हिमाचल में वोटों के लिए राजनीतिक दलों ने खूब बांटी शराब

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Nov, 2017 03:50 AM

political parties have plenty of liquor for votes in himachal

चुनाव आयोग की सभी घोषणाओं एवं दावों के बावजूद 9 नवम्बर को हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने एक बार फिर चुनाव आयोग के दावों को ठेंगा दिखाया है। चुनावों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दलों ने शराब का जमकर इस्तेमाल किया। जिला...

चुनाव आयोग की सभी घोषणाओं एवं दावों के बावजूद 9 नवम्बर को हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने एक बार फिर चुनाव आयोग के दावों को ठेंगा दिखाया है। चुनावों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दलों ने शराब का जमकर इस्तेमाल किया।

जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन अपनी पैनी नजर रखने का ढिंढोरा पीटते रहे परन्तु उसके बावजूद हजारों लीटर शराब वोट की बलि चढ़ गई। शाम ढलते ही पियक्कड़ों की टोलियां राजनीतिक दलों के सिपहसालारों  के आगे-पीछे घूमनी आरंभ हो जातीं व कई जनसभाओं में भी शराबियों की टोलियां देखने को मिलती रहीं।शराब के लगातार ऐसे आयोजनों से आम मतदाता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जो विधायक या नेता शराब के  बल पर विधानसभा में पहुंचेगा, वह अपने क्षेत्र में निश्चित तौर पर ऐसे लोगों को संरक्षण भी देगा। इससे केवल कानून व्यवस्था की ही स्थिति नहीं बिगड़ेगी बल्कि लोगों के घर भी उजड़ेंगे।

मतदाताओं का मानना है कि राजनीतिक दलों के आगे प्रशासन व पुलिस प्रशासन पंगु दिखता है। दिखावे के तौर पर कार्रवाई डालने के लिए थोड़ी-बहुत शराब पकड़कर केस बना दिए जाते हैं। वह भी उन हालात में, जब कोई राजनीतिक दल इसकी सूचना देता है। परन्तु यह भी माना जाता है कि कुछ क्षेत्रों में तो पुलिस को सूचना देने के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं होती है। इन्हीं दिनों में वोट हथियाने के लिए राजनीतिक दलों ने हर हथकंडे अपनाए। जिस गरीब व मजबूर की सुध राजनेता 5 वर्षों तक नहीं लेते उनके घरों में भी जाकर उन्हें चैक व कैश बांटे गए। यही मतदाता जब 5 वर्षों तक अपनी गरीबी का रोना रोते रहे तब इन नेताओं को इन गरीब व मजबूर लोगों की लाचारी नहीं दिखी। कहा जा रहा है कि ऐसे मामलों में मतदाता भटक जाता है व अपनी वोट का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता व फिर 5 वर्षों तक उसी नेता को कोसता रहता है। 

प्रशासन चुनावों के दौरान अपना कार्य सुचारू ढंग से नहीं कर पाता तो आम दिनों में जनता प्रशासन से क्या उम्मीद कर सकती है? यही नहीं, चुनाव आयोग व जिला प्रशासन इस बात का भी रिकार्ड नहीं बना पाया कि चुनावों के दौरान बड़ी-बड़ी रैलियों में खर्च का क्या आकलन होगा? बाद में राजनीतिक दलों द्वारा खर्च की गई धनराशि को ही  स्वीकृत कर खानापूर्ति कर दी जाएगी। ऐसे में चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा भी दाव पर लग जाती है।-सरोज मौदगिल

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