एक रैंक एक पैंशन’ के मामले में रक्षा मंत्री की ‘कंजूसी’

Edited By ,Updated: 21 Nov, 2015 11:48 PM

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‘एक रैंक एक पैंशन’ (ओ.आर.ओ.पी.) की अधिसूचना सरकार द्वारा जारी की जा चुकी है और नि:संदेह यह एक उल्लेखनीय घटनाक्रम है।

(करण थापर): ‘एक रैंक एक पैंशन’ (ओ.आर.ओ.पी.) की अधिसूचना सरकार द्वारा जारी की जा चुकी है और नि:संदेह यह एक उल्लेखनीय घटनाक्रम है। आखिर पूर्व सैनिकों द्वारा यह मांग शायद गत 40 वर्षों से उठाई जा रही थी और उन्हें सेवारत सैनिकों और अधिकारियों का भी समर्थन हासिल था।

सरकार निश्चय ही किसी हद तक बधाइयों की हकदार है लेकिन फिर भी यह सवाल अभी तक मुंह बाए खड़ा है कि  इसे क्या इससे भी कुछ अधिक करना चाहिए था? कम से कम एक मामले में तो इसका उत्तर जोरदार रूप में हां वाचक है। एक अन्य मामले में इसमें कुछ सुधार किया जा सकता था।
 
ओ.आर.ओ.पी. की जो अधिसूचना जारी की गई उसके निम्नलिखित वाक्य में गलती है : ‘‘जो सैन्य कर्मी अब के बाद अपने खुद के अनुरोध पर डिस्चार्ज होने का विकल्प चुनेंगे...वे ओ.आर.ओ.पी. के लाभों के हकदार नहीं होंगे’’। सितम्बर में जब सर्वप्रथम ओ.आर.ओ.पी. की घोषणा की गई थी तो रक्षा मंत्री ने वास्तव में उन सभी सैनिकों और अफसरों को ओ.आर.ओ.पी. के दायरे से बाहर रखा था जो स्वेच्छा से पूर्व रिटायरमैंट हासिल करेंगे। 
 
अब वह इस बात पर सहमत हो गए हैं कि अतीत में ऐसी पूर्व रिटायरमैंट ले चुके लोगों को तो ओ.आर.ओ.पी. का लाभ दिया जाएगा लेकिन भविष्य में ऐसा करने वालों को इससे वंचित रखा जाएगा।
 
मिस्टर पार्रिकर कम से कम दो कारणों से गलती पर हैं। पहली बात तो यह कि समय पूर्व रिटायरमैंट लेने वाले सैनिक और अफसर यदि पैंशन के अधिकारी हैं तो उन्हें ओ.आर.ओ.पी. के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है? यदि यह केवल पैसा बचाने की बात है तो यह कंजूसी नहीं बल्कि ‘मक्खी-चूसी’ का मामला है।
 
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि समय पूर्व रिटायरमैंट लेने वाले सैनिक और अफसर दोनों ही सेना के लिए लाभदायक हैं। इससे शेष बचे उन लोगों की पदोन्नति का रास्ता आसान हो जाता है, जो संभवत: अधिक हकदार होते हैं। इसका दूसरा लाभ यह होता है कि सेना में युवा लोगों की बहुलता बनी रहती है।
 
हाल ही में 15 कोर के पूर्व कमांडर लै. जनरल सय्यद अता हस्नैन ने अपने एक आलेख में इस दलील के पक्ष में विवरण उपलब्ध करवाए थे। 18 वर्ष की सेवा के बाद 45 प्रतिशत लै. कर्नलों की आगे पदोन्नति का रास्ता बंद हो जाता है यानी कि वे कर्नल नहीं बन पाते। यदि यह मान कर चला जाए कि सेना में कमिशन हासिल करने की उनकी औसत आयु 22 वर्ष है तो इसका तात्पर्य यह है कि 18 वर्ष की सेवा के बाद भी उनकी 14 वर्ष की नौकरी शेष होती है, जब 54 वर्ष की अवधि में उन्होंने रिटायर होना होता है। 
 
सरकार जब जानती है कि वे पदोन्नति हासिल नहीं कर पाएंगे और परिणामस्वरूप न केवल हतोत्साहित हो जाएंगे बल्कि अपने से अधिक होनहार मेजरों और कप्तानों की तरक्की का रास्ता भी रोकेंगे, तो यह क्यों उन्हें जबरदस्ती नौकरी में बनाए रखने की नीति अपनाती है?
 
ऐसे अधिकारियों को ओ.आर.ओ.पी. से इंकार करना न केवल दूरदर्शिताविहीन है, बल्कि सरकार के अपने ही उद्देश्यों को पराजित करने के तुल्य है। मेरी सहज बुद्धि मुझे कुरेद-कुरेद कर यह कहती है कि रक्षा मंत्री या तो इस बात को समझते ही नहीं या फिर किसी ने उनके आगे इसकी व्याख्या ही नहीं की। इसलिए मैं भी पूर्व सैनिक प्रमुख जनरल मलिक की तरह यह उम्मीद करता हूं कि वह स्वेच्छा और तत्परता से अपनी गलती सुधार लेंगे।
 
ओ.आर.ओ.पी. में एक और भी चूक रह गई है जोकि किसी भी तरह उपरोक्त कोटि में नहीं आती और न ही इतनी अधिक महत्वपूर्ण है-वह है सरकार की पैंशनों की विसंगतियां वाॢषक की बजाय प्रति 5 वर्ष बाद दूर करने की जिद। व्यावहारिक रूप में इसका तात्पर्य यह है कि सरकार ने एक वर्ष के लिए तो ‘एक रैंक एक पैंशन’ प्रदान कर दी है जबकि शेष 4 वर्ष दौरान ‘एक रैंक अनेक पैंशन’ की स्थिति बनी रहेगी।
 
परेशानी की बात इंडियन एक्ससवसमैन्स मूवमैंट के अध्यक्ष लै. जनरल कादियान का यह दावा है कि प्रति वर्ष ओ.आर.ओ.पी. की विसंगतियां दूर करने की लागत 100 करोड़ रुपए से भी कम होगी। यदि यह बात सही है कि इतनी मामूली-सी बचत करने के लिए सरकार पूर्व सैनिकों को इतनी बड़ी पीड़ा पहुंचाने पर क्यों तुली हुई है?
 
अपनी ओर से रक्षा मंत्री ने कहा है कि कोशियारी समिति की रिपोर्ट के पैरा 64 में कहा गया है कि प्रति 5 वर्ष बाद पैंशन की विसंगतियां दूर करना ही स्वीकार्य होगा। निश्चय ही रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है, फिर भी मैं यह मानने को तैयार नहीं कि कोशियारी समिति ने यह सिफारिश की है कि समय पूर्व रिटायरमैंट लेने वालों को ओ.आर.ओ.पी. के दायरे से बाहर रखा जाए। इसलिए यदि सरकार कोशियारी समिति को ही आधार बनाना चाहती है तो कम से कम इसे पूरी तरह से वे बातें लागू करनी चाहिएं जिनका रिपोर्ट में वायदा किया गया है।
 
अभी भी एक मुद्दा सुलझाना बाकी है और वह भी तत्काल। यह मुद्दा है समय पूर्व रिटायरमैंट लेने वालों को ओ.आर.ओ.पी. की सुविधाओं से वंचित रखना। इस मामले में सरकार ने गलती की है। वास्तव में तो बहुत बेवकूफी भरी गलती की है। फिर भी यदि इसे सुधारा नहीं जाता तो यह बहुत बड़ी बुराई और अक्षम्य गलती का रूप ग्रहण कर लेगी।
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