बाढ़ और सूखा, आजादी के 70 वर्ष बाद भी भारत पर दो अभिशाप

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Aug, 2017 10:37 PM

flood and drought even after 70 years of independence  two curse on india

15 अगस्त, 2017 को हमने आजादी के 71वें वर्ष में प्रवेश किया लेकिन आज भी हम बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं ...

15 अगस्त, 2017 को हमने आजादी के 71वें वर्ष में प्रवेश किया लेकिन आज भी हम बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने से लेकर 2017 तक हमारे भारत ने हर क्षेत्र में अपनी धाक छोड़ी है, चाहे वह अंतरिक्ष में हो या जमीन पर। लेकिन हम दो जगहों पर अभी तक नाकामयाब हैं वे हैं सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में। 

पिछले साल महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के सूखे को कोई भूला नहीं होगा खासतौर पर लातूर जिले को, जहां के लिए पानी रेल द्वारा भेजा गया और आज 2017 में भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा पश्चिमी राज्य गुजरात और राजस्थान में हम बाढ़ से लड़ रहे हैं। आज अगर हम बात करें तो अकेले बिहार में ही 16 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, हजारों एकड़ पर फसल जलमग्न हो चुकी है, सैंकड़ों की तादाद में मवेशी मर चुके हैं। सिर्फ बिहार में 250 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। अगर सभी बाढग़्रस्त इलाकों में देखा जाए तो मरने वालों का यह आंकड़ा अभी तक 800 से ऊपर पहुंच चुका है और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। 

ऐसा ही कुछ हाल पड़ोसी राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से का है। बिहार के बाढ़ प्रभावित अररिया जिले का 13 अगस्त का एक बड़ा ही मार्मिक वीडियो सामने आया कि कैसे एक ही क्षण में 3 जिंदगियां मौत के मुंह में समा गईं। इसमें प्रशासन की भी लापरवाही है कि जब एक पुल का आधा हिस्सा पहले ही बाढ़ में बह चुका था, फिर उस पुल को पूरी तरह से बंद क्यों नहीं किया गया। आपको शायद याद हो ऐसा ही एक हादसा पिछले साल महाराष्ट्र के मुम्बई-गोवा हाइवे पर हुआ था, जिसमें 2 बसें और 2 कारें पुल के साथ बह गई थीं जिसमें लगभग 42 जानें चली गईं थीं। इसमें भी प्रशासन की लापरवाही सामने आई थी कि एक जर्जर हो चुके पुल को यातायात के लिए क्यों चालू रखा, वह भी तब, जब नदी का जलस्तर काफी बढ़ चुका था और पिछले लगभग 24 घंटों से बारिश हो रही थी।

क्यों प्रशासन ऐसे हादसों से सबक नहीं लेता और न ही हादसे के जिम्मेदार अफसरों पर कोई कार्रवाई होती है और अगर कार्रवाई हो जाए तो वह यह कि एक जांच कमेटी बना दी जाती है जो सालों-साल जांच करती है। तब तक लोग भूल जाते हैं और फाइल अपने आप बंद हो जाती है। उत्तर प्रदेश, बिहार और असम ये तीनों राज्य लगभग हर साल छोटे और बड़े स्तर पर बाढ़ का सामना करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में ये 5 नदियां राप्ती, घाघरा, बागमती, कोसी और गंडक (नारायणी) जो नेपाल की तरफ से भारत में प्रवेश करती हैं, इन 2 राज्यों में बाढ़  का कारण बनती हैं। अरुणाचल प्रदेश एवं असम में ब्रह्मपुत्र नदी तबाही का  कारण बनती है जो कि चीन की तरफ से भारत में प्रवेश करती है। 

अब सवाल यह आता है कि आजादी के 70 साल बाद भी हम बाढ़ जैसी समस्याओं से निपटने में विफल हैं, क्योंकि हम खुद कुछ न करके यह उम्मीद करते हैं कि चीन जैसा देश ब्रह्मपुत्र नदी के बढ़ते जलस्तर को हमसे सांझा करेगा, फिर हम बाढ़ से बचने के अपने इंतजाम करेंगे। आज मुझे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल की बात याद आ गई, जिसमें नदी जोड़ो परियोजना पर जोर-शोर से पहल की गई लेकिन यह तब अमल में नहीं आ सकी। वाजपेयी चाहते थे कि भारत की सभी प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ दिया जाए ताकि बाढ़ और सूखे जैसी विपदाओं से काफी हद तक निपटा जा सके। नरेन्द्र मोदी सरकार के दौरान भी इस दिशा में प्रयास हुए हैं लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं दिखाई दे रही है। 

सिर्फ मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जिसने बिना केन्द्र की सहायता से नर्मदा और क्षिप्रा नदियों को जोड़कर इस परियोजना की पहल की है। अगर सरकार गहनता से इस परियोजना पर काम करे, तो निश्चित रूप से इसमें सफलता पाई जा सकती है तथा सूखे और बाढ़ जैसी विपदाओं से निपटने के साथ-साथ यातायात का नया जलमार्ग भी मिलेगा जोकि व्यापार की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण साबित होगा।

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