नेपाल की स्थिरता में ही भारत का हित

Edited By ,Updated: 26 Aug, 2016 12:12 AM

indias interest in the stability of nepal

पुष्प कमल दहल के नए शासन में क्या नेपाल स्थिरता पा सकेगा? क्या प्रचंड के नाम से जाने जाते माओवादी नेता नेपाल को उस समय

पुष्प कमल दहल के नए शासन में क्या नेपाल स्थिरता पा सकेगा? क्या प्रचंड के नाम से जाने जाते माओवादी नेता नेपाल को उस समय के मुकाबले बेहतर तरीके से आगे ले जा पाएंगे जब वह 8 वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री थे? क्या भारत-नेपाल संबंध पुन: रास्ते पर लौटेंगे? यह सब बहुत चीजों पर निर्भर करता है जिनमें यह बात भी शामिल है कि वह किस तरह से अपने दो बड़े पड़ोसियों चीन तथा भारत से निपटते हैं और किस तरह से दोनों पड़ोसी प्रचंड के शासन को देखते हैं।

सी.पी.एन. (माओवादी सैंटर) के चेयरमैन दहल 3 अगस्त को नेपाल के 39वें प्रधानमंत्री बने जो नेपाली कांग्रेस के साथ एक गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर 2008 में उनकी पहली पारी अल्पकाल की थी। यद्यपि प्रचंड को उनके भारत विरोधी रवैये के लिए जाना जाता है, उन्होंने अपनी वर्तमान पारी की शुरूआत नई दिल्ली के आशीर्वाद से शुरू की है।

एन.सी.पी. नेता डी.पी. त्रिपाठी ने नेपाली नेताओं के साथ पिछले दरवाजे से वार्ता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परिणामस्वरूप प्रचंड ने के.पी. शर्मा ओली का स्थान लिया। विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि ओली के शासनकाल के दौरान अपने निम्नतम स्तर पर पहुंचे दिल्ली-काठमांडू संबंध प्रचंड के सत्ता में लौटने से सम्भवत: रास्ते पर लौट आएंगे।

शांति प्रक्रिया को पूर्ण करने तथा नए संविधान को लागू करने सहित प्रचंड के सामने बहुत-सी चुनौतियां हैं। उन्हें प्रशासन तथा अर्थव्यवस्था के सुधार की ओर भी ध्यान देना होगा। सबसे बढ़कर, भारत तथा चीन दोनों की ङ्क्षचताओं के प्रति संवेदनशील रहते हुए नेपाल की विदेश नीति को सुचारू बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

प्रचंड ने हालिया साक्षात्कारों में बार-बार कहा है कि वह ‘राजनीतिक तौर पर परिपक्व’ बन गए हैं तथा ‘प्रतिस्पर्धी राजनीति की बाध्यताओं’ को समझते हैं। उन्होंने गत वर्ष इस लेखक को बताया था कि उन्होंने कुछ गलतियां की थीं जैसे कि जी.पी. कोइराला को राष्ट्रपति न बनाना, सेना प्रमुख को बर्खास्त करना तथा प्रतिस्पर्धी राजनीति के लिए खुद को अनुकूल नहीं बनाना और एक बार फिर वह ये गलतियां नहीं दोहराएंगे। अब वह उतने तीखे भारत विरोधी नहीं रहे जैसे कि वह थे इसीलिए नई दिल्ली अब उनका समर्थन कर रही है। इस बार उनका पहला विदेशी दौरा भी नई दिल्ली का होगा। 2008 में वह पहले पेइचिंग गए थे।

प्रचंड ने जब से पदभार सम्भाला है, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती ओली की नीतियों से दूरी बनाए रखी है और मधेसियों की मांगों को शामिल करने तथा समाज के सभी वर्गों को अपने साथ लेने के लिए नए संविधान में संशोधन करने का वायदा किया है। उन्होंने भारत से सहयोग सुनिश्चित करने के लिए उपप्रधानमंत्री एवं नेपाली कांग्रेस के बिमलेन्द्र निधि को इस सप्ताह दिल्ली के लिए अपना विशेष दूत नियुक्त करके अच्छी शुरूआत की है।

यह उनकी उस घोषणा के अनुरूप है कि वह भारत तथा नेपाल के बीच पारम्परिक करीबी संबंध बनाएंगे तथा नेपाल की भारत तथा चीन से बराबर दूरी बनाए रखेंगे। इसी बीच एक अन्य उपप्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री तथा प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सैंटर) के कृष्ण बहादुर माहरा ने चीन का दौरा किया ताकि ओली द्वारा हस्ताक्षरित चीन व नेपाल से संबंधी परियोजनाओं के भविष्य को लेकर पेइचिंग की चिंताओं को दूर किया जा सके।

निधि का 4 दिवसीय दौरा नई दिल्ली को प्रचंड सरकार के सहयोग के प्रति आश्वस्त करने के साथ-साथ नेपाल के भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने तथा उनमें सुधार करने पर भी लक्षित था जो गत सितम्बर में नए संविधान की घोषणा होने के बाद से सर्वकालिक निम्र स्तर पर पहुंच गए थे। उन्होंने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, गृह मंत्री राजनाथ सिंह सहित सभी शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। उनका उद्देश्य अगले महीने प्रचंड के नई दिल्ली के प्रस्तावित दौरे के लिए आधार तैयार करना, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को नेपाल आमंत्रित करना, कुछ पेचीदा मुद्दों का समाधान निकालना तथा मतभेदों को दूर करना था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस पर खुशगवार प्रतिक्रिया दी और उनका भूकम्प से जर्जर हुए देश के पुननिर्माण में भारत के सहयोग का प्रस्ताव भारत तथा नेपाल के खराब हो रहे संबंधों के लिए एक मरहम साबित हो सकता है। मोदी ने निधि को आश्वस्त किया कि भारत भूकम्प के शिकार देश की सरकार तथा लोगों की सहायता के लिए पूर्णतया प्रतिबद्ध है। उल्लेखनीय है कि भारत नेपाल के पुर्ननिमार्ण प्रयासों में सर्वाधिक सहायता करने वाला देश है।

प्रचंड ने मोदी को संदेश भेज कर अतीत में की गई गलतियों को स्वीकार किया है और भारत के साथ दोस्ती के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है और विकास में करीबी सहयोग की आशा जताई है। उन्होंने समझौतों की एक लम्बी सूची भेजी है जिन पर वह सितम्बर में अपने दौरे के दौरान हस्ताक्षर करना चाहते हैं। उन्होंने राजनीतिक तथा कूटनीतिक मुद्दों पर ध्यान देने की बजाय भारत के सहयोग से नेपाल में विकास कार्यों में तेजी लाने की इच्छा भी जताई है।

उन्होंने सुझाव दिया है कि नेपाल-भारत सीमा पर चिरलंबित पंचेश्वर परियोजना पर कार्य जितनी 
जल्दी हो सके आगे बढ़ाया जाए। निधि के अनुसार मोदी ने इसमें निजी रुचि लेते हुए प्रतिक्रिया में कहा कि ‘‘कृपया प्रधानमंत्री से कह दें कि जहां सरकार उनका स्वागत तो करेगी ही, मैं निजी तौर पर उनका भारत में स्वागत करूंगा।’’

निधि ने भारतीय नेताओं को प्रचंड सरकार की भविष्य की योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जहां संवैधानिक संशोधन ओली के समर्थन के बिना नहीं किए जा सकते थे, उनके पास केवल दो विकल्प थे। ओली को साथ आने के लिए मनाना अथवा अन्य सभी छोटे दलों को अपने पक्ष में वोट देने के लिए उनका समर्थन जुटाना। अगले कुछ महीनों में 3 हाईप्रोफाइल दौरे निश्चित हैं, जिनमें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की नेपाल यात्रा तथा प्रचंड के साथ-साथ नेपाली राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के भारत दौरे शामिल हैं।

साऊथ ब्लाक का समर्थन नेपाल की नीतियों को सही रास्ते पर लाने का निश्चित तौर पर स्वागतीय कदम है, जो अंतत: नेपाली नीतियों तथा उनके आंतरिक सत्ता के खेल पर निर्भर करेगा। नेपाल का नेतृत्व कमजोर तथा अस्थिर है जो धड़ेबंदी तथा भ्रष्टाचार का शिकार है। जहां प्रचंड को परिणाम दिखाने हैं, वहीं नई दिल्ली को भी नए शासन को अपना समर्थन जारी रखना होगा। साऊथ ब्लाक को यह भी देखना होगा कि एक स्थिर नेपाल निश्चित तौर पर भारत के हित में है।                 
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