरकार को भुगतना पड़ रहा है। फिर भी यह कहना आवश्यक है कि अब तक की प्रगति बेशक बहुत मंद गति से हुई है और सरकार अनेक समस्याओं से अभी भी जूझ रही है तो भी मुद्दों से निपटने के लिए कुछ प्रयास अवश्य हो रहे हैं। प्रदेश को दरपेश अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है बेरोजगारी की भारी-भरकम समस्या। बेशक कुछ ‘रोजगार मेले’ आयोजित किए गए हैं और इनमें हजारों लोगों को रोजगार देने का दावा किया गया है तो भी बेरोजगारी यथावत जारी है तथा सरकार के दावों को बहुत संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है क्योंकि रोजगार  हासिल करने वाले लोगों की संख्या बिल्कुल ही नगण्य है। 

समाज के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक यानी किसान पहले की तरह कठिनाइयों में घिरे हुए हैं और कृषि क्षेत्र की बेचैनी कम करने के लिए कोई खास प्रयास नहीं हुए। जिस मुकम्मल कर्ज माफी का अमरेन्द्र सिंह ने वायदा किया था उसकी घोषणा अभी तक नहीं हुई। इसी बीच कर्ज अदा करने में असफल रहने पर कई किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं। वैसे छोटे और सीमांत किसानों के लिए कर्ज माफी की घोषणा की जा चुकी है। जिस प्रकार प्रदेश भर में आतंक का नया चेहरा बन कर उभरे गुंडा गिरोहों का सुराग लगाया गया है और उन पर अंकुश कसा गया है उसके लिए भी अमरेन्द्र की सरकार शाबाश की हकदार है। 

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और उनकी सरकार शिरोमणि अकाली दल तथा अब प्रमुख विपक्षी दल बन चुकी आम आदमी पार्टी (आप) के दावों के बावजूद जनता की सद्भावना हासिल कर रही है। फिर भी मुख्यमंत्री हमेशा के लिए इस सद्भावना की उम्मीद नहीं लगाए रख सकते और देश भर में कांग्रेस की पराजय के बावजूद पंजाब में कांग्रेस को सत्तासीन करने वाली जनता की आकांक्षाओं पर पूरा उतरने के लिए उन्हें कुछ अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।-विपिन पब्बी

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