सेना के जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए मेजर गोगोई को सम्मानित करना जरूरी था

Edited By ,Updated: 25 May, 2017 12:13 AM

it was necessary to honor maj gogoi for the encouragement of the army personne

मेजर नितिन लीतुल गोगोई द्वारा एक आदमी को कवच के रूप में प्रयुक्त करने और बाद में इसी आधार....

मेजर नितिन लीतुल गोगोई द्वारा एक आदमी को कवच के रूप में प्रयुक्त करने और बाद में इसी आधार पर सेना प्रमुख द्वारा उन्हें सम्मानित किए जाने से इस मुद्दे पर लोकराय दोफाड़ हो गई है और इस बात को लेकर शब्द युद्ध छिड़ गया है कि क्या यह कार्रवाई न्यायोचित थी या फिर यह सेना के सिद्धांतों के विरुद्ध थी। 

मेजर गोगोई को सैन्य अधिकारियों द्वारा स्पष्टत: इस मुद्दे पर मीडिया को संबोधित करने की अनुमति दी गई थी और इस मौके पर उन्होंने चुनावी ड्यूटी से वापस लौट रहे स्टाफ की सुरक्षा के लिए उनके साथ चल रहे अपने जवानों और खुद अपने ऊपर पत्थरबाजी करने वाले कथित व्यक्ति को वाहन से बांधे जाने को यह कह कर न्यायोचित ठहराया कि वह अन्य लोगों को भड़का रहा था और उसके साथ ऐसा व्यवहार करके उन्होंने अनेक जिंदगियों को बचाया। उन्होंने कहा कि उनके जवान और पोलिंग स्टाफ तो उन लोगों के निशाने पर था ही लेकिन यदि जवानों को मजबूर होकर गोली चलानी पड़ती तो कई नागरिकों की जान जाने का खतरा था। 

इलैक्ट्रॉनिक चैनलों पर बार-बार दिखाए गए इस समाचार ने बहुत तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया। अनेक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मेजर गोगोई के बचाव में उतर आए। यहां तक कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक के प्रमुख आलेख में ये विचार व्यक्त किए : ‘‘विकट परिस्थितियों में कठोर प्रतिक्रिया से ही काम चलता है और खतरनाक परिस्थितियों में , यदि हमेशा नहीं तो अक्सर, बहुत दिलेरी भरे कदम उठाने पड़ते हैं।’’  कैप्टन अमरेन्द्र ने इस बात की वकालत की कि मेजर गोगोई को इस कार्रवाई के लिए विशिष्ट सेवा मैडल प्रदान किया जाना चाहिए। 

दूसरी ओर सेना के ही रिटायर अधिकारियों के ही एक वर्ग तथा मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं ने इस कृत्य को ‘अनैतिक’ तथा भारतीय सुरक्षा बलों की मान-मर्यादा की दृष्टि से अशोभनीय करार दिया है। एक बहुत ही सम्माननीय और विख्यात रिटायर्ड सेना अधिकारी लैफ्टिनैंट जनरल एच.एस. पनाग ने यह स्टैंड लिया है कि ‘‘सेना के संस्कार, नियम और कायदे भी राष्ट्र के साथ ही भावनाओं की बाढ़ में बह गए हैं।’’ मेजर गोगोई को प्रशस्ति पत्र दिए जाने के समाचारों के बाद लै. जनरल पनाग ने दोबारा ट्वीट किया: ‘‘मैं अपने विचारों पर अडिग हूं, बेशक अन्य कोई भी मेरे साथ सहमत न हो।’’ 

बेशक मेजर गोगोई के प्रशस्ति पत्र में कहीं भी ‘ह्यूमन शील्ड’ (मानव कवच) की घटना का उल्लेख नहीं और यह कहा गया है कि यह प्रशस्ति पत्र जम्मू-कश्मीर में अब तक आतंक विरोधी कार्रवाइयों में गोगोई के लगातार उल्लेखनीय सेवा रिकार्ड के मद्देनजर प्रदान किया गया है। फिर भी यह पुरस्कार दिए जाने के टाइमिंग तथा इसके पक्ष में हुआ प्रचार किसी को भी इस संदेह में नहीं रहने देते कि पुरस्कार का उद्देश्य क्या है? यह स्पष्ट तौर पर सरकार और सेना प्रमुख द्वारा एक संकेत है कि मेजर गोगोई के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज होने और उनके विरुद्ध ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ का आदेश जारी होने के बावजूद वे मेजर गोगोई की पीठ थपथपाएंगे। 

जब यह सवाल पूछा गया कि मेजर गोगोई को पुरस्कृत करके सैन्य कर्मियों और अन्य लोगों को क्या संदेश देने का प्रयास किया गया है तो सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा, ‘‘संदेश तो घाटी के कठिनाइयों भरे वातावरण में काम कर रहे सेना के अफसरों और जवानों को दिया गया है। सेना की यह जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि प्रदेश में हिंसा में कमी आए और शांति स्थापित हो। हमारे अफसर ने बिल्कुल वैसा व्यवहार किया जैसा मौके पर तैनात अधिकारी ही कर सकता है। जैसी परिस्थितियां थीं उनके मद्देनजर अधिकारी ने बिल्कुल सही कदम उठाया। मेजर गोगोई तथा कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे अन्य जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए जरूरी था कि यह पुरस्कार दिया जाता।’’ 

मेजर गोगोई के विरुद्ध लम्बित ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ के बावजूद उन्हें प्रशस्तिपत्र दिए जाने को जायज ठहराते हुए जनरल रावत ने कहा कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी तथ्यों का पता लगाने के लिए होती है। यह पता लगाती है कि व्यक्ति दोषी है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान जांच अपने नतीजे पर पहुंच ही जाएगी लेकिन  मुझे पता चला है कि मेजर गोगोई ने कोई ऐसा अपराध नहीं किया है जिसके चलते अनुशासनीय कार्रवाई अनिवार्य हो। यदि वह किसी भूलचूक के लिए दोषी पाया भी जाता है तो उसके विरुद्ध कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि मुझे ऐसी कार्रवाई के लिए कोई कारण दिखाई नहीं देता।’’ ऐसा कहकर सेना प्रमुख ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सेना गोगोई की कार्रवाई का अनुमोदन करती है और कोर्ट ऑफ इंक्वायरी केवल औपचारिकता मात्र है। 

गोगोई की कार्रवाई और ऊपर से उन्हें पुरस्कृत किए जाने पर घाटी में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस कार्रवाई की कठोर शब्दों में निंदा करते हुए कहा कि यह  जेनेवा कन्वैंशन का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से घाटी के लोग और भी बेगानेपन की भावना के शिकार होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि ‘करारे हाथ’ की सरकार की पहुंच का पहले भी परीक्षण किया जा चुका है और यह विफल हुई है। गंभीर परिणामों की चेतावनी देते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि इस कार्रवाई का प्रभाव विनाशकारी होगा। अनेक मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं तथा मीडिया के एक वर्ग ने गोगोई की कार्रवाई को नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। 

इस बात में कोई संदेह नहीं कि सेना कश्मीर में एक असाधारण और गैर परम्परागत युद्ध लड़ रही है। वाजिब तो यह था कि सेना को केवल वहां तैनात ही नहीं किया जाता क्योंकि यह उग्रवाद से लडऩे के लिए प्रशिक्षित नहीं है। यह भी स्पष्ट है कि कश्मीर समस्या अब राजनीतिक चरित्र खोती जा रही है और अधिक से अधिक इस्लाम केन्द्रित बनती जा रही है। यदि परिस्थितियां असाधारण हों तो असाधारण एवं गैर परम्परागत कदम उठाने की भी जरूरत पड़ती है। 

एक आदर्श के रूप में सुरक्षा बलों को मानव कवच प्रयुक्त नहीं करने चाहिएं लेकिन जब परिस्थितियां बहुत ही असाधारण हों तो लोगों की जिंदगियां बचाने के लिए अस्थायी रूप में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। लेकिन एक ही खतरा है और वह भी कोई छोटा-मोटा नहीं, कि इस प्रकार की कार्रवाइयां एक नई परिपाटी का रूप ग्रहण न कर लें। दुर्भाग्यवश  मेजर गोगोई को दिया गया प्रशस्ति पत्र तो इसी दिशा में संकेत कर रहा है।     

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