जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी. ‘यह क्या कर रहे हो, यह क्या हो रहा है’

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2015 04:09 AM

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जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा बहिष्कार के आह्वान के बावजूद गत वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने औसतन 70 प्रतिशत मतदान करके लोकतंत्र के पक्ष में आवाज बुलंद की।

जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा बहिष्कार के आह्वान के बावजूद गत वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने औसतन 70 प्रतिशत मतदान करके लोकतंत्र के पक्ष में आवाज बुलंद की।

23 दिसम्बर, 2014 को घोषित चुनाव परिणामों में हालांकि 87 सदस्यीय सदन में भाजपा 44 का जादुई आंकड़ा प्राप्त नहीं कर सकी परंतु 28 सीटें जीतने वाली पी.डी.पी. के बाद 25 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही।
 
परिणाम घोषित होते ही सभी राजनीतिक दलों ने सरकार बनाने के लिए अपनी-अपनी गोटियां बिठानी शुरू कर दीं परंतु विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते परिणाम घोषित होने के सवा दो महीने के बाद ही पी.डी.पी. और भाजपा में धारा-370 व अफस्पा जैसे संवेदनशील मुद्दों को पृष्ठभूमि में डालकर सरकार बनाने पर सहमति हो पाई।
 
इसके अनुसार पी.डी.पी. के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1 मार्च, 2015 को नवनियुक्त मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की परंतु इसके तुरंत बाद पत्रकार वार्ता में उनके इस बयान से भारी विवाद खड़ा हो गया कि ‘‘हुर्रियत कांफ्रैंस, पाकिस्तान व पी.ओ.के. में बैठे अलगाववादी गुटों ने जम्मू-कश्मीर के चुनावों में बेहतर माहौल बनाया जिसके चलते चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न हुए।’’
 
इस पर उनके साथ बैठे भाजपा से संबंधित उप-मुख्यमंत्री डा. निर्मल सिंह असहज महसूस करते हुए बीच में से ही उठ कर चले गए। मुफ्ती ने आगे कहा कि, ‘‘पीपुल्स कांफ्रैंस के चेयरमैन सज्जाद गनी का मुख्यधारा की राजनीति में आना अच्छी पहल है तथा केवल वार्ता से ही तमाम मुद्दों का हल निकाला जा सकता है।’’ 
 
इसके अगले ही दिन 2 मार्च को संसद में इस बात पर भारी हंगामा हो गया। मुफ्ती के इस बयान को राष्ट्र विरोधी बताते हुए लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि प्रधानमंत्री को सदन में आकर इस बारे स्पष्ट्रीकरण देना चाहिए।
 
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री से बात की है और सरकार तथा उनकी पार्टी (भाजपा) सईद के बयान से स्वयं को पूर्णत: अलग करती है, परन्तु राजनाथ सिंह ने चुनावों की सफलता के लिए राज्य की जनता, सुरक्षाबलों एवं चुनाव आयोग को ही श्रेय दिया। 
 
सपा के मुलायम सिंह यादव ने भी प्रधानमंत्री से बयान की मांग की और कहा कि ‘‘यह एक गंभीर मुद्दा है जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।’’ प्रधानमंत्री से बयान की मांग करते हुए कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वाम दल, आप, सपा, जद (यू) तथा राजद के सदस्य वाकआऊट कर गए।
 
राज्यसभा में कांग्रेस के शांता रमण ने मुफ्ती का बयान न सिर्फ विवादास्पद बल्कि राष्ट्र को आहत करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि शपथ लेने वाले 24 मंत्रियों में से एक का भाई हुर्रियत में है और उसकी पत्नी पाकिस्तानी है। 
 
दूसरी ओर मुफ्ती का कहना है कि ‘‘मैं अभी भी अपने बयान पर कायम हू कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करने में मदद दे रहा है परंतु मीडिया मेरे बयान को तिल का ताड़ बना रहा है।’’ मुफ्ती की बेटी और पी.डी.पी. की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने भी कहा है कि ‘‘मेरे पिता ने कुछ भी गलत नहीं कहा है।’’ 
 
अभी इस विवाद पर गर्मागर्मी चल ही रही थी कि पी.डी.पी. के ही 8 विधायकों ने यह मांग करके नया विवाद खड़ा कर दिया कि भारत की संसद पर हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु के अवशेष उसके परिजनों को लौटाए जाएं।
 
इन हालातों में लगता है कि विधिवत सरकार चलाने का काम शुरू करने से पहले ही प्रदेश की पी.डी.पी.-भाजपा सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और यह चर्चा होने लगी है कि क्या मुफ्ती और महबूबा इस निष्कर्ष पर पहुंच गए हैं कि यह गठबंधन एक भूल था और अब ये दोनों भाजपा पर इसे तोडऩे का दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 
 
बाढग़्रस्त जम्मू-कश्मीर के लिए प्रधानमंत्री ने 21,00 करोड़ रुपए दिए और प्रदेश के विकास हेतु अपने मुख्य मुद्दे छोड़कर प्रदेश के ही हित में पी.डी.पी. के साथ गठबंधन किया और यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि भाजपा का हिन्दुत्व का एजैंडा नहीं है और यदि दोनों पार्टियां सही तरीके से मिल कर चलेंगी तो देश में शांति और समृद्धि का एक नया अध्याय शुरू होगा। ऐसे में सरकार बनने के अगले ही दिन ऐसे उल्टे-सुल्टे बयान देकर विवाद खड़ा करना पी.डी.पी. के लिए कदापि उचित नहीं । 

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