हिन्दुओं के प्रति बढ़ती असहिष्णुता

Edited By ,Updated: 10 Feb, 2017 01:53 AM

increasing intolerance of hindus

पश्चिम बंगाल किस प्रकार इस्लामी कट्टरवाद के चंगुल में फंस चुका है

पश्चिम बंगाल किस प्रकार इस्लामी कट्टरवाद के चंगुल में फंस चुका है, वह यहां एक के बाद एक प्रकाश में आ रहे घटनाक्रमों से स्पष्ट है। अभी हाल ही में प. बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्षा ममता बनर्जी ने जिस पर्व, सरस्वती पूजा को बहाना बनाकर एक फरवरी को लोकसभा में पेश हुए बजट का बहिष्कार  किया था, उसी उत्सव से संबंधित कार्यक्रमों को इस्लामी कट्टरपंथियों ने प. बंगाल के कुछ स्कूलों में नहीं  होने दिया।

जब राज्यसभा में मनोनीत सांसद स्वप्र दासगुप्ता ने उक्त मामला सदन में उठाना चाहा, तो तृणमूल सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। क्या यह सत्य नहीं कि भारत में सैकुलरिस्टों के लिए असहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता के हनन पर चर्चा का मापदंड केवल चयनात्मक है? 

प. बंगाल में सरस्वती पूजा की एक लम्बी परम्परा रही है। इस अवसर पर प्रदेश सहित कई राज्यों में सार्वजनिक अवकाश भी होता है। घरों के अतिरिक्त छात्र और शिक्षक स्कूलों में विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं किन्तु प. बंगाल के राजरहाट, हावड़ा सहित कई स्कूलों में कट्टर मुस्लिम संगठनों  के अव्यावहारिक हस्तक्षेप के कारण यह पूजा नहीं हो सकी।

पूरा मामला वर्ष दिसम्बर 2016 का है, जब तेहट्टा में कुछ छात्र, मुस्लिम कट्टरपंथियों के प्रभाव में आकर पैगंबर मोहम्मद की जयंती ‘नबी दिवस’ पर स्कूल परिसर में कार्यक्रम के आयोजन की मांग करने लगे। इस संबंध में जमात-ए-इस्लामी हिन्द की प्रदेश इकाई द्वारा स्कूलों में पुस्तकें भी बांटी गई थीं। तेहट्टा स्कूल प्रशासन द्वारा नबी दिवस पर कार्यक्रम को स्वीकृति नहीं दिए जाने पर विघटनकारी शक्तियों ने हंगामा शुरू कर दिया। शिकायत के बाद भी स्थानीय पुलिस मूकदर्शक बनी रही । 

जिसके कारण स्कूल कट्टरपंथियों द्वारा नियमित रूप से बाधित होने लगा। अंततोगत्वा प्रशासन के आदेश पर स्कूल को अल्पकाल के लिए बंद करना पड़ा। बसंत पंचमी के दिन जब स्कूली छात्रों ने हर वर्ष की तरह इस साल भी सामान्य रूप से सरस्वती पूजा का आयोजन करना चाहा, तो स्थानीय इस्लामी कट्टरपंथियों ने इसका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया। बंद पड़े स्कूल को खोलने व सरस्वती पूजा को लेकर जब छात्रों ने मार्च निकाला, तो इसने ङ्क्षहसक रूप धारण कर लिया। पुलिस के लाठीचार्ज में कई छात्राएं घायल हो गईं। 

प. बंगाल की उक्त घटना, उसी रुग्ण दर्शन और कुत्सित विचारधारा से जनित है, जिसने वर्ष 1947 में वामपंथियों की सहायता से देश को मजहब के नाम पर दो टुकड़ों में बांट दिया था। उसी मानसिकता को बीते कई दशकों से छदम पंथनिरपेक्षकों द्वारा केवल वोटबैंक के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ममता सरकार का कट्टर इस्लामी अनुयायियों के प्रति प्रेम सर्वविदित है। हाल ही में सैकुलरवाद के नाम पर स्कूल पुस्तिकाओं में रामधेनु (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर रॉन्गधेनु (रंगधेनु) करना, इसकी तार्किक परिणति है।

धुलागढ़ की साम्प्रदायिक  अहिंसा पर मीडिया रिपोटर्स को भी ममता बनर्जी गलत ठहराती रहीं किन्तु पीड़ितों का कहना है कि प्रदेश सरकार उनकी सहायता करने के विपरीत उनके साथ हुई क्रूरता और जघन्यता पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। गत वर्ष मुहर्रम के कारण दुर्गा पूजा में प्रतिमाओं के विसर्जन पर भी इसी सरकार ने आंशिक पाबंदी लगाई थी। जिसे कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मजहब आधारित फैसला बताकर सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। 

प. बंगाल में गत कई माह से बहुसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता निरंतर बढ़ रही है किन्तु सैकुलरिस्ट, वामपंथी और मीडिया का बड़ा भाग इस पर मौन है। वर्ष 2015 में दादरी में अखलाक की हत्या के बाद कई हफ्तों तक इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को समाचारपत्रों ने असहिष्णुता के नाम पर सुर्खियों में जगह दी, टी.वी. स्टूडियो की बहस में चर्चा का केन्द्र बनी। राजनेताओं से लेकर अभिनेताओं और साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों को देश असुरक्षित लगने लगा, पुरस्कार वापसी की मुहिम शुरू हो गई परन्तु प. बंगाल की  दुखद और चिंताजनक घटनाक्रमों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। क्यों? 

भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या कितनी है?
2011 की जनगणना के अनुसार, देश की कुल आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 2001 में 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गया है। 1991 से 2001 के दशक की 29 प्रतिशत वृद्धि दर की तुलना 2001-2011 के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर घटकर 24 प्रतिशत अवश्य हुई, किन्तु यह अब भी राष्ट्रीय औसत 18 प्रतिशत से अधिक है। देश के जिन राज्यों में मुस्लिमों की जनसंख्या सबसे अधिक है, उनमें क्रमश: जम्मू-कश्मीर (68.3 प्रतिशत) और असम (34.2 प्रतिशत) के बाद प. बंगाल (27.01 प्रतिशत) तीसरे स्थान पर आता है। जबकि केरल (26.6 प्रतिशत) चौथे स्थान पर है। 

प. बंगाल की 9.5 करोड़ की आबादी में 2.5 करोड़ से अधिक मुसलमान हैं। 294 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग 140 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। 1947 में विभाजन के बाद प. बंगाल में जहां प्रत्येक जनगणना के साथ हिन्दुओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है, वहीं तुलनात्मक रूप से मुसलमानों का अनुपात तेजी से बढ़ा है। 1951 की जनगणना में प. बंगाल की कुल जनसंख्या 2.63 करोड़ में मुसलमानों की आबादी लगभग पचास लाख थी, जो 2011 की जनगणना में बढ़कर अढ़ाई करोड़ हो गई। प. बंगाल में 2011 में हिन्दुओं की 10.8 प्रतिशत दशकीय वृद्धि दर की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर दोगुनी यानी 21.8 प्रतिशत है। मुस्लिमों की यह दर सदैव ही हिन्दुओं के साथ-साथ प. बंगाल की औसत वृद्धि दर की तुलना में काफी अधिक रही है। 

ऐसा क्यों है कि बंगलादेश की सीमा से सटे प. बंगाल, बिहार और असम के अधिकतर क्षेत्रों का राजनीतिक व सांस्कृतिक परिदृश्य बदल गया है? प. बंगाल के सीमावर्ती उप-जिलों की बात करें, तो 42 क्षेत्रों में से 3 में मुस्लिम 90 प्रतिशत से अधिक, 7 में 80-90 प्रतिशत के बीच, 11 में 70-80 प्रतिशत तक, 8 में 60-70 प्रतिशत और 13 क्षेत्रों में मुस्लिमों की जनसंख्या 50-60 प्रतिशत तक हो चुकी है। सीमावर्ती क्षेत्रों में मुस्लिम जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि के पीछे केवल महिलाओं की प्रजनन क्षमता ही एकमात्र कारण नहीं हो सकता, क्योंकि यह प्राकृतिक मानव उत्पत्ति के सभी वैज्ञानिक तर्कों से दूर है। स्पष्ट है कि इस वृद्धि का बड़ा कारण बंगलादेशी घुसपैठ और बलात मतांतरण है।

यदि मुसलमानों की उच्च जन्म दर के लिए गरीबी और निरक्षरता को जिम्मेदार ठहराया जाए, तो भी वह पूर्ण रूप से गलत होगा। केरल का  मुसलमान किसी भी भारतीय मानक से न ही निरक्षर है और न ही गरीब। फिर भी 2011 में केरल का मुस्लिम अनुपात 26.6 प्रतिशत  तो दशकीय वृद्धि दर 12.84 प्रतिशत रहा था। 

करोड़ों की संख्या में अवैध रूप से  घुसे बंगलादेशी और म्यांमारी मुस्लिम आज देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं। इस समय बंगलादेश  में लोकतांत्रिक शक्तियां और इस्लामी कट्टरपंथी वर्ग आमने-सामने हैं। वहां गैर-मुस्लिम मौत के घाट उतारे जा रहे है। यही कारण है कि बंगलादेश से सटे प. बंगाल जैसे राज्यों में इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों के पैर मजबूत हुए हैं, जो अपने वमनजनक एजैंडे को राज्याश्रय के माध्यम से पूरा कर रहे हैं। तेहट्टा प्रकरण उसी का सटीक चित्रण है। 

भारत में हिन्दू विरोधी मानसिकता और कट्टरपंथियों को आशीर्वाद केवल प. बंगाल तक सीमित नहीं है। समाजवादी पार्टी शासित उत्तर प्रदेश में कैराना आदि कस्बों से हिन्दुओं का पलायन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा भेंट स्वरूप भगवद्गीता लेने से इंकार करना और दिल्ली के मंत्री इमरान हुसैन द्वारा हिन्दू रीति-रिवाजों के अंतर्गत दाह संस्कार को प्रदूषण बढऩे का कारण बताना, तथाकथित सैकुलरिस्टों द्वारा हिन्दुओं के प्रति घृणित भाव को ही रेखांकित करता है। सैकुलरवाद के नाम पर जब तक जेहादी मानसिकता को राज्य संरक्षण मिलता रहेगा, तब तक तेहट्टा जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी।

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!