भूकम्प के कारणों की तह तक नहीं पहुंच सका अनुसंधान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jan, 2018 04:10 AM

could not reach the bottom of the causes of earthquake research

भूकम्प से पृथ्वी का नाता अनादिकाल से है। भूकम्प वास्तव में क्यों आता है, इसके ठीक-ठीक क्या कारण हैं, इस दिशा में मानवीय अनुसंधान अभी तक अपने अंतिम पड़ाव पर नहीं पहुंच पाए हैं। मनुष्य ज्यों-ज्यों विकास पथ पर आगे से आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे उसकी...

भूकम्प से पृथ्वी का नाता अनादिकाल से है। भूकम्प वास्तव में क्यों आता है, इसके ठीक-ठीक क्या कारण हैं, इस दिशा में मानवीय अनुसंधान अभी तक अपने अंतिम पड़ाव पर नहीं पहुंच पाए हैं। मनुष्य ज्यों-ज्यों विकास पथ पर आगे से आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे उसकी समस्याएं भी उत्तरोतर बढ़ती ही जाती हैं। 

लालच जन्य विकास की गति को यदि हम तनिक धीमा कर दें तो समस्याओं की गिनती और उनकी तीक्षणता कम अवश्य हो जाएगी। इनसे उपजे दुख-संकट फिर उतने मारक नहीं रहेंगे जितने उस समय अन्यथा वे हो जाते हैं। पारस्परिक प्रतिस्पर्धा, घृणा एवं लालच द्वेष से उत्पन्न ईष्र्या के कारण बढ़ते हमारे पगों की गति हमें घोर संकटों से दो-चार होने के लिए विवश कर देती है। 7.1.2016 को प्रकाशित समाचार के अनुसार केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित पहाड़ी राज्यों में शीघ्र बड़ी तीव्रता का भूकम्प आ सकता है। 

17.4.2016 को प्रकाशित समाचार के अनुसार जापान में 6.2 तीव्रता का भूकम्प आया। 32 लोगों के मरने, 1000 के दबने या घायल होने तथा 70,000 को सुरक्षित स्थानों में पहुंचाए जाने की जानकारी मिली। 26.8.2016 को छपे समाचार के अनुसार इटली में भूकम्प के कारण 247 मौतें हुईं तथा 190 ‘पैगोडा’ क्षतिग्रस्त हुए। 10.9.2017 को प्रकाशित समाचार के अनुसार मैक्सिको में 8.2 तीव्रता का भूकम्प आया। 61 लोगों की मौत हुई, कई चर्च, होटल तथा अन्य भवन भी तबाह हुए। वर्ष 2010 से अब तक आए भूकम्पों में ही लाखों लोग मारे जा चुके हैं। लाखों घायल और बेघर हो चुके हैं। असंख्य पशु मारे जा चुके हैं और अनेकों मकान गिर चुके हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अभूतपूर्व विकास के इस युग में हम भूकम्प के समय लोगों की सुरक्षा के हित में ठोस कुछ भी नहीं कर पाए हैं। 

इन समाचारों का गहराई से अध्ययन करने से ऐसा लगता है कि भूकम्प आने के जिस पूर्वानुमान की बात की जा रही है, वह वास्तव में भूगर्भ में भूकम्प के आ जाने तथा धरातल पर उसके प्रभाव के अनुभव होने या दिखने के अंतर से जुड़ा प्रतीत होता है। भूकम्प कब, कितना और कहां आएगा, इस वास्तविकता का स्पष्ट संकेत इस समाचार के अध्ययन से मिलता दिखाई नहीं देता है। वर्ष 2007 में धर्मशाला में एक कम्पनी कुछ ऐसी मशीनों की बिक्री करने लगी थी जो भूकम्प की पूर्व सूचना देती हों। इस पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए मैंने हमीरपुर में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया जिसका समाचार 5 अप्रैल, 2007 को प्रकाशित हुआ। इसके बाद कम्पनी के लोगों ने धर्मशाला में यंत्रों की बिक्री बंद कर दी।

भारत के जाने-माने वैज्ञानिक तथा पूर्व राज्य सभा सदस्य डा. कस्तूरीरंगन ने एक बार चंडीगढ़ में कहा था कि हम ठीक प्रकार से नहीं जानते हैं कि भूकम्प तथा सुनामी जैसी आपदाएं आती क्यों हैं। ऐसे में जब कारणों का ठीक-ठीक पता ही नहीं है तो भू-गर्भ में भूकम्पीय घटना के घटित होने का सही-सही पूर्व अनुमान कैसे लग सकेगा? हिमाचल प्रदेश का तो 32 प्रतिशत भू-भाग अति संवेदनशील सिस्मिक जोन 5 में आता है। जहां कभी भी बड़ी से बड़ी तीव्रता का भूकम्प आ सकता है। हाल ही में हिमाचल सहित उत्तरी भारत में भूकम्प के झटके लगे थे। उधर हिमाचल प्रदेश के नगर-नगर में ऊंचा भवन निर्माण जारी है। 

शिमला तो ऊंची इमारतों की कंकरीट का घना जंगल बन चुका है। दिल्ली की स्थिति तो और भी गंभीर है। ऐसे में यदि बड़ी तीव्रता का भूकम्प इन स्थानों पर आएगा तो अपेक्षा से कहीं अधिक जान-माल की भारी हानि हो जाएगी। अच्छा तो यही है कि शोधों की प्रतीक्षा करने से पहले लालच पर लगाम लगाई जाए और ऊंचे भारी निर्माण को रोका जाए। अन्यथा वर्तमान शताब्दी के अंत तक मानव की विलुप्ति हो जाने के कारणों में भारी-भरकम भवन निर्माण का एक अन्य कारण भी जुड़ जाएगा।-रत्न लाल वर्मा

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