Navratri: भगवती पूजा अधूरी रहेगी जब तक न की जाए भैरव बाबा की साधना जानें, विधि

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Sep, 2022 12:08 PM

bhairav baba devi durga

देवी दुर्गा की उपासना करते समय किसी भी वस्तु का स्थूल रूप में प्रयोग नहीं किया जाता, अत: मंत्रों का उच्चारण करते समय व्यावहारिक रूप में न तो आचमन करेंगे,

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Shardiya Navratri 2022: देवी दुर्गा की उपासना करते समय किसी भी वस्तु का स्थूल रूप में प्रयोग नहीं किया जाता, अत: मंत्रों का उच्चारण करते समय व्यावहारिक रूप में न तो आचमन करेंगे, न सिर पर जल छिड़केंगे और न ही हाथ धोएंगे। आप मंत्रों का पाठ करते समय आलथी-पालथी मारकर बैठे रहेंगे और केवल मंत्रों का उच्चारण ही करेंगे, वह भी अत्यंत मंद स्वर में।

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ॐ अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत पुंडरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरे शुचि:।।

उक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए भावात्मक रूप में अपने सिर पर तीन बार जल छिड़क कर आचमन करें तथा हाथ धो लें। ‘पवित्रीकरण’ के  इस कार्य के उपरांत निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए भूत शुद्धि की जाएगी।

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भुविसंस्थिता।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।

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गणेश जी का ध्यान करते समय अपने दाएं हाथ में दूर्वा अर्थात दूब घास, अक्षत, पुष्प तथा जल लेकर ही स्तवन करेंगे। प्रथम पूजनीय गणेश जी के ध्यान में इन मंत्रों का और मंत्रों का पाठ पूरा होने पर इन्हें गणेश जी के सम्मुख रख देंगे।

ॐ सुमुखश्चैकदंत कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशी विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामानि य: पठेचगुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निगमे तथा।
संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तंस्य न जायते।।
 शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्ण चतुर्भुज।
प्रसन्नवदनं ध्याये त्वर्स विघ्नोपशान्तये।

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संकल्प वाक्य कोई मंत्र या मंत्रों का समूह नहीं है केवल परिचय है। आराधना करते समय दाएं हाथ में तिल, कुशा, घास, अक्षत, यज्ञोपवीत और जल लेकर निम्र संकल्प वाक्यों का उच्चारण करेंगे। उपासना करते समय तो कोई वस्तु आपके पास होती ही नहीं। अत: केवल भावलोक में ही ये वस्तुएं आप अपने हाथ में लेंगे, स्थूल रूप में तो संकल्प के इन वाक्यों का उच्चारण ही करेंगे। भगवती और शिवजी के अवतार भैरव में बड़ा ही अद्भुत संबंध है। मातेश्वरी का कहना है कि उनकी कोई भी पूजा-आराधना तब तक अधूरी रहेगी, जब तक मातेश्वरी के पश्चात भैरव देव का दर्शन और पूजन भी न कर लिया जाए।

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मंदिर में जाकर पूजा करते समय पहले तो मां भगवती की और फिर भैरवदेव की पूजा की जाती है, परन्तु उपासना और तंत्र साधना करते समय पहले किया जाता है, भैरव का ध्यान और आह्वान। भैरव के ध्यान के पश्चात प्रारंभ की जाती है, भवानी की उपासना। सर्वप्रथम दुर्गा की मूर्ति स्थापित कीजिए। मातेश्वरी के रूप का ध्यान करते हुए उन्हें अपने निकट अनुभव करते हुए नीचे दिए गए मंत्रों का स्तवन कीजिए-

सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।
ब्रह्मरूपे सदानंदे परमानंद स्वरूपिणि।
दुत सिद्धिप्रदे देवि, नारायणि नमोऽस्तुते।।
शरणागतदीनां तप रित्राणपरायणे
सर्वस्याहितरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।

देवी थोड़ी ही उपासना और मंत्र जप से ही परम प्रसन्न होकर भक्तों की सभी कामनाओं की तत्काल पूर्ति कर देती हैं। 

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