चाणक्य नीति सूत्र: परेशानी से बचने के लिए करें ऐसे मित्र का चुनाव

Edited By ,Updated: 02 May, 2016 03:24 PM

chanakya niti

समाज में ऐसे तमाम लोग हैं जो सामान्य व्यक्ति से जब बड़े पद या ओहदे पर आसीन हो जाते हैं तो अहंकारी हो जाते हैं। शोहरत के कारण उनका मृदु स्वभाव

समाज में ऐसे तमाम लोग हैं जो सामान्य व्यक्ति से जब बड़े पद या ओहदे पर आसीन हो जाते हैं तो अहंकारी हो जाते हैं। शोहरत के कारण उनका मृदु स्वभाव छिन जाता है।
 

आपके व्यवहार में 70 प्रतिशत प्रभाव माहौल का पड़ता है। अगर हमारे आसपास ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो आत्ममुग्ध, संकीर्ण और मेलजोल की भावना से दूर होते हैं, तो हम भी अपने आप में सीमित हो जाएंगे। दुर्गुण जल्दी फैलता है। ईर्ष्या, द्वेष, बदले की भावना, तिरस्कार भाव आदि तो अच्छे-भले लोगों में भी आ जाता है, यदि वे नैतिक मूल्यों की महत्ता नहीं जानते हैं।



श्रेष्ठजनों के साथ मित्रता कर उनके आचरण से दुर्जन भी सज्जन बन सकता है। खरबूजे को देखकर जैसे खरबूजा रंग बदलता है, ठीक वैसे ही व्यक्ति पर संगति का प्रभाव पड़ता है। उत्तम मनुष्यों का संपर्क व्यक्ति को गुणवान बनाता है।



अगर किसी अनुचित के साथ से हमारा नैतिक पतन और व्यवहार में रूखापन आता है तो वैसे व्यक्ति का साथ तुरंत छोड़ देना चाहिए। आज समाज में जो अच्छाइयां और बुराइयां नजर आ रही हैं, उनके पीछे एक कारण संगति का प्रभाव है। अगर संगति अच्छी है तो व्यक्ति नौतिक मूल्यों पर अमल करता है।



आचार्य चाणक्य़ सच्चे मित्र के बारे में बताते हुए कहते हैं की
आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम्।

अर्थ : आपातकाल में स्नेह करने वाला ही मित्र होता है।

भावार्थ : जो राजा विपत्ति में काम आने वाले व्यक्ति की सही पहचान कर लेता है वह कभी परेशानी में नहीं पड़ता क्योंकि ऐसा व्यक्ति सच्चा स्नेही और मित्र होता है।
 

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