साइंस ऑफ लव: क्यों और कैसे होता है प्यार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Feb, 2018 12:02 PM

science of love

प्यार को सदैव दिल से जोड़कर देखा जाता रहा है, दिमाग से नहीं लेकिन सच्चाई यह है कि किसी से अचानक प्यार हो जाना या उसे दिलोजान से चाहने लगना, यह सब कुछ अपने आप नहीं होता और न ही इसमें हमारे दिल की ही कोई बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है बल्कि हमारे...

प्यार को सदैव दिल से जोड़कर देखा जाता रहा है, दिमाग से नहीं लेकिन सच्चाई यह है कि किसी से अचानक प्यार हो जाना या उसे दिलोजान से चाहने लगना, यह सब कुछ अपने आप नहीं होता और न ही इसमें हमारे दिल की ही कोई बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है बल्कि हमारे मस्तिष्क में होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाएं तथा जीन संबंधी संरचनाएं एवं विशेषताएं ही प्यार हो जाने का प्रमुख आधार होती हैं और इन्हीं की बदौलत प्यार और उसकी गहराई तय होती है।


मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि वास्तव में प्यार का एक मनोविज्ञान आधार होता है, जिसे समझ पाना हर किसी के लिए संभव नहीं। दरअसल एक-दूसरे की ओर आकर्षित होना एक रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें दूसरे की गंध, आवाज, शरीर तथा उसके हाव-भाव अच्छे लगने लगते हैं और मन में यह भाव उत्पन्न हो जाता है कि वही व्यक्ति उसके लिए सबसे बेहतर है। हर किसी के लिए हमारी ऐसी भावना नहीं होती और इसका कारण यही है कि रसायन ही हमें किसी व्यक्ति को आत्मसात करने के लिए तैयार करते हैं और हम उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि दो लोगों के बीच रासायनिक मेल होने से ही आनंद की अनुभूति, हृदयगति का बढऩा तथा डोपामाइन, नोरपाइनफेरिन, फिनाइल इथाइलामिन इत्यादि मस्तिष्क के प्रेम रसायनों का स्राव तेज होना जैसी जैविक क्रियाएं होती हैं।


रटगर्स विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि पुरुषों और महिलाओं को नए प्यार की बौछार अलग-अलग रूप में प्रभावित करती है। जहां पुरुषों में प्यार अथवा रोमांस की अनुभूति सैक्स संबंधी भावनाओं को जागृत करती है, वहीं महिलाओं पर इसका भावनात्मक असर ही होता है और यह भावनात्मक असर कितना हल्का या गहरा होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनका पार्टनर उन पर कितना ध्यान देता है।


वहीं यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के वैल्कम न्यूरोइमेजिंग विभाग के डा. एंड्रियाज बारटेल्स तथा प्रो. समीर का कहना है कि प्यार ‘खींचो और धकेलो’ की पद्धति पर काम करता है। जब किसी से प्रेम होता है तो व्यक्ति उसकी तरफ खिंचा चला जाता है और उसके बारे में नकारात्मक बातों व उसकी बुराइयों को नजरअंदाज करता जाता है।  यह उसकी बुराइयों के प्रति आंख मूंदने या अंधा होने जैसा ही है और यही कारण है कि प्यार के बारे में अक्सर कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है।


कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपनी लंबी खोज के बाद यह दावा भी किया है कि प्यार की अलग-अलग तरह की कुल 6 किस्में होती हैं। इनमें से पहले तरह के प्यार को वैज्ञानिकों ने ‘रोस’ नाम दिया, जिसमें केवल शारीरिक भूख मिटाई जाती है। ऐसे प्यार में शादी-विवाह जैसे बंधनों का कोई अस्तित्व नहीं होता। प्यार की दूसरी किस्म को ‘ल्यूड्स’ नाम दिया गया, जिसमें प्रेमी-प्रेमिका के बीच हुई दोस्ती प्यार में बदलने लगती है लेकिन इसमें गंभीरता का अभाव पाया जाता है। तीसरे तरह के प्यार ‘अगापे’ में प्रेमी-प्रेमिका के बीच एक अटूट प्रेम होता है और उनमें एक-दूसरे पर मर मिटने तथा एक-दूसरे के लिए बलिदान देने के लिए तत्पर रहने की भावना जन्म ले चुकी होती है। प्यार की ‘मेनियक’ नामक अगली किस्म में प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को इस कदर चाहने लगते हैं कि वे अपने प्यार को हासिल न कर पाने की स्थिति में जान लेने अथवा जान देने के लिए भी तत्पर हो जाते हैं। यह एक तरह से प्यार का उन्मादी रूप होता है। प्यार की एक अन्य किस्म ‘प्रेग्मा’ में प्रेमी-प्रेमिका भावनाओं के समन्दर में न बहकर पहले एक-दूसरे के बारे में अच्छी तरह से जानकारी हासिल करते हैं और उसके बाद ही प्यार करने जैसा कदम उठाते हैं। इस प्रकार जांच-परख कर और एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानने-समझने के बाद किया गया प्यार ही पूरी तरह से सफल ‘प्यार’ की श्रेणी में आता है।


 मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में स्थित एक विशेष अंग ‘हाईपोथेलेमस’ में जब ‘डोपेमाइन’ तथा ‘नोरपाइनफेरिन’ नामक दो न्यूरोट्रांसमीटरों की अधिक मात्रा हो जाती है तो यह शरीर में उत्तेजना व उमंग पैदा करने लगती है। ये न्यूरोट्रांसमीटर मस्तिष्क में उस समय सक्रिय होते हैं, जब दो विपरीत लिंगी मिलते हैं। कभी-कभी समलिंगियों के मामले में भी ऐसा ही देखा जाता है। जब भी इन्हें एक-दूसरे की कोई बात आकर्षित करती है तो उनके मस्तिष्क का यह हिस्सा अचानक सक्रिय हो उठता है। जब मस्तिष्क के इस हिस्से की सक्रियता के कारण ‘डोपेमाइन’ नामक इस रसायन का स्तर बढ़ता है तो यह मस्तिष्क में आनंद, गर्व, ऊर्जा तथा प्रेरणा के भाव उत्पन्न करता है। डोपेमाइन के कारण ही एक अन्य रसायन ‘ऑक्सीटोक्सिन’ का स्राव भी बढ़ता है, जो दूसरे साथी को बाहों में भरने और दुलारने की प्रेरणा देता है जबकि ‘नोरपाइनफेरिन’ के कारण ‘एड्रिनेलिन’ रसायन का स्राव बढ़ता है, जो दिल की धड़कनें तेज करने के लिए उत्तरदायी होता है। ‘वेसोप्रेसिन’ रसायन आपसी लगाव बढ़ाने तथा अटूट बंधन के लिए होता है।


 न्यूयार्क की एक जानी-मानी समाजशास्त्री तथा मानव संबंधों की विशेषज्ञा डा. हेलन फिशर इस सिलसिले में बहुत लंबा शोध कार्य कर चुकी हैं। उनका भी यही मानना है कि मस्तिष्क में पाए जाने वाले रसायनों ‘डोपेमाइन’ तथा ‘नोरपाइनफेरिन’ से ही प्यार की भावना का सीधा संबंध है। इन्हीं कारणों से प्रेमियों में असाधारण ऊर्जा का विस्फोट होता है और प्यार करने वालों की नींद और भूख गायब होने की भी यही प्रमुख वजह है। जहां डोपेमाइन रसायन हमें उत्तेजित करता है, वहीं ये दोनों रसायन हमें शांत करके लगाव विकसित करते हैं। इसी प्रकार ‘सेरोटोनिन’ नामक एक अन्य रसायन अथवा न्यूरोट्रांसमीटर अस्थायी प्यार के लिए जिम्मेदार होता है जबकि ‘इंडोर्फिन’ नामक रसायन सच्चे, स्थायी और समर्पित प्यार का आधार होता है। 

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